वापसी
वापसी
"वेदिका... वेदिका.. बाहर.. जाओ..!! देखो, फ़िर आ गया वो अंश से मिलने.. कोई ज़रूरत नहीं है उसको यहाँ घर के अंदर लाने की, उसका चेहरा देखना भी मुझ को पसंद नहीं, अरे इतना ही प्यार था बच्चे से तो... तलाक़ नहीं लेना था न ..!"
"ओह मम्मी, आप भी न, इतनी ज़ोर ज़ोर से क्यों बोलती हो वो सुन लेंगे तो..! "
" सुन लेने दो.. मैं परवाह नहीं करती !" कहती हुई वेदिका की मम्मी अपने कमरे में चली गईं l
वेदिका अब तुरन्त अंश को लेकर घर के बाहर खड़े अपने पति सिद्धांत के पास पहुँची, इन लोगों के तलाक़ को चार वर्ष हो चुके हैं, लेकिन सिद्धांत अपने बेटे के प्रति मोह को अभी भी छोड़ नहीं पा रहा थाl और वेदिका के लिए भी कहीं न कहीं कोई कशिश तो आज भी उसके मन में थी, जिसकी वजह से वो बार बार इनकी ओर खिंचा चला आता ! शायद इसीलिए ही कभी वो अंश को स्कूल ले जाता तो कभी बाहर घुमाने के लिए और कभी-कभी उसकी पसन्दीदा चीज़ें भी ले आया करता।
लेकिन आज बात कुछ और ही थी, आज अंश से मिलने के लिए वेदिका जब सिद्धांत के पास पहुँची .. तो उसकी आँखों में आँसू थे.. जिसे देख कर वेदिका ने हैरानी से कहा - "क्या हुआ..!"
वैसे इन दोनों के बीच संबंध विच्छेद भले ही हो चुका है, लेकिन इन दोनों में बातें अब भी किसी मित्र की तरह ही हुआ करती थीl और यही सब वेदिका की मम्मी को पसंद नहीं था, उनका कहना है, कि लोग क्या कहेंगे इतना ही प्यार था तो फ़िर छोड़ा क्यों..?
और हर बार ये सुन कर वेदिका कहा करती "मम्मी, जो होना था सो हो गया.. पर अंश को अब ये नहीं लगना चाहिए कि मैं उसे उसके पिता से दूर कर रही हूँ..! जल्दी ही उनकी दूसरी शादी होने वाली है, उसके बाद तो वो यहाँ आना छोड़ ही देंगे ..!"
परंतु आज सिद्धांत के आँसू सकुचाते हुए कुछ और ही बोलने लगे "वेद, एक बात कहना चाहता हूँ, हमारे तलाक़ को आज चार साल हो चुके हैं, लेकिन मैं आज भी तुम्हें और अंश को अपने से अलग नहीं कर पा रहा हूँ, कुछ ग़लतियाँ अगर मुझसे हुई थीं, तो तुमने भी तो भूल की थी .. ख़ैर, अब पुरानी बातें कुरेदने की बजाय मैं चाहता हूँ, जो कुछ भी हमारे बीच हुआ... उसे भूला कर.. चलो हम एक बार और जी लें..! और इस बार मुझे पूरा विश्वास है, कि हमारे बीच सब कुछ ठीक रहेगा..! क्योंकि जितनी बार भी मैं तुमसे मिलता हूँ मुझे हमेशा ऐसा लगता है, कि हमारे बीच संबंधों में नमी तो अभी भी मौजूद ह l और मेरा मानना है, कि चंद कागज़ के टुकड़ों के फ़ैसले दिलों के रिश्ते को नहीं तोड़ सकते !" सिद्धांत की ये बातें सुनते सुनते ही वेदिका के आँसू निर्झर बहने लगे.. मानो कोई नदी मदमस्त सी सागर में समा जाने को बेरोकटोक सारी बाधाओं को चीरती हुई चली आ रही हो..और अब तो बिना एक पल की प्रतीक्षा किये वेदिका सिद्धांत से लिपटकर फूट फूट कर रोने लगी, आज उसके बहते हुए आँसू में सिद्धांत को माफ़ी और पूर्ण समर्पण नज़र आ रहा था..और सिद्धांत के आलिंगन में वेदिका को अपने प्यार पर अटूट विश्वास..!
