आदर
आदर
"मास्टर जी, राशन पानी के लिए बैंक से कुछ रुपये ले आते तो अच्छा होता... फ़िर, कल रविवार हो जायेगा..l"
"अरे भाई... पहले से कहना था न, देख रही हो ग्यारह बज रहे हैं lऔर इतनी चिलचिलाती धूप... मेरी गाड़ी भी ख़राब पड़ी है...!" खीझते हुए मास्टर जी बोल तो दिये .... पर तत्काल उन्होंने देखा.. श्रीमती जी का चेहरा उतर गया है!
" अच्छा ठीक है लाओ.... एक थैले में पानी रख दो और छाता भी दे देना.. ऑटो लेकर जाता हूँ..! " कहकर जब वो घर से बाहर निकले तो दूर दूर तक उन्हें कोई रिक्शा नहीं दिखा , और कई दिखे भी तो बैंक की तरफ़ ले जाने के लिए कोई तैयार नहीं हुए... हो सकता है, आगे मिले इस आस में मास्टर जी आगे बढ़ते गये... पर निराशा ही हाथ लगी.. और अब छाँव देखकर वो एक चबूतरे में बैठ कर पानी पीने लगे.. तभी एक कार उनके पास आकर रुकी l "अरे मास्टर जी, आप यहाँ कैसे.. कहते हुए सुमीत गाड़ी से उतरा और उसने मास्टर जी के पैर छू लिये..
-" बैंक से कुछ रुपये निकालना था बेटा , गाड़ी भी मेरी ठीक नहीं है, और ऑटो भी कोई मिल नहीं रहा है ..! "
-" आइये.. मैं आपको बैंक छोड़ देता हूँ.. कहते हुए सुमीत ने मास्टर जी का हाथ थामकर उन्हें कार में बिठाते हुए बोला -" आपका काम होते ही मुझे फ़ोन कर दीजियेगा... मैं आपको वापस घर भी छोड़ दूँगा..!"
ये सुनते ही मास्टर जी सोचने लगे - " सुना था कि कोई आदर दे तो चिलचिलाती धूप में पेड़ की ठंडी छाँव सा सुकून मिलता है..हाँ.... इंसानियत आज भी ज़िन्दा है... मन ही मन कहते हुए उन्होंने सुमीत की पीठ थपथपा दी... तो सुमीत ने कहा - "क्या हुआ मास्टर जी....?"
-" कुछ नहीं... सदा ख़ुश रहो बेटा .."
