Archana kochar Sugandha

Abstract

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Archana kochar Sugandha

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विमाता

विमाता

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जैसे ही नर्स ने बोला मुबारक हो बेटी हुई है। मेरी बेटी को जन्म घुट्टी मेरी माँ पिलाएंगी। श्रेया के इन शब्दों से मेरी तंद्रा भंग हो गई। जिन्दगी के पृष्ठों को पीछे से खोलते-खोलते न जाने कितना पीछे ले गई।

आज से छब्बीस वर्ष पूर्व सुहागरात पर विक्रम ने श्रेया को मेरी गोदी में डालते हुए कहाँ मेरी तरफ से यह आपको सुहागरात का तोहफा है। इसकी माँ तो इसे जन्म देते ही छोड़ गई। आज से आप ही इसकी माँ है। मासूम श्रेया को गोदी में देखते ही मातृत्व से अनजान,अल्हड़ जिंदगी में न जाने इतनी ममता कहाँ से आ गई। मैं समय से पहले ही परिपक्व हो गई तथा हाथों की मेहंदी का ध्यान ही नहीं रहा। घोड़े बेच कर सोने वाली मैं उसके जरा सा रोने या कुलबुलाने की, मात्र एक आवाज़ से उठ जाती। यह जितना आसान प्रतीत हो रहा था, उतना इस समाज में विमाता होना आसान नहीं था।

पग-पग पर अग्नि परीक्षा। श्रेया की जरा सी छींक भी छींटा कसी एवं तानों का कारण बन जाती। विमाता है ढंग से ध्यान नहीं रखा होगा।तीन साल बाद श्रेय का जन्म हुआ।संतान को जन्म देकर मातृत्व पीड़ा का अनुभव हुआ। जिससे मेरी ममता श्रेया के प्रति और भी गहन होती गई। लेकिन श्रेय के आ जाने से श्रेया के सगे नाना-नानी बेटी की अमानत को लेकर कुछ ज्यादा ही चिंतित होने लगे। चिंता निराधार तो नहीं थी। लेकिन समाज तथा वे जरा-जरा सी बात पर मुझे विमाता का अहसास करवाने से नहीं चूकते थे। श्रेया भी जैसे-जैसे बड़ी होती गई वह भी इस अहसास से अछूती नहीं रही।

गाहे-बगाहे वह भी मुझे विमाता का अहसास करवाने से नहीं चूकती थी। पढ़ाई पूरी करने के पश्चात उसकी शादी हो गई। दो साल बाद एक खूबसूरत प्यारी सी बेटी की माँ बन गई। नातिन को घुट्टी पिलाते हुए अहसास हुआ  त्याग और ममता की मूर्ति माता, विमाता की लड़ाई जीत गई।                                              


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