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वेलेंटाइन का तोहफ़ा

वेलेंटाइन का तोहफ़ा

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फरवरी का महीना आता है और साथ ले आता है गुलाबी ठंड का गुलाबी सा सुरूर, गुनगुनी धूप और बसंत के साथ गमकती फूलों की क्यारियाँ। फरवरी में बसंत पंचमी के साथ ही आता है चौदह फरवरी का वैश्विक त्योहार, " वेलेंटाइन डे"।

आज से बीस साल पहले यह इतना चलन में नहीं था जितना कि आज है। मैं कॉलिज में पढ़ती थी जब अखबार में इसके बारे में पढ़ा। सहेलियों के साथ इस दिन की चर्चा करते हम सभी ने आह भरी ," काश !कोई हमें भी इस दिन विश करता। उम्र की खुमारी तो थी मगर पढ़ाई के साथ - साथ घरवालों के विश्वास की जिम्मेदारी व जवाबदारी की भी समझ थी। इसलिए हम सहेलियाँ आपस मे ही एक- दूसरे को फूल - चॉकलेट देकर ख़ुश हो जाती थीं कि प्यार तो हर रिश्ते में है।

कॉलिज के दिन खत्म हुए और एक एकेडमिक सेंटर में मेरी जॉब लग गई।

उस दिन भी चौदह फरवरी थी और मैंने अपने बगीचे से अपनी सहेलियों के लिए सुंदर से फूल चुन कर रख लिए थे। ऑफ़िस निकलने के पहले आईने में एक नजर खुद पर डाली और मुस्कुराते - गुनगुनाते हुए अपनी काइनेटिक होंडा से ऑफ़िस पहुंच गई।

न जाने क्यों, उस दिन मौसम भी बड़ा प्यारा सा लग रहा था। दरवाज़े पर ही माया मिल गई। उसे विश कर फूल- चॉकलेट देकर मैं अपनी चेयर पर जाकर बैठ गई थी। "आज वेलेंटाइन डे है और हमारी किस्मत देखो , हम लोग ऑफ़िस में बैठकर इंतजार कर रहे हैं चौधरी जी का!( ऑफ़िस का चौकीदार ) कि वो आए और हमें गर्मागर्म चाय दे जाए!", मुँह बनाकर मेरे पास बैठते हुए माया ने जब ये कहा तो मैं खिलखिला कर हँस पड़ी थी।

इतने में आवाज़ आई, " एक्सक्यूज मी मैम, क्या हम आ सकते हैं?'देखा तो एकेडमी के हॉस्टल में रहने वाले कुछ स्टूडेंट्स केबिन के बाहर थे। एकेडमी काफी आउटर में थी इस कारण वहां हॉस्टल की सुविधा भी दी गई थी।

" यस, कम इन ", कहते हुए मैंने उन स्टूडेंट्स को अंदर आने के लिए कहा। उन लोगो ने अपने हाथों के पीछे कुछ छिपा रखा था।

अंदर आते ही सबसे पहले स्टूडेंट ने अपने पीछे छिपाया फूलों का गुच्छा मुझे दिया और " हैप्पी वेलेन्टाइन डे मैम " कहते हुए मेरे पैर छू लिए। मैं हक्की- बक्की उन फूलों को देख रही थी। जानते है क्यों, क्योंकि वे गुलाब- रजनीगंधा, के गुच्छे नही थे बल्कि जंगली झाड़ियों में कहीं भी उग आने वाले बेशर्म फूल थे।

वह स्टूडेंट बात समझ गया और तुरंत बोला, " मैम यहां आस- पास कोई फूलों की दुकान नही थी न ही कोई दूसरे फूल इसीलिए हम ये फूल ले आये।"

उसकी बात पर मैं मुस्कुरा भी नही पाई थी कि तब तक लाईन से सभी स्टूडेंट आ गए। वे सब मेरे पैर छूते, विश करते और बेशर्म के फूलों का गुच्छा हाथ मे पकड़ाते जा रहे थे और मैं....मेरी तो हँसी ही नहीं रुक रही थी। पहली बार वेलेंटाइन डे पर फूल मिले वे भी किस तरह और कैसे.....।

उनके स्नेह और भावनाओं का सम्मान करते हुए मैंने उन सभी फूलों को स्वीकार किया , लेकिन आज भी जब वेलेंटाइन डे आता है तब मुझे अपना ये वेलेंटाइन डे भी बरबस ही याद आ जाता है और होंठो पर एक मुस्कान आ जाती है।


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