वेलेंटाइन डे
वेलेंटाइन डे
अभी रिटायरमेंट के बाद पिछले कुछ महीनों से मेरे पति भी नियमित सुबह मेरे साथ मंदिर दर्शन को आ रहे थे। वहां जब भीड़ कम होती तब वे भी अंदर तक मेरे साथ आते और भीड़ होने पर वहीं से हाथ जोड़ एक कोने में खड़े मेरा इंतजार करते। कर्मवाद में विश्वास करने वाले मेरे पति से फिर जब मैं यूँ रोज मंदिर आने का कारण पूछती। तो कहते, वहां घर में तो इधर उधर के कामों में तुम्हारे लिए मेरे पास समय होता ही नहीं है। बस इसीलिए तुम्हारे साथ मंदिर चले आता हूँ। ताकि जीवन का बाकी बचा कुछ समय तुम्हारे साथ गुजार सकूं। किसी को आपकी भी उतनी ही जरूरत व परवाह है जितनी आप उनकी करते है। सच जब यह पता चलता है। तब मन के वह एहसास बेहद सुखद होते है।
आज मन के इन्हीं विचारों के बीच, जब मंदिर के बाहर पहुँची तो देखा वे फूलों की एक दुकान पर खड़े थे। मैं उनसे कुछ पूछती उसके पहले ही उन्होंने अपने हाथ से एक फूल मेरे जुड़े में सजाते हुए मुझसे कहा। सुनो आज वेलेंटाइन डे है।
तो क्या हुआ जो अब हम बूढ़े हो गए, पर हमारे दिलों का प्यार तो आज भी इन फूलों की तरह ही जवान है। और मैं बस उनकी बात सुन शर्माकर रह गई।