वेदना
वेदना
“पंखा साफ़ हो गया... पर, बरामदे के कोनों में जाले अभी भी लटक रहे हैं... दिखता नहीं है क्या?” मालूम हो गया कि चैन की सांस लेने नहीं देगा।,फिर से मुझे जाना ही पड़ेगा।
“जी, मालिक... अभी लाया...कहते हुए रामू मुझे घसीट ले गया। बरामदे के एक कोने में, गुस्से में ऐसे पटक कर रख दिया। मेरे सिर पर खड़ा होकर वह जाले साफ़ करने लगा । एक कोने की सफाई खत्म करते ही वह दूसरे कोने में घसीट ले गया। इसी तरह, तीसरे-चौथे कोने तक भी मुझे घिसटते हुए जाना पड़ा।
“अरे... मैं तुम्हारे बूढ़े मालिक की उम्र का हूँ! जरा उम्र का लिहाज़ करना सीखो।"
मैं चीखती रहा, "घर के बाकी फर्नीचर की देखभाल और रख-रखाव बच्चों की तरह करते हो और मेरे साथ ऐसा सलूक?" लेकिन, मेरी चीख़ों का उस पर कोई असर न पड़ा।तभी बूढ़े मालिक को लाठी के सहारे डगमगाते कदमों से रास्ता नापते इधर आते देखा। मैंने तुरंत अपने चारों पायों पर जोर डालकर देखा,शुक्र है, कि वे अभी डगमगा नहीं रहे हैं।
मिन्नी मिश्रा / पटना