वे अपने नहीं
वे अपने नहीं


आज दादी के अन्तिम संस्कार के साथ ही टेंचू अपनी अन्तिम जिम्मेदारी पूरी कर रहा था, कई सालों बाद आज वो जी भर के रोना चाहता था..अपने दुख दर्द, तहस नहस हो चुकी आत्मा की तकलीफों को आंसूओं के बहाने रीता करना चाहता था।
बारह साल का था, जब भूख से लड़ने घर से निकल आया, चुनाव का समय था, एक पार्टी के प्रचार पंडाल में रात काटने की जगह और खाना मिल गया गया और साथ में पोस्टर लगाने का काम,
पर रात को थक कर सोया तो अजीब से बदबूदार चेहरें अपने खूनी पंजों से उसे नोंचने लगे ..बहुत चीखा था वो...पर लाउडस्पीकर की आवाज ने कुछ पलों के लिये उसकी चीखों को गुम कर दिया...उसके जख्मों ओर आंसुओं को देख उस राक्षसी चेहरों ने कड़कड़ाते नोट पकड़ाये थे, नोटों को देख उस रात घृणा, आंसू और क्रोध से भरा उसका चेहरा एक पल के लिये चमक उठा, घर में भूखें तीन छोटे छोटे भाई बहिन और असमय बेटे बहू की मौत से एकदम बूढ़ी हो गई दादी का चेहरा याद आया...
एक ही चुनावी रात ने टेंचु को पोस्टर लगाने से पैसे कमाने के नये बहाने का विशेषज्ञ बना दिया, और उन्हीं राक्षसी चेहरों में एक चेहरा उसका कमिशन ऐजेंट...
उसे अब कुछ भी बुरा नही लगता, और न कोई दुख तकलीफ महसूस करता, वक्त ने उसे जिन्दगी को समझना सिखा दिया था, जिन्दगी की पूरी परिभाषा पैसे के इर्द गिर्द सिमट के रह गई,
जैसे जैसे उसके अपनों की जिन्दगी ढ़र्रें में आती गई, वो उसे अजीब नजरों से देखते हुये उससे दूर होते गये...सिर्फ दादी थी जो किसी भी फुसफुसाहट को कान देने को तैयार नहीं थी,
हर यादों के साथ उसके आंसुओं का सैलाब बढ़ रहा था..कई अजनबी हाथ उसे ढ़ाढस बधा रहे थे, उसने पलट के देखा उनमें एक हाथ भी उन अपनों का नही था जिनके लिये उसने अपनी आत्मा बेच दी, उसका मन चित्कार उठा ..उसने अपनी चीख गले में घुटती महसूस हुई, चिता की लपटों के साथ बहुत से रिश्ते आज भस्मीभूत हो रहे थे, उसने धीरे से सर घुमा के अपने पर अजनबी हो गये चेहरों को देखा, सबकी आंखों का पानी मर चुका था।