प्रतीक्षा

प्रतीक्षा

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होलाष्टक के साथ ही पहाड़ों के गांव गांव चीर बंधी और फाग उठने लगे , घर घर से ढोल मंजीरा,हारमोनियम और तबले की संगत में स्वर लहरियां पूरी वादी को संगीतमय कर रही थी,लाल नीले पाड़ की सफेद साड़ीयों पर सरसर करती , ठिठोली करती औरतें इस घर से उस घर होली के रंग रस और राग बिखेरती , और पुरुषों की रस रचे पक्के रागों की बैठकें जमती।

पर मालू की उदासी थी कि पूस के कोहरे की तरह छटनें का नाम नही ले रही थी, जैसे कानों में सुर पड़ते "फागुन के दिन चार रे नहीं आये संवरियां.."मालू का दिल धक रह जाता,

  हंसते हुये हन्सी संगज्यू ने पूछा "शंकर भिन्ज्यू आ रहे हैं ना इस होली में, अपनी साली से होली खेलने?"

पता नही संगज्यू , फोन तो आया था पांच दिन पहले , बोल रहे थे "इस होली घर आ रहा हूं, अबकी होली संग तुम्हारे... मलूंगा इत्र गुलाल गाल तुम्हारे..बड़े प्यार से गा रहे थे",

    मैंने कहा "गुलाल ना मलते आ ही भर जाते तो त्यौहार सा हो जाता,बच्चे , इजा बाबू सब खुश हो जाते"।

   कहते हैं "युद्ध तो नहीं हो रहा , पर है युद्ध से अधिक खतरनाक माहौल , अपने घर में अपने ही लोगों से लड़ना...और ऊपर से नेताओं और टी.वी.वालों की चिचाट ..किस किस से लड़ें हम....,

"संगज्यू मेरा तो दिल ही बैठा जाता है, हे इष्ट देवता रक्षा करना..अनायास ही हाथ जुड़ आये मालू रहे।

चिन्ता न करो भिन्ज्यू की..सब कुशल होगा।

"पग आहट सुन बालम की...चढ़ आयो फाग को रंग निरालो....."तभी मल्ले घर की बैठक से सुर लहरी मालू और हन्सी के कानों को छूती हुई वादी में बिखर गई , और गांव की कच्ची सड़क में अपने फौजी बूटों से धूल उड़ाते फौजी को देख मालू धक रह गई।

 हंसी मुस्कुरा के गुनगुना उठी "ब्रज में पधारों श्याम तुम्हारो.. फागुन रंग सरसाई है.. देख बलम को ऐसो रंग.. मालू सखी शरमाई है" , मालू ने डबडबाई आँखों से हन्सी को देखा और दोनों सखियां खिलखिलाकर हंस पड़ी।




*संगज्यू*-भगवान की सौगन्ध लेकर बनाई पक्की सहेली ।

*चिचाट*-चीखना-चिल्लाना

*भिन्ज्यू*-जीजाजी

*चीर*-होलाष्टक के दिन जंगल से काट कर चौपाल या चौराहे पर स्थापित किया जाने वाला पेड़ ।


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