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Dr. Kusum Joshi

Drama

3  

Dr. Kusum Joshi

Drama

वो जिन्दा है

वो जिन्दा है

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चौराहे पर वो बूढ़ा सफेद दाढ़ी वाला अक्सर भीख मांगता हुआ दिखता है, मलय का हाथ स्वत:अपने वॉलेट की और बढ़ जाता, बूढ़ा अक्सर गाड़ी पहचान लेता और रेड लाईट होते ही तेजी से चला आता, तेजी से डॉलर लपकता, हल्की सी मुस्कान के साथ थैंक्स कहता।

 रंजन अक्सर मलय को टोकता "हिन्दुस्तान में तू भिखारी को देखते ही टोकता है कि "काम के ना काज के दुश्मन अनाज",  पर इस गोरे को इतनी भीख! क्या बात है, इस देश का कर्ज उतार रहा है इस भीख के बहाने।

"हाँ यही समझ ले यार" मलय गहरी आवाज में कहता, "पर आँखों में पिता का क्रूर चेहरा झिलमिलाता, पिटती हुई मां याद आती, जोर जोर से रोती दीदी का चेहरा याद करता, और घबराया सा दरवाजे के ओट में छुपा अपने बचपन का मन याद आता, कैसे धक धक करत था दिल, दाँत भींच के रूलाई रोकता", इन यादों के साथ मन भीग आता ।

कई साल हो गये ऐसे पिता से नाता तोड़े हुये, और ऐसे पति से मां को भी निजात दिलवाये हुये, माँ को फोन करता, फिर भी कभी कभी पूछता "वो बूढ़ा क्या अभी भी जिन्दा है"?

 "सुना बहुत बूढ़ा हो गया है, दिमाग भी ठिकाने नही, अक्सर भीख मांग कर गुजर करता है। अपने कर्मों की सजा पा रहा है, तुझे उसके लिये सोचने की जरुरत नही", माँ कड़े शब्दों में दिलासा देती,  पर मलय को धुंधली सी यादों की दस्तक महसूस होती "जब कभीपिता ने उसे गोद में उठा के चूमा था", आज भी ऋण महसूस करता,

उस गोरे बूढे को पांच दस डॉलर देने के बाद एक सूकून महसूस करता। उऋण होने का भान देर तक बना रहता।


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