खनख
खनख


रधुनाथ जी अपने मित्र हार्दिक के साथ वकील से मिल कर लौटे थे , चेहरे में मायूसी पसरी थी,
शादी के दो साल बाद बेटी की रहस्यमयी मौत से बेहद दुखी हताश रघुनाथ ने बेटी के ससुराल वालों को कोर्ट में खींच लिया था, पिछले सत्रह महिने से कोर्ट,वकील के चक्कर लगा रहे हैं,पर....
"हार्दिक भाई मेरी नाजों में पली पल्लवी खूबसूरत ,जहीन , आत्मनिर्भर थी, मुझे और उसे जानने वालों के लिये ये मानना मुश्किल है कि पल्लवी अपने ससुराल के लोगों के हाथों जलील भी हो सकती थी",
"रघु विश्वास तो मुझे आज भी नही होता कि पल्लवी को कोई ऐसे...." ये कहते हार्दिक का गला भर आया,
"हां दबी जुबान से पल्लवी ने ये तो बताया था कि सब लोग कुछ लालची से लगते हैं" , पर कहती "पापा आप चिन्ता न करे , मैं सब कुछ मैनेज कर लूंगी", शायद उसे वैभव के प्रेम पर भरोसा था , पर... बेटा परिवार के विरुद्ध खड़ा होने को तैयार नही हुआ",
"वैभव और उसका परिवार सब जमानत में बाहर आ चुके हैं , बड़े व्यवसायी लोग है..कुछ भी कर सकते है",रघु का स्वर भय से भीग आया।
"भरोसा रखें ईश्वर पर रघु , हमारे वकील आशीष वैसे तो कोई सामान्य वकील नही है बेशक अभी संघर्षरत हैं","..वातावरण में घिर आयी उदासी को तोड़ते हुये हार्दिक बोले,
"हार्दिक भाई ये तो है पर.. आज कल वकील साहब के सुर कुछ बदले से लगे रहे हैं, अब उन्हें वैभव बेचारा लगने लगा है",
"हां इसीलिये तो ईश्वर में भरोसा रखने की बात कर रहा हूं,कुछ उड़ती सी खबर सुनी थी, अब लग रहा है कि कुछ सच्चाई तो है",
"ऐसा क्या सुन लिया" ?
"यकीन तो नही होता कि आशीष ऐसा कर सकता है, पर...दहेज का विष बेल और पैसों की खनक बहुत गहरी काट रखते हैं , सुना ये कि अपनी तीन बेटियों में एक को बिना दान दहेज वैभव के साथ।