श्राप मुक्ति

श्राप मुक्ति

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 शहर के बड़े फैशन ब्रांड़ "मृगी" का उदघाटन समारोह था, आज खूबसूरत आंखों वाली मृगनयनी राजनीति ,फिल्म ,फैशन की दुनिया के लोगों की आवभगत करने में व्यस्त थी , फिर भी दरवाजे की और कई बार देखती , उसकी नम सी आंखों में इन्तजार था , बुआ ने वादा जो किया था कि आज वो श्राप मुक्त हो जायेगी, बार बार अतीत दस्तक दे रहा था ।


 हिरनी सी आंखें थी उसकी ,बुआ ने नाम दिया मृगनयनी ,पर उसे पुकारते नैनी । नैनी ने कभी किसी को निराश नही किया ,मां बाबा ,बुआ ,काकू की लाड़ली कभी हार मानने वालों में न थी । लेकिन स्कूल में ही हार गई वह अपना दिल, रुमानियत से भरे अपने टीचर की मीठी बातों के जाल में , घर में कोहराम मच गया, पहली बार पिता ने हाथ उठाया और मां ने माथा पीटा लिया । शहर मे रह रही बुआ को बुला उनके साथ भेज दिया गया ।


  नैनी ने बुआ से वादा किया वह शरीफ बच्चियों की तरह बस पढ़ाई करेगी। पर दिल है कि मानता नहीं ,रुमानियत का शहंशाह वही पहुंच गया,फिर प्रणय निवेदन..वादे...आंसू.. दीवानापन के आगे नैनी सैलाब सी बह निकली, और चुपचाप निकल भागी दुगने उम्र के प्रणयी के साथ।


दीवानी की दीवानगी तब निकल गई, जब दो बच्चों को लेकर पहुंची पहली पत्नी ने उसे बाहर का रास्ता दिखा दिया,और कायर प्रेमी निशब्द बैठा रहा ।


अब हर घर का दरवाजा बन्द था,, न जाने का हौसला बचा था,न अपना चेहरा दिखाने की हिम्मत ...और मरना भी आसान नहीं था , नैनी को बुआ याद आई ,


"भैय्या भाभी का दिल तोड़ कर दरवाजा तो नही खोल सकती ,हां तुम अपनी जिन्दगी बनाना चाहती हो तो हर पग में मेरा समर्थन तुम्हें मिलेगा", बुआ ने इतना वादा दे दिया।


   अचानक पीछे से किसी ने पुकारा 'नैनी' चौंक के वर्तमान में लौटी ,पलट के देखा बुआ के साथ मां बाबा पूरे सत्रह साल बाद ..मिलन से पहले ही सबकी आंखे डबडबाई हुई थीं।


   "नैनी मैं तो निमित्त भर थी ,असल मे तेरे पीछे तो तेरे मां बाबा दोनो ही वरद हस्त लिये खड़े थे , सब गिले शिकवे झाड़ पोछ लो" ,भरे गले से बुआ कह रही थी ,वो तीनो सालों के विछोह के समन्दर में डूबते जा रहे थे।




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