वड़वानल - 55

वड़वानल - 55

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गॉडफ्रे मुम्बई में आया है इस बात का सैनिकों को पता चला तो वे मन ही मन खुश हो गए ।

‘‘ब्रिटिश सरकार को हमारे विद्रोह के परिणामों का ज्ञान होने के कारण ही उन्होंने नौसेना दल के सर्वोच्च अधिकारी को मुम्बई भेजा होगा ।’’ पाण्डे ने अपना अनुमान व्यक्त किया ।

‘‘गॉडफ्रे हमारे विद्रोह को दबाने आया होगा। हम अपनी माँगें उसके सामने पेश करके उन्हें जल्दी से जल्दी पूरा करने की माँग कर सकते हैं। इसके लिए एक प्रतिनिधि मण्डल भेजा जाए।’’ मदन ने सुझाव दिया ।

‘‘क्या बिना बुलाए गॉडफ्रे के पास जाना उचित होगा ? हम ऐसे अचानक चले गए तो क्या गॉडफ्रे हमसे मिलेगा ?’’   गुरु को शक था ।

‘‘हम सरकार से बातचीत करने के लिए तैयार थे, मगर सरकार ने उचित प्रतिक्रिया नहीं दी, ऐसा हम ज़ोर देकर कह सकेंगे।’’ दत्त ने प्रतिनिधि मण्डल भेजने के पीछे की भूमिका स्पष्ट की ।

‘‘प्रतिनिधि गॉडफ्रे को सिर्फ माँग–पत्र देंगे। बातचीत नहीं करेंगे।’’ चट्टोपाध्याय ने कहा ।

‘‘मतलब यह कि वे सिर्फ माँगें प्रस्तुत करेंगे। गॉडफ्रे या सरकार अगर बातचीत करना चाहें तो वे सेंट्रल कमेटी से सम्पर्क करें, बस इतना ही सन्देश देना है ।’’ खान ने स्पष्ट किया ।

‘‘यदि प्रतिनिधियों को गिरफ्तार कर लिया गया तो ?’’  पाण्डे ने सन्देह व्यक्त किया ।

‘‘अब वैसा करने की उनकी हिम्मत नहीं है। यदि उन्होंने ये ग़लती की तो पन्द्रह हज़ार सैनिक फ्लैग ऑफिसर, बॉम्बे के कार्यालय पर हमला बोल देंगे ।’’ चट्टोपाध्याय ललकारते हुए बोला।

 

 पटेल ने सैनिकों के प्रतिनिधियों का ठण्डा स्वागत किया। प्रतिनिधियों ने अपना परिचय दिया। 

 ‘‘बोलिये, क्या काम है?’’ पटेल ने रूखी आवाज़ में पूछा ।

‘‘दिनांक 18 से ‘तलवार’ में No food, No work का निर्णय लिया गया और उसे मुम्बई, कलकत्ता, जामनगर इत्यादि स्थानों के सैनिकों ने समर्थन दिया है। 19 तारीख को हमने मुम्बई में जुलूस निकाला था...’’

18 तारीख से जो कुछ भी हुआ उसका विवरण देने वाले मदन को बीच ही में रोकते हुए पटेल ने शान्त स्वर में कहा, ‘‘जो कुछ हुआ वह सब मुझे मालूम है। तुम लोगों को कांग्रेस का समर्थन चाहिए यह भी मुझे मालूम है। मगर वर्तमान परिस्थिति में कांग्रेस तुम्हें समर्थन नहीं देगी । मैंने कांग्रेस के अध्यक्ष से बात की है, उनकी भी यही राय है ।’’

‘‘मगर ऐसा क्यों?  हमारा संघर्ष भी स्वतन्त्रता के लिए ही है!’’  चट्टोपाध्याय ने पूछा ।

कुछ नाराज़गी से पटेल ने चट्टोपाध्याय की ओर देखा और पलभर रुककर बोले, ‘‘स्वतन्त्रता की नौका जल्दी ही किनारे से लगने वाली है और ऐसी स्थिति में हम सरकार से कोई संघर्ष नहीं चाहते। वर्तमान सरकार एक कामचलाऊ सरकार है। इस सरकार का विरोध करने का कोई तुक नहीं है ।’’

पटेल से मिलने गए प्रतिनिधियों को सरदार की इस राय का अन्दाज़ा तो था; बस वे यह जानना चाहते थे कि हिन्दुस्तान का लौह–पुरुष संघर्ष को समर्थन क्यों नहीं देना चाहता। यदि सम्भव होता हो तो वे उसका हृदय–परिवर्तन करने की कोशिश करना चाहते थे।

‘‘हमारा यह संघर्ष अहिंसक है। सरकार जिस तरह से प्रचार कर रही है, वैसा वह स्वार्थप्रेरित नहीं है। हमारे संघर्ष की प्रेरणा एवं दिशा स्वतन्त्रता ही है...’’

चट्टोपाध्याय थोड़ा गरम हो गया था ।

‘‘चाहे जो भी हो, हम तुम्हारा साथ नहीं देंगे।’’ पटेल ने भी ऊँची आवाज़ में कहा, ‘‘तुम लोगों ने कांग्रेस से विचार–विमर्श किये बिना, कांग्रेस की सलाह न लेते हुए अपना संघर्ष शुरू किया है, इसलिए अब तुम्हीं इससे निपटो ।’’

‘‘राष्ट्रीय नेताओं और पार्टियों का समर्थन हमें मिलेगा इस आशा से हमने यह संघर्ष शुरू किया था। अब संघर्ष शुरू हो चुका है; इसे समर्थन देते हुए लगभग पन्द्रह हज़ार सैनिक शामिल हो चुके हैं । आज हमने मुम्बई के नौसेना दल पर कब्ज़ा कर लिया है । ऐसी स्थिति में यदि आपने हमें अकेला छोड़ दिया तो हम क्या करेंगे?’’ यादव के स्वर में प्रार्थना थी ।

पटेल के मुख पर अब मुस्कराहट छा गई। उन्हें लगा कि सैनिक उसी मोड़ पर आ गए हैं जहाँ वे चाहते थे। उन्होंने पलभर सोचने के बाद सैनिकों को सलाह दी:

‘‘देश की और सभी की भलाई की दृष्टि से मेरी यह सलाह है कि तुम लोग बिना शर्त काम पर वापस लौट जाओ।‘’

‘‘आपकी सलाह के लिए धन्यवाद,  मगर हम इस सलाह को नहीं मान सकते ।’’  मदन ने नम्रता से कहा और वे चारों बाहर आ गए ।

 

‘‘स्वतन्त्रता के लिए लड़ने की जागीर क्या सिर्फ कांग्रेस को ही दी गई है क्या ? कहते हैं, हमें क्यों नहीं पूछा ?’’   चट्टोपाध्याय चिढ़ गया था ।

‘‘क्रान्तिकारी भगतसिंह, राजगुरु, मदनलाल धिंग्रा ये सब और आज़ाद हिन्द सेना के सैनिक, कहते हैं, राह भटके मुसाफिर हैं। उनका पक्ष कांग्रेस लेगी नहीं। अरे, फिर स्वामी परमानन्द के खूनी को माफ़ किया जाए इसलिये महात्माजी ने वाइसरॉय को पत्र क्यों लिखा था ?’’ यादव चीखे जा रहा था । ‘‘मत दो हमारा साथ। हम अकेले ही लड़ेंगे। ज़्यादा से ज़्यादा क्या होगा?  हमें अपनी जान से हाथ धोना पड़ेगा, बस यही ना?  हैं हम तैयार!’’

 

 ‘‘सर, कैसल बैरेक्स के कमाण्डिंग ऑफिसर का फ़ोन आया था ।’’ आराम फ़रमा रहे गॉडफ्रे को रॉटरे ने बताया, ‘‘कैसल बैरेक्स में सैनिक बड़ी संख्या में पहुँच रहे हैं । उन्हें रोकना होगा,  वरना परिस्थिति बिगड़ सकती है। कोई उपाय योजना करना आवश्यक है, ऐसा वे कह रहे हैं ।’’

‘‘परिस्थिति अनुकूल हो रही है । सैनिकों को अपने–अपने जहाज़ और ‘बेस’ पर लौटने का आदेश दो । यदि सुनें नहीं तो ट्रक में भरो और पहुँचाओ। जनरल बिअर्ड को बुला लो ।" गॉडफ्रे ने आदेश दिया ।

ले. ब्रिटो शीघ्रता से अन्दर आया ।

''Yes Lt?'' उसका सैल्यूट स्वीकार करते हुए गॉडफ्रे ने पूछा ।

‘‘सर, सैनिकों के प्रतिनिधि आपसे मिलना चाहते हैं। उनका फोन आया था, ‘’ ब्रिटो ने कहा ।

''Oh, that's good.'' खुशी से गॉडफ्रे ने कहा, ‘’Let the bastards come, I shall deal with them.''

खान,  बैनर्जी,  कुट्टी और असलम को ‘फॉब हाउस’  के पहरेदार ने गेट पर ही रोका। 

''Hey; you Indians, किदड़ जाटा है। This is not a fish market.'' वह चिल्लाया ।

खान को पहरेदार पर गुस्सा आ गया ।

‘‘इस तरह हमें खदेड़ने के लिए क्या हम रास्ते के भिखारी हैं या आवारा कुत्ते?’’ कुट्टी का पारा चढ़ गया ।

‘‘हमें गॉडफ्रे से मिलना है।’’ खान ने कहा ।

‘‘क्या मुलाकात पहले से तय है?’’  पहरेदार ने पूछा ।

‘‘नहीं ।’’

‘‘फिर नामुमकिन है ।’’ निर्विकार उत्तर आया ।

गॉडफ्रे समस्या सुलझाने के लिए उत्सुक होगा; हमारे जाते ही वह हमसे मिलेगा; बातचीत का प्रस्ताव रखेगा – ऐसा खान को छोड़कर बाकी सबका ख़याल था, इसीलिए उन्होंने फ़ोन करके गॉडफ्रे को मुलाकात के बारे में कल्पना दी थी, थोड़ी–बहुत मिन्नत करने के बाद पहरेदार ने गॉडफ्रे को सूचना दी कि सैनिक मिलना चाहते हैं।

सैनिकों के प्रतिनिधि गेट पर खड़े हैं यह मालूम होते ही वह खुश हो गया । ‘‘इन सैनिकों को कुछ देर लटकाए रखकर अपने काम निपटाने चाहिए।’’ वह पुटपुटाया। उसने एक घण्टे बाद प्रतिनिधियों से मिलने का निश्चय किया। पहरेदार द्वारा प्रतिनिधियों को सूचित किया गया।

 

गॉडफ्रे को जनरल बिअर्ड की बहुत देर तक राह नहीं देखनी पड़ी। बिअर्ड के पहुँचते ही वह सीधे विषय पर आ गया।

‘‘कैसेल बैरेक्स और मुम्बई के एक–दो अन्य नौसेना तलों पर पहरा लगाना आवश्यक है। तुम्हारे पास कितने सैनिक हैं?’’ गॉडफ्रे ने पूछा ।

‘‘मराठा बटालियन्स पर्याप्त मात्रा में उपलब्ध हैं। इसके अलाव आसपास के भूदल बेसेस से अतिरिक्त फौज भी आ रही है। ।’’   बिअर्ड ने जवाब दिया ।

‘‘पहरा लगाने से पहले हम नौसैनिकों को अपने–अपने जहाज़ और ‘बेस’ पर लौटने की अपील कर रहे हैं। यदि वे सीधे तौर से नहीं आए तो उन्हें सख्ती से ले जाने के लिए भी भूदल सैनिकों की ज़रूरत होगी और जहाँ तक सम्भव हो ब्रिटिश रेजिमेंट के सैनिक हों ।’’ गॉडफ्रे ने कार्रवाई की दिशा को स्पष्ट करते हुए आवश्यकताओं के बारे में बताया।

‘‘ठीक है। इसके लिए पर्याप्त सैनिक और ट्रक मिल जाएँगे। मगर यह कार्रवाई शुरू कब करनी है?’’  बिअर्ड ने पूछा।

‘‘हम यह कार्रवाई फ़ौरन शुरू कर रहे हैं, ‘’ गॉडफ्रे ने जवाब दिया।

‘‘ठीक है। मैं तैयारी करता हूँ। एक घण्टे में ट्रक उपलब्ध हो जाएँगे और दिन के तीन बजे भूदल सैनिकों का पहरा बिठा दिया जाएगा।’’ बिअर्ड ने गॉडफ्रे को आश्वासन दिया और वह बाहर निकला।

सब कुछ गॉडफ्रे की अपेक्षा के अनुसार हो रहा था। उसने रॉटरे को बुलाकर सैनिकों से अपनी–अपनी ‘बेस’ पर लौटने की अपील करने को कहा।

 

 गॉडफ्रे ने सैनिकों के प्रतिनिधियों को मिलने के लिए बुलाया । ‘चर्चा करते समय सैनिकों के मनोधैर्य का अनुमान लगाना है, और उसके बाद ही अगली व्यूह रचना तैयार करनी होगी।‘ वह सोच रहा था। ‘प्रतिक्रिया आज़माते हुए कार्रवाई की तीव्रता बढ़ानी होगी। उसने निश्चय  किया ।‘ उसने जानबूझकर सैनिकों के प्रतिनिधियों को कॉन्फ्रेन्स हॉल में बैठाने की आज्ञा दी ।

कॉन्फ्रेन्स हॉल का ठाठ ही निराला था। असली सीसम की गहरी काली, लम्बी, नक्काशी वाली मेज़, मेज़ के चारों ओर फौजी ढंग से लगाई गई कुर्सियाँ, कुर्सियों पर सेमल की रूई की नरम–नरम गद्दियाँ,  छत से लटक रहा विशाल झाड़–फानूस उस हॉल की शोभा बढ़ा रहे थे । दीवार पर इंग्लैंड की महारानी की भव्य ऑयल पेन्टिंग लगाई गई थी। सामने वाली दीवार पर लगभग आधी दीवार को ढाँकता हुआ रेशमी यूनियन जैक लगाया गया था। ये दोनों दीवारें मानो उसी हॉल में चर्चा करते हुए लोगों को धमका रही थीं,  ‘यहाँ सिर्फ साम्राज्य और सम्राज्ञी के हितों के बारे में ही चर्चा की जाएगी।’  हॉल की भव्यता और वहाँ के वातावरण से प्रतिनिधि कुछ दबाव में आ गए थे ।

मन के क्रोध को चेहरे पर न दिखाते हुए गॉडफ्रे ने हॉल में प्रवेश किया। उसके चेहरे पर मुस्कान थी। तूफ़ान में परिस्थिति का सामना कैसे करना चाहिए और जहाज़ को बन्दरगाह में सुरक्षित किस तरह लौटाना चाहिए इस बात में वह माहिर था। परिस्थिति के अनुसार अचूक निर्णय लेना उसकी विशेषता थी।

''Good noon, boys.’’ अपने मन की थाह न देते हुए गॉडफ्रे ने संवाद साधने का प्रयत्न किया। मेज़ के किनारे रखी एक लम्बी–चौड़ी नरम कुर्सी में वह रोब से बैठ गया। गॉडफ्रे के हॉल में आने के बाद उसके सम्मानार्थ कोई भी प्रतिनिधि उठकर खड़ा नहीं हुआ,  इसका उसे गुस्सा आया। उसने मन में निश्चय कर लिया कि इन प्रतिनिधियों को दिखा देगा कि उसकी नज़र में उनके संघर्ष का रत्तीभर भी मोल नहीं है।

‘‘विद्रोह में सम्मिलित पन्द्रह हज़ार सैनिकों का हम प्रतिनिधित्व कर रहे हैं।’’ खान ने अपना परिचय दिया।  ‘‘हमारी समस्याओं तथा माँगों से आपको अवगत कराने के लिए आए हैं।’’

गॉडफ्रे पलभर चुप रहा। उसने प्रतिनिधियों के मन पर दबाव बढ़ाने का निश्चय किया।

‘‘मैंने तुम्हें बुलाया नहीं था।’’  गॉडफ्रे की आँखों में एक विशेष चमक थी।

‘‘ठीक है। हम आए हैं, इसका कारण यह है कि आपकी सरकार ने यदि हमारी माँगें मान्य कर लीं तो सब कुछ सामंजस्य से समाप्त हो जाएगा, यह आपको बताना था ।’’   खान ने शान्ति से उत्तर दिया।

‘‘और यदि ऐसा हुआ नहीं तो परिस्थिति खतरनाक हो जाएगी। और इसकी ज़िम्मेदारी आपकी सरकार पर होगी।’’   कुट्टी चिढ़ गया था।

गॉडफ्रे शान्त था। दोनों एक–दूसरे को तौलने की कोशिश कर रहे थे। मगर सैनिकों पर दबाव बढ़ाने की गॉडफ्रे की कोशिश असफ़ल हो गई थी।

‘‘ठीक है । अब जब तुम लोग आ ही गए हो, तो बातचीत कर लेते हैं, ’’ गॉडफ्रे लम्बी छलाँग लगाने के लिए एक कदम पीछे हटा।

‘‘हम बातचीत करने नहीं आए हैं। हम अपना माँग–पत्र देने आए हैं।’’ बैनर्जी ने फटकारा ।

बैनर्जी के जवाब पर गॉडफ्रे क्रोधित हो गया। जितना उसने सोचा था उतना आसान नहीं था यह मामला।

' Bastards, साले। छाछ माँगने आए हैं और कटोरा छिपा रहे हैं। ठीक है। मैं ही बोलने पर मजबूर करूँगा तुम्हें.’  वह   अपने आप से पुटपुटाया ।

‘‘ठीक है । मत करो बातचीत, मगर माँग–पत्र तो दोगे ना ?’’ उसने हँसते हुए पूछा।

असलम ने माँग–पत्र गॉडफ्रे के हाथ में दिया। गॉडफ्रे ने सरसरी नज़र दौड़ाई और शान्त आवाज़ में बोला, ''well, सब तो नहीं, मगर काफ़ी माँगों पर हम चर्चा कर सकते हैं और मार्ग निकाल सकते हैं।’’

प्रतिनिधि खुश हो गए ।

‘‘मगर इसके लिए स्थिति सामान्य हो जानी चाहिए।’’ गॉडफ्रे ने शर्तें लादना शुरू कर दिया।

 ‘‘मतलब,’’   खान ने पूछा ।

‘‘इस प्रश्न को सामंजस्य से सुलझाने की तुम्हारी इच्छा की मैं तारीफ़ करता हूँ। मेरी भी यही इच्छा है। हम यह सामंजस्य से ही मिटाएँगे। मगर इसके लिए यह ज़रूरी है कि सैनिक अपने–अपने जहाज़ों पर और ‘बेसेस’ पर तुरन्त वापस चले जाएँ।’’

‘‘यह सम्भव नहीं है।’’  खान ने जवाब दिया।

‘‘तो फिर मुझे डर है कि यह सामंजस्य से नहीं मिटेगा।’’ गॉडफ्रे ने जवाब दिया और वह तड़ाक् से उठकर निकल   गया ।

 



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