वैकुंठ
वैकुंठ
सब्ज़ी का थैला, दूध और फलों का थैला पकड़ाते हुए नारायण जी ने पत्नी से कहा “देख लो अलग से फल लाया हूँ, धुले हुए थैले में तुम्हारे ठाकुर जी के लिए और हाँ आज बढ़िया मालदा आम मिल गए...एक फाँक मुझे भी देना...तुम भी एक फाँक ही खाना। कभी -कभी खाने से शुगर नहीं बढ़ेगा। ”
“बहुत अच्छा किया जो आम ले आए”
“कच्चा आम नहीं लाए आचार डालना था?”माधुरी जी ने पूछा।
“हाँ! हाँ ! लाया हूँ...। ”
शाम होते होते नारायण जी बुख़ार से तप रहे थे।
माधुरी जी ने पैरासिटामोल की दवाई दे दी थी लेकिन बुख़ार उतरने का नाम नहीं ले रहा था।
सौरभ बेटा,रीमा बहू,सीमा बेटी -दामाद सब विडियो कॉल करके ढाँढस बँधा रहे थे। डॉ ने ठंडी पट्टी रखने को बोला था। रात भर पट्टी रखने पर सुबह बुख़ार उतर गया। सौरभ बेटा भी शाम के फ़्लाइट से आने का जुगाड़ कर रहा था लेकिन फ़्लाइट रद्द हो गई। माधुरी जी अब घबराने लगी थी क्योंकि नारायण जी को बुख़ार फिर से चढ़ गया था साँस लेने में भी दिक़्क़त होने लगी थी। सभी फ़ोन पर हिदायत दे रहे थे।
सौरभ फ़ोन करके बोला -मम्मी!”कैब भेज रहा हूँ। संजीवनी हॉस्पिटल में डॉ कमल से बात हो गई है। वहाँ पापा को भर्ती करवा दीजिए। मैं कोशिश कर रहा हूँ जल्दी आने का...। ”
माधुरी ने ज़रूरी चीजें ब्रश ,चार्जर,तौलिया,आदि सब एक थैले में रख लिया। नारायण जी को सहारा देकर गाड़ी में बैठा कर अस्पताल पहुँच गई। डॉ कमल भी आ गए थे अस्पताल का मंज़र देख दोनों के होश उड़ गए। पैर रखने की जगह नहीं थी। ज़मीन पर ,गलियारे में हर तरफ़ चीख पुकार,कराहते मरीज़।
एडमिट कराने की प्रक्रिया पूरी हो गई थी नारायण जी की साँसें उखड़ रही थी। नर्स व्हीलचेयर पर बैठा कर बेड तक ले गई। डॉ कमल ने बोला जल्दी ऑक्सीजन लगाओ इनको...तभी नारायण जी की नज़र उस नवविवाहिता पर पड़ी जो डॉ के पैर पड़ रह थी “प्लीज़, मेरे पति को बेड दे दो। ज़मीन पर ही लिटा कर ऑक्सीजन लगा दो...। ”
नारायण जी हाँफते हुए माधुरी को बोले “चलो घर चलो “और डॉ कमल को बोले “मेरा बेड इस नौजवान को देकर जल्दी ऑक्सीजन लगा दीजिए-मैंने तो अपना जीवन जी लिया है। ” इसमें मुझे सौरभ दिख रहा जिसका इंतज़ार इसके माँ बाप कर रहे होंगे। घर पर ही रहकर मैं सुकून से वैकुंठ धाम जाऊँगा। ”