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Vijay Vibhor

Abstract

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Vijay Vibhor

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उम्मीद

उम्मीद

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"माँ-माँ ! देखो पानी बढ़ रहा है, चलो बाहर चलते हैं।" पानी आता देखकर बच्चों ने अपनी माँ को झकझोरा।

"नही बच्चो अभी नहीं। अभी पानी इतना ज्यादा नहीं है।" माँ ने उन्हें ढाढस बंधाया।

जल स्तर धीरे-धीरे बढ़ रहा था। जल स्तर कुछ ज्यादा हुआ तो माँ ने बच्चों को ऊपर ले लिया।

"माँ अब तो बाहर चलो, नहीं तो हम सब डूब जाएंगे।" बच्चों ने घबराते हुए कहा।

"नहीं बच्चो ! बाहर बरसात में आदमी के बच्चे आनंद ले-लेकर खेल रहे हैं। हम सब बाहर निकले तो वे भयभीत होकर चिल्लाने लगेंगे और उनके बड़े लाठी-डंडों से नाहक ही हमें मार डालेंगे। यहाँ पानी मे तो फिर भी हमारे जिंदा रहने की उम्मीद रहेगी।" मादा साँप ने अपने बच्चों को समझाया।


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