कल्पना
कल्पना
"अरे कल्पना! तुम यह क्या कर रही हो ? यह चारपाई और ये बिस्तर ?"
पत्नी को अपने बेडरूम में अतिरिक्त चारपाई बिछाते हुए देखकर ज्ञानेन्द्र बोला।
"पिता जी के लिए चारपाई बिछा रही हूँ, आज से वह यहीं सोया करेंगे।"
"अरे पागल हो गयी हो क्या। हमारी प्राइवेसी का क्या होगा ?' ज्ञानेन्द्र झुंझला गया।
"ज्ञानू ! पिता जी की तबीयत ज़्यादा खराब रहने लगी है। रात को जाने कब उन्हें किस चीज़ की जरूरत पड़ जाए। वह यहाँ सोएंगे तो हमें आसानी रहेगी उनकी देखरेख करने में।"
"तुम जैसी मॉडर्न लड़की और इस तरह की सोच?" ज्ञानेन्द्र हैरान था।
"तुम नहीं जानते, जब मैं छोटी थी तब मम्मी-पापा और हम एक कमरे में और बीमार होते हुए भी मेरी दादी जी अकेली अलग कमरे में सोती थीं। एक सुबह दादी जी नहीं उठी जाने रात को उनके साथ क्या हुआ होगा। यदि हम में से कोई दादी के पास होता तो शायद दादी जी कुछ वर्ष और जी लेती।" ज्ञानेन्द्र टकटकी लगाए कल्पना की बातें सुन रहा था। "सासु माँ के चले जाने के सदमे से अब पिता जी की हालत बहुत ख़राब रहने लगी है। मैं उनकी हर वक़्त देखभाल करना चाहती हूँ। नहीं तो कहीं हमें असमय अनाथ न होना पड़ जाए।"
भीगी पलकों से ज्ञानेन्द्र ने कल्पना को गले लगा लिया, "कल्पना ओ मेरी कल्पना !"