जाति जाती नहीं

जाति जाती नहीं

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कुछ समाज सुधारको ने "समाज-सुधार चिंतन सम्मेलन" आयोजित किया।

चिंतन में सभी ने चिंता जतायी, "जाति है, के जाती नहीं।" साथ ही अंतरजातीय विवाहों के चलन का समर्थन किया।

सम्मेलन समाप्ति के बाद चाय-नाश्ते का दौर चला, तो एक साथी अपने अज़ीज से बोला, "भाई ! मेरी बिरादरी वालों के साथ तुम्हारी बहुत ऊठ-बैठ है। मेरा बेटा अब शादी लायक़ हो गया है। मेरी बिरादरी में उसके योग्य कोई लड़की हो तो बताना।"


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