उल्लू - 004
उल्लू - 004
पुलिस के पहुंचने तक हेमंत की काफी पिटाई हो चुकी थी और रमा भी पूरी तरह तैयार थी लिहाज़ा पुलिस के साथ आने वाले मीडिया के कई रिपोर्टर्स के कैमरा चमकने आरम्भ हो गए और पार्टी में मौजूद लगभग सभी प्रत्यक्षदर्शी बढ़ चढ़ कर हेमंत के चरित्र की धज्जियां उड़ाने में व्यस्त हो गए।
पुलिस कार्यवाही समाप्त होने से पहले ही हेमंत पूरे शहर में बदनाम किया जा चुका था। उसके द्वारा सर्च किये गए गूगल एवं सोशल मीडिया पेज से लेकर उसका कॉल डिटेल आदि समस्त प्राइवेट जानकारी आम पब्लिक में पहुंच चुकी थी। राजेश ने सारी रात भाग दौड़ की थी इसके बावजूद राजेश अगले दिन कोर्ट में मौजूद था जहाँ हेमंत को पेश किया जाना था।
अगले दिन जब उसे कोर्ट में पेश किया गया तब उसके खिलाफ नारेबाजी करते हुए कई जुलूस शहर के कई इलाकों का दौरा करते हुए कोर्ट में जमा हो चुके थे जिसका संचालन राजेश कर रहा था। इंसाफ की कुर्सी पर मौजूद जज साहब भी दबाव में थे और उन्होंने हेमंत को बिना किसी की बात सुने ही पुलिस कस्टडी में भिजवा दिया। जज साहब की आंखें उनके पीछे लगी मूर्ति की तरह ही बंद थी उन्हें सिर्फ वही दिख रहा था जो मीडिया और प्रायोजित पब्लिक उन्हें दिखा रहा था।
इस पूरी भेड़ चाल में एक व्यक्ति ऐसा भी था जिसने रमा को कपड़े फाड़ते देखा था और वो पुरजोर तरीके से बताने का प्रयास भी कर रहा था परंतु उस मित्र की बात ना तो किसी ने सुनी और यदि किसी ने सुनी तो तवज्जो देने की आवश्यकता महसूस नहीं कि क्योंकि सबके लिए ना तो जांच का कोई अर्थ था और ना कोर्ट का यदि कुछ मायने रखता था तो रमा का बयान।
इस सबके साथ साथ एक और घटनाक्रम बहुत तेजी से चल रहा था। जिस वक़्त राजेश कोर्ट के बाहर जुलूस का संचालन कर रहा था ठीक उसी वक़्त रमा की बहन और कुछ अन्य रिश्तेदार हेमंत के माता - पिता के साथ सौदेबाजी कर रहे थे। सौदेबाजी की जानकारी राजेश को स्वयं रमा ने यह कहते हुए दी थी की वह हेमंत का भविष्य बर्बाद नहीं करना चाहती परन्तु उसे सबक दिया जाना आवश्यक है इसीलिए उससे वह बंगला छीन लिया जाये जो उसके माता - पिता ने अपने पूरे जीवन की बचत से बनवाया है।
राजेश को रमा की मासूमियत पर प्यार आ रहा था क्योंकि उसके लिए रमा के शब्द ही आखिरी थे।