त्यूपा का नाम त्यूपा क्यों पड़ा

त्यूपा का नाम त्यूपा क्यों पड़ा

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जब त्यूपा को बहुत अचरज होता है या वो कोई समझ में न आने वाली या दिलचस्प चीज़ देखता है तो वह जल्दी जल्दी अपने होंठ हिलाता है और त्युपत्युपाता है : “त्युप-त्युप-त्युप-त्युप।”

हवा के कारण घास सिहरती हो, छोटा सा पंछी उड़ते हुए गया हो, तितली फड़फड़ाई हो – त्यूपा रेंगने लगता, पास जाता है, छुप जाता है और त्युपत्युपाता है “त्युप-त्युप-त्युप-त्युप। “लपक लूँगा! हिलगा लूँगा! पकड़ लूँगा! खेलूँगा!”

इसीलिए त्यूपा का नाम त्यूपा पड़ गया।

त्यूपा ने सुना कि कोई पतली-सी आवाज़ में सीटी बजा रहा है।

देखा कि गूज़बेरी की झाड़ियों में, जहाँ काफ़ी घना जंगल सा है, भूरे रंग के चंचल पंछी खा-पी रहे हैं – पेड़ के ठूँठों में ढूँढ़ते हैं, कहीं छोटे-छोटे कीट-पतंगे तो नहीं हैं।

त्यूपा रेंगता है। लुकते-छुपते आगे बढ़ता है। त्युप-त्युप भी नहीं करता – पंछियों को डराना नहीं चाहता। नज़दीक, बिल्कुल नज़दीक रेंग जाता है और क्या छलांग लगाता है – ज़ूम्! कैसे पकड़ता है।।मगर, नहीं पकड़ा।

पंछियों को पकड़ने के लिए त्यूपा अभी बड़ा नहीं हुआ है।

त्यूपा – स्मार्ट-अनाड़ी है।

त्यूपा को मार पड़ी। ये नेपून्का ने, त्यूपा की माँ ने, उसे झापड़ मारा। अब उसके पास त्यूपा के लिए फुर्सत नहीं है। नेपून्का इंतज़ार कर रही है, जल्दी ही उसके और बिलौटे होंगे, नए नन्हे-नन्हे दूध चूसने वाले।

उसने जगह भी चुन ली थी – एक बास्केट। वहाँ वो उन्हें दूध पिलाया करेगी, लोरियाँ सुनाएगी।

त्यूपा अब उससे डरता है। पास भी नहीं जाता। किसी को भी झापड़ खाने का शौक नहीं होता।

बिल्लियों की आदत होती है: नन्हे को दूध पिलाती है, और बड़े को दूर भगाती है। मगर नेपून्का-बिल्ली के बिलौटों को कोई उठाकर ले गया।

नेपून्का भटक रही है, बिलौटों को ढूँढ़ रही है, उन्हें पुकार रही है। नेपून्का के थनों में दूध बहुत है, मगर पिलाने के लिए कोई नहीं है।

उसने उन्हें ढूँढ़ा, खूब ढूँढ़ा, और अचानक त्यूप्का को देखा। वो उससे छुप रहा था, झापड़ खाने से डर रहा था।

और तब नेपून्का ने फ़ैसला कर लिया कि त्यूपा – त्यूपा नहीं, बल्कि उसका नया दूध पीता बिलौटा है, जो खो गया था।

ख़ुश हो गई नेपून्का, और वह म्याँऊ-म्याँऊ कर रही है, नन्हे को बुला रही है, उसे दूध पिलाना चाह रही है, सहलाना चाहती है।

मगर त्यूपा – होशियार है, वो नज़दीक नहीं जाता।

उसे कल ही तो सहलाया था – अब तक याद है!

और नेपून्का गा रही है:

 “आ जा, दूध पिलाऊँगी” – एक करवट को लेट गई। नेपून्का का दूध गरम-गरम है। स्वादिष्ट है! त्यूपा ने अपने होंठ चाटे। वह काफ़ी पहले अपने आप खाना सीख गया था, मगर उसे याद है।

नेपून्का त्यूपा को मना रही थी।

उसने दूध पिया और – सो गया।

मगर तभी दूसरी अचरजभरी बात हुईं।

त्यूपा तो बड़ा है ना। मगर नेपून्का के लिए तो वह छोटा ही है!

उसने त्यूपा को पलटा और चाट-चाटकर उसे साफ़ करने लगी।

त्यूप्का जाग गया, उसे बड़ा अचरज हुआ, ये क्यों, किसलिए ? वो ख़ुद ही अपने आप को साफ़ कर सकता है। वो जाना चाहता था। मगर नेपून्का उसे मना रही थी         

“सो जा तू, मेरे नन्हे, किसी के पैरों के नीचे आ जाएगा, खो जाएगा”।

लोरी गाती रही, गाती रही, और ख़ुद ही सो गई।

तब त्यूप्का बास्केट से बाहर आया और अपने काम करने लगा। ये काम, वो काम।

तितलियाँ पकड़ने लगा। चिड़िया के पास दबे पाँव पहुँचा।

नेपून्का जाग गई। आह, उसका त्यूपेन्का कहाँ है ?

भागकर कम्पाऊण्ड में आई, पुकारने लगी।

मगर त्यूपा छत पर पहुँच गया और वहाँ रेंग रहा है, दौड़ रहा है – किसी पंछी को डरा रहा है।

नेपून्का फ़ौरन उसके पास पहुँची:

 “देख, गिरना नई! फिसलना नई!”

मगर त्यूपा उसकी बात नहीं सुनता।

नेपून्का ने त्यूप्का की गर्दन पकड़ी और नन्हे बिलौटे की तरह उसे छत से ले चली। त्यूपा छिटक जाता है, प्रतिकार करता है, छत से जाना नहीं चाहता।

नेपून्का समझ नहीं पा रही है कि त्यूपा अब छोटा नहीं रहा।


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