Twilight Killer चैप्टर 1
Twilight Killer चैप्टर 1
1 जनवरी, 2031
मुंबई सेंट्रल, भारत
आज नया साल था, आतिशबाजी होनी थी...रातों में लोगों के जुलूस निकलने वाले थे, नए साल की खुशी में कई जगहों पर बड़ी-बड़ी दावतें होने वालीं थी। पूरा का पूरा देश ही वैसे तो नए साल को बहुत ही धूम-धाम से मनाता था पर मुंबई-गोआ की बात ही कुछ और थी। सड़कों पर न सिर्फ अलग-अलग धर्म के लोग जश्न मनाने की तैयारी में थे बल्कि विदेशियों में भी अच्छी खासी उमंग और उत्साह था। यहीं तो वो दिन था जब दुनिया भर की सारी परेशानियों को भूलते हुए सभी के मन में केवल एक ही जज्बात रहता था......मौज और मस्ती।
पूरा शहर अब जगमगा रहा था, थोड़ी ही देर में नए साल का जश्न मनाने के लिए छरहरे युवा-युवती अपने घरों से भरा निकलने वाले थे। इतनी भीड़-भाड़ में कोई भी झगड़ा फसाद न हो इसलिए पुलिस का कड़ा पहरा था, इस तरह के जश्न के माहौल के बीच ही अक्सर दुनिया भर की लड़ाइयां हुआ करती थी। युवा-युवती पार्टियों में जाया करते थे और यूँ ही शराब पीकर किसी पब में तो कभी किसी प्राइवेट प्रॉपर्टी में बेसुध से पड़े रहते थे। इस पूरी रात पुलिस एक बार भी पालक नहीं झपक पाती थी, क्योंकि जरा नजर क्या हटी दुर्घटना घटी!
पुरानी मुंबई के इलाके से अब सभी मनचले युवक-युवतियों की भीड़ निकलते हुए मुंबई सेंट्रल की ओर बढ़ रही थी, कोई बाइक पर था तो कोई कर में! लड़कियां चमकीले से भड़कीले वस्त्रों में लिपटी हुई थी जो ज्यादातर घुटनों तक जाने वाली बिना बटन-चेन की ड्रेसें थी....इस में भला लड़के कहाँ से पीछे हटने वाले थे, जीन्स-जैकेट और रात में काले चश्मों से भरे हुए काले-गोर चेहरे पूरे स्वाभिमान (Attitude) के साथ चले जा रहे थे मुंबई सेंट्रल की ओर.......
“अरे सर! क्या बात है? कुछ परेशान से लग रहे है......क्या मुंबई की भीड़ से आपको घबराहट हो रही है..” एक अधेड़ उम्र के हवलदार ने पास की लालबत्ती वाली गाड़ी से टिक कर खड़े हुए एक जवान से इंस्पेक्टर से कहा
वो इंस्पेक्टर अपने चेहरे पर कुछ चिंताएं लिए हुए खड़ा हुआ था और बार-बार अपने स्मार्टफोन पर कुछ देख रहा था
“चिंता तो होगी ही ना?... तुम भी जानते हो कि इस वक्त पूरा का पूरा ‘सिस्टम’ हिला हुआ है” उसने जवाब दिया
“अरे अतुल साहब अभी आप मुंबई में नए है” उस हवलदार ने जैसे समझाया “इस तरह के ‘क्राइम’ यहाँ पर आम है, कोई किसी को मार भी डालता है तो भी पूरी मुंबई को कोई ख़ास फर्क नहीं पड़ता। लोगों को भला इस बात से क्या मतलब की कोई मर गया है? उनके लिए तो जो अपना है सिर्फ उसी से फर्क पड़ता है”
“बात यह नहीं है हवलदार.....श्यामलाल” अतुल ने अपनी टोपी को उतारते हुए कहा “वो आदमी जिसे CBI ने तहकीकात के लिए पकड़ा था और इतनी कड़ी सुरक्षा के बाद भी भाग निकला और आज इस सब को 1 हफ्ता हो गया है पर....”
“पर क्या अतुल साहब” श्यामलाल मुँह टेढ़ा करते हुए बोला
“CBI की मार से डर कर ही तो भागा था न वो?....आखिर उसने इस देश के बहुत ही जरूरी शख्श को मारा था और तो और वो उसका दोस्त था, अब उसमें इतनी हिम्मत कहाँ की वो वापस आये”
“अगर उसे अपनी आंखों से देखते तो तुम ऐसा नहीं कहते” अतुल की आवाज में ठंडापन था जैसे किसी तरह की बात उसे अंदर से परेशान कर रही हो
“अच्छा साहब, तो कैसा था आपका यह भगोड़ा?.....और क्या नाम था उसका....अभय जैसा कुछ था न?” श्यामलाल ने अपने दिमाग पर जोर डाला
“अभय नहीं श्यामलाल! ‘जय अग्निहोत्री’, विंटर पब्लिकेशन हाउस(Winter publication house) का मालिक जो यहाँ पर भले ही मशहूर न हो पर जापान में उसका पब्लिकेशन हॉउस सबसे बड़ा ‘मनी-मेकर’(Money maker) माना जाता है” अतुल ने काफी इज्जत के साथ बताया
“हां...हाँ.. होगा कोई पैसों के पेड़ को हिलाने वाला, वो छोड़िए यह बताइए कि आपने उसमें ऐसा क्या देखा जो आप इतने प्रभावित हो गए”
श्याम लाल के सवाल पर अतुल ने गहरी सांस छोड़ी और एक पल के लिए आंखें बंद की जैसे मन ही मन वह उस जय का चेहरा त्यार कर रहा हो
“जब उसे CBI के पास ले जाया जा रहा था तब उसकी आंखें किसी मरी हुई मछली की तरह थी जो पानी की तड़प में मर गयी हो। उसका चेहरा इतना दुखी था कि वो जिंदा होते हुए भी मरा हुआ लग रहा था.......उसे देख कर मैं पूरे विश्वास से कह सकता हूँ कि उसने अपने दोस्त का खून नहीं किया होगा, पर सारे सबूत उसके खिलाफ थे.......न्यूज़ मीडिया वालों ने भी उसकी कहानी में उसे ही इतना खतरनाक विलेन बना दिया कि जो उसने नहीं भी किया हो तो वह भी उसके माथे चढ़ा दिया। और उसके भाग जाने पर मुझे घबराहट इसलिये हो रही है क्योंकि वो तो वैसे ही मर चुका था.....अगर सब कुछ खत्म ही हो गया था तो भला वो वहाँ से भागता ही क्यों?”
“अरे सर! मौत का डर बहुत ही बड़ा सत्य है बड़े से बड़ा आदमी भी मौत से डरता है। उसका भागना कोई बड़ी बात नही है?” श्यामलाल अतुल को इतने दबाव के साथ इसलिए समझा रहा था क्योंकि अतुल एक केस को लेकर अगर इतना ही परेशान रहने वाला था तो वह अपने काम पर ध्यान नहीं दे पाएगा।
आखिर उन दोनों ने ये सब बातें छोड़ दी और जश्न शुरू होने की राह देखने लगे, भले ही अतुल वहाँ पर नया था पर वह भी यह जनता था कि नए साल के जश्न की बात कुछ और ही थी। लोगों को इतना खुश देखना बहुत ही अच्छा अहसास था......
“खर्रsssss खररsssss......... ऑल... ऊनि......खररsssss,..................”
अचानक ही अतुल की पुलिस जीप के हैंडल पर लगा हुआ वॉकी-टॉकी सिग्नल की प्रॉब्लम वाली आवाज में बजने लगा। उसमें से कुछ आवाज आई भी तो भी उसमें कुछ समझ ही नहीं आया.....
“लगता है सिग्नल में कुछ गड़बड़ है” श्यामलाल ने वॉकी-टॉकी की तरफ देखते हुए कहा
अतुल को फिर भी थोड़ा सा अजीब लग रहा था, क्योंकि जहाँ-जहां पर पुलिस तैनात थी वहां पर तो सिग्नल की कोई भी प्रॉब्लम नहीं थी तो फिर भला अभी जो आवाज आई थी वो कहाँ से हो सकती थी? ‘मैं कुछ ज्यादा ही सोच रहा हूँ’ अतुल ने मन ही मन सोचा और वापस जीप से टिक कर श्यामलाल के साथ बातें करने लगा।
“अटेंशन एवरीवन(attention everyone)!” वॉकी टॉकी से यह आवाज सुनते ही अतुल और श्यामलाल का पूरा ध्यान जीप के अंदर राखर वॉकी-टॉकी के ऊपर गया, यह आवाज पुलिस कॉमिशनर की थी। कॉमिशनर से सीधे आदेश आना बहुत ही मुश्किल हालातों में होता था
“! सारे थानों के इंस्पेक्टर और ऊपर के ऑफिसर्स को आदेश दिया जाता है कि इसी वक्त जश्न के लिए लगी हुई ड्यूटी से आपको मुक्त किया जाता है...आप सभी को इसी वक्त नवी मुंबई के सेक्टर 1 मैं आने का आदेश दिया जाता है, यहाँ पर.....कत्लेआम हुआ है!....” अतुल के पसीने छूट गए, उसके मन में पहले से ही किसी बात को लेकर असुरक्षा थी पर उसे भी उम्मीद नहीं थी कि अब कुछ इतनी जल्दी बिगड़ जाएगा, “इसी वक्त शहर में कर्फ्यु लगाया जाता है, बाकी के सारे पुलिस अफसर हर हालत में लोगों को वापस उनके घर में पहुंचाए,”
जो रास्ते कुछ समय पहले जश्न की तैयारी कर रहे थे वो अगले ही पल पुलिस की घूमती जीपों से भर गए। हर जीप एक लाल रंग के बिजली वाले भोंपू से चिल्लाते जा रहे थे...’शहर को इसी वक्त कर्फ्यु के अंदर बंद किया जाता है, सभी से आग्रह है कि वे अपने घरों में वापस चले जाएं.......’.....यह कर्फ्यु का आर्डर है जो कोई भी बाहर मिलता है उसे हवालात में डाल दिया जाएगा, कृपया सतर्क रहें!”
अतुल ने यह सब देख तो वह जल्दी से सेक्टर 1 की ओर अपनी जीप में बैठ कर निकल पड़ा...उसकी धड़कने तेज थी। कत्ल होना आज कल ऐसी बात थी जिस पर किसी का भी कोई खास ध्यान नहीं जाता था पर पूरे शहर में कर्फ्यू लगाना पड़े? यह बात अतुल को कुछ पच नहीं रही थी....
सेक्टर 1, नवी मुंबई
पुलिस की करीब 20 गाड़ियां अगले ही पल सेक्टर 1 में एक के बाद एक पहुंच गई, उन्हें आता है देख कर इस तरह लग रहा था जैसे चीटियों कि कतार चल रही हो। पुलिस के सायरन की आवाज कुछ ही देर में एक प्राइवेट प्रॉपर्टी में आकर खत्म हो गयी! वो एक बड़ा सा बंगला था जो सामान्य कॉलोनियों से काफी दूर बना हुआ था। इतनी भीड़ वाली मुंबई में इस तरह का दूर और अकेला बंगला होना बहुत ही मुश्किल था बाहर से तो लंबी-लंबी झाड़ियों की एक बाउंड्री ने अंदर की हर एक चीज को किसी दीवार की तरह ढंक रखा था, अंदर की तरफ शांति नहीं थी जाहिर है पहले ही कमिश्नर वहाँ पर अंदर मौजूद थे और बंगले के बाहर ही पुलिस का पहरा लगा हुआ था। अलग-अलग थानों के इंस्पेक्टर अंदर की ओर जाने लगे, अतुल ने भी उनके पीछे जाना ही ठीक समझा। उस सफेद रंग के लोहे के जालीदार दरवाजे को पार करते ही एक अजीब सी ठंडक वहाँ की हवा में महसूस हुई, धीमी बहती हुई हवा में एक अजीब सी गीली-गीली गंध थी। अतुल के बदन में झुरझुरी छूट गयी, एक पल के लिए उसने अपने बाजुओं को तेजी से घिसा और जैसे ही उन इंस्पेक्टर्स के बीच से आगे होकर उसने देखना चाहा; उसके गले में सांस अटक गयी...........
उसकी आँखों के सामने एक सफेद शेर की मूर्ति को लिए हुए पानी का फव्वारा था जिसके चारों और काली टीशर्ट पहने हुए करीब 10 लोगों की कटी हुई लाशें पड़ी हुई थी! किसी की गर्दन स्ट्रॉ(Straw) की तरह पीछे की ओर मुड़ी हुई थी तो किसी का सर धड़ से अलग जमीन में पड़ा हुआ था...तो किसी की छाती में गहरे घाव थे जैसे तलवार जैसे किसी हथियार से वार किया गया था। उन लोगों की आंखें भी बंद नहीं थी, मक्खियां कभी खून को चाटती हुई भिनकती तो कभी उनकी खुली आँखों को बेरहमी से खाने की कोशिश कर रहीं थी। सफेद रंग का फव्वारा लाल रंग में भिड़ा हुआ था, पानी भी ब तक खून से पूरा लाल हो गया था, यह नजारा इतना विभत्स्य था कि पुलिस ऑफिसर्स की तबियत खराब होने लगी थी।
“सभी ऑफिसर्स इस तरफ आओ...!” यह आवाज मुंबई सेंट्रल के सीनियर कमिश्नर राकेश रॉय की थी जिनके अंदर में पूरा मुंबई का पूरा पुलिस फ़ोर्स काम करता था, वो आगे की ओर बंगले के घर के दरवाजे की ओर खड़े हुए थे
सभी पुलिस ऑफिसर्स ने अपने अपने सफेद रुमाल को बाहर निकाला और नाक मुँह सिकोड़ते हुए आगे बढ़ गए और आगे जहां पर कमिश्नर राकेश खड़े हुए थे वहां जाकर जो उन्होंने देखा वह उनकी कल्पना से भी परे था, सामने हर जगह पर उन बोडीगार्डस की लाशें पड़ी हुईं थी, खून तो ऐसे पड़ा हुआ था जैसे बारिश के बाद का पानी हो। इतनी सारी लाशें देखना आसान नहीं था
“सभी मेरे पीछे अंदर चलो, कुछ बातें अंदर करना ही अच्छा होगा” कमिश्नर की आवाज बिना भाव की थी जैसे यहाँ पर कोई भी जज्बात कीमती नहीं था
सभी ने बंगले के घर में आगमन किया, अगर वहां पर हर जगह लाशें और खून नहीं पड़ा होता तो इस वक्त वो बंगला किसी राज घराने के महल से कम नहीं था। फर्नीचर की सुन्दरस्त दीवारों की नक्काशियों से पूरी तरह से मेल खा रही थी, दीवारों पर तंगी हुई तस्वीरें अपन कीमत बता रहीं थी। कुछ दूर अंदर जाने पर एक कमरे के दरवाजे पर लोहे की प्लेट लगी हुई थी जिस पर लिखा हुआ था ‘कंट्रोल रूम’ सभी कमिश्नर के पीछे अंदर चले गए जहाँ पर पहले से ही टेक्निकल टीम के कुछ सदस्य कंप्यूटर्स के डेटा निकाल रहे थे।
“वो फुटेज दिखाओ....” कमिश्नर की बात सुनते ही कंप्यूटर पर बैठे आदमी ने एक फोल्डर खोल कर उसके अंदर का आखिरी वीडियो चलाया
“मैं चाहता हूँ कि तुम सभी इस वीडियो को ध्यान से देखों और बताओ कि इस में जो खूनी है....वह कौन है?” कमिश्नर की आवाज में ऐसी अस्थिरता थी जैसे वे इस सवाल का उत्तर जानते थे पर मनना नहीं चाहते थे।
सभी पुलिस ऑफिसर वहाँ पर घेरा बना कर खड़े हुए थे, उनकी नजर उस वीडियो पर थी। उस वीडियो को फस्फोरवार्ड करके दिखाया गया तो अभी एक घण्टे पहले के समय में वीडियो चलने लगा। उसमें साफ दिख रहा था कि ‘अचानक ही कैमरे जो सब कुछ देख रहे थे एक-एक करके बंद होने लगे थे, कंट्रोल रूम्स की tv स्क्रीन्स काली पड़ने लगीं थी। कंट्रोल रूम में सभी हड़बड़ा गए थे और अपनी-अपनी बंदूक निकालने लगे थे, ऐसा लग रहा था जैसे उनकी घबराहट सातवें आसमान पर थी और वे जानते थे कि कौन आ रहा है! अभी वो अपनी बंदूक भी संभाल नहीं पाये थे की दरवाजा धड़ल्ले से गिर गया और एक काले सामने कोट में एक आदमी अंदर आया जिसने पूरे कपड़े काले ही पहन रखे थे और ऊपर से एक काली गोल टोपी पहने रखी थी जिस से उसके चेहरे तक रोशनी नहीं पहुँच रही थी। आते ही जिस-जिस ने उस पर बंदूक तानी, एक हाथ बराबर की ‘कटाना’ तलवार से उसने इतनी फुर्ती से हमला शुरू किया जैसे वो इंसान न होकर कोई किलिंग मशीन हो और उसके हर एक बार मैं एक धड़ जमीन पर खून उछलता हुआ गिरने लगा। उसकी बर्बरता को देख कर सभी के शरीर कांपने लगे थे, उनसे गन पकड़ते भी नहीं बन रहा था फिर भी जिस ने भी गोली चलाई, उसका निशाना लगा ही नहीं और उस काली टोपी वाले ने सभी को एक ही झटके में बड़े ही आराम से मार दिया। आख़िर में एक आदमी जो बच गया था उसे पकड़ कर उस खूनी ने दीवार से टिका दिया और उस से कुछ सवाल किए...कुछ देर की पूछताछ के बाद उसने उस आदमी के सर पर तलवार का हैंडल मारा और अपनी बेल्ट से एक हैवी रिवाल्वर निकाली जो की बहुत ही पुरानी लग रही थी किसी एंटीक की तरह। एक पल के लिये उसका चेहरा कंट्रोल रूम के अंदर लगे हुए 360 डिग्री कैमरे की ओर घूम गया और उसने एक ही गोली में कैमरा उड़ा दिया और स्क्रीन काली हो गयी’
उस एक पल के लिए सभी ने उसका चेहरा देख लिया था, पर आंखे अब भी टोपी की छांव में धुंधली ही दिख रहीं थी। पर इतना ही काफी था पहचान करने के लिए...सभी की आंखें फटी हुई देख रहीं थीं, चेहरे की हवाइयां उड़ चुकी थी
“तोsssssssss.......... कोई बताएगा की अभी-अभी वो खूनी कौन था?” कमिश्नर ने सभी की आंखों में देखा, उनमें असमंजस भी था उर जवाब भी
“ये तो सर वहीं ‘विंटर पब्लिकेशन हाउस’ का मालिक है ना जिसने अपने दोस्त का खून कर दिया था” के बड़ी मूछ वाला अफसर बोला
“हाँ ये वहीं है इसमें कोई शक नहीं। जिसने ड्रग रिसर्चर मिस्टर नवल सरकार का खून किया था” पीछे से कोई बोला
“CBI ने इस केस को हमसे ले लिया था और उसके बाद यह अभी 1 हफ्ते पहले ही तो उनकी पकड़ से भाग गया था ना?... क्या नाम था इसका...?” सामने खड़े हुए एक अफसर ने सोचते हुए पूछा
पर अतुल को सोचने की कोई भी जरूरत नहीं थी। झटका इतना जोर का था कि अतुल का दिल जोर-जोर से धड़क रहा था, उसके हाथ कांपने लगे थे। कपट हुए होंठों पर लिहाज रखते हुए वो बुदबुदाया
“यह तो ‘जय अग्निहोत्री’ है!..............”
