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Priyanka Gupta

Drama Inspirational

4.5  

Priyanka Gupta

Drama Inspirational

तुम्हारे सपनों के लिए अभी तुम्हारे पापा ज़िंदा हैं

तुम्हारे सपनों के लिए अभी तुम्हारे पापा ज़िंदा हैं

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"रागिनी तुम यह जॉब छोड़ क्यों नहीं देती? घर में किसी चीज़ की कमी नहीं है। मैं अकेला ही घर चलाने के लिए काफी हूँ। पता नहीं आजकल की लड़कियों में यह क्या आत्मनिर्भर होने का भूत चढ़ा है? जब तक मेरी आमदनी कम थी, तब तक तुम्हे नौकरी करने दी न? अब बहुत हो गया। " वरुण अपनी पत्नी रागिनी का जवाब सुने बिना ही बिना नाश्ता किये ऑफिस के लिए निकल गया।

वरुण के पापा राजेश जी रसोई की तरफ पानी पीने के लिए जा रहे थे, तब ही उनके कानों में वरुण की बातें पड़ गयी थी। उन्होंने वरुण को बिना नाश्ता किये जाते हुए भी देख लिया था। उन्होंने निश्चय कर लिया था कि शाम को वरुण से बात करेंगे।

कुछ देर में रागिनी ने राजेश जी से नाश्ते के लिए पूछा। राजेश जी ने कहा, "बेटा, आज मैं हम दोनों के लिए नाश्ता लगाता हूँ और साथ ही तुम्हारी पसंद की इलायची वाली चाय भी बनाकर लाता हूँ। तुम पीकर बताना इतने दिन में चाय बनाना सीखा भी हूँ या नहीं। रोज़ तो तुम ही हम तीनों के लिए नाश्ता लगाती हो। "

रागिनी के बार -बार मना करने पर भी राजेश जी ने दोनों के लिए चाय और नाश्ता लगा ही दिया। अनमनी सी रागिनी, डाइनिंग टेबल पर बैठ गयी। बिना कुछ बोले, रागिनी चुपचाप धीरे -धीरे अपना नाश्ता करने लगी।

राजेश जी ने कहा, "बेटा, आज तुम्हे ऑफिस नहीं जाना है क्या ?इतना धीरे -धीरे नाश्ता करोगी तो देर नहीं हो जायेगी। "

राजेश जी की बात सुनकर, रागिनी के लाख रोकने पर भी उसकी आँखों से पानी बहने लगा। अपने आंसू पोंछते हुए बोली, "नहीं पापा, आज अपना इस्तीफ़ा देने की सोच रही हूँ। वरुण की कमाई घर चलाने के लिए काफी है। मुझे नौकरी करने की क्या जरूरत है ?"

"बेटा ये तुम्हारे नहीं, बल्कि वरुण के शब्द हैं। तुम भी अगर इस्तीफ़ा देना चाहती तो तुम्हारी आँखों में उदासी नहीं होती। तुम क्या चाहती हो ?वह महत्वपूर्ण है। "राजेश जी ने कहा।

अब तक अपने आपको संयत कर चुकी रागिनी ने कहा, "पापा, मेरे चाहने से क्या फर्क पड़ता है? वरुण पति है, वह जो चाहेगा मुझे वही करना पड़ेगा।"

रागिनी अपने आप से बड़ा धीरे से कहती है, "कई बार सोचती हूँ शादी से जीवन साथी तो केवल वरुण को ही मिला है ;मुझे तो जीवन स्वामी मिला है।"

"नहीं, तुम्हे इस्तीफ़ा देने की कोई ज़रुरत नहीं है। मैंने तुम्हारी आँखों में तुम्हारी छोटी -छोटी उपलब्धियों पर उभरने वाली चमक को देखा है। तुम अपने काम में इतनी अच्छी हो, तुम्हे किसी और के कहने पर नौकरी छोड़ने की कोई ज़रुरत नहीं है। नौकरी करना या नहीं करना तुम्हारा अपना निर्णय होना चाहिए। " राज

ेश जी ने कुछ देर के लिए विराम लिया।

रागिनी अपने ससुर जी को हैरानी से देखे जा रही थी। उसने आज से पहले उनका यह रूप नहीं देखा था।

"बेटा, तुम सोच रही होगी कि मैं आज कैसी बातें कर रहा हूँ। मैंने भी अपने अहंकार के चलते वरुण की माँ को कभी अपने निर्णय खुद नहीं लेने दिए थे। हमेशा अपने निर्णय उस पर थोपता रहा। वह अपनी पीएचडी पूरी न कर सके, इसलिए मैंने उसके थीसिस के पेपर्स तक गायब कर दिए थे। मैं जानता था कि वह मुझसे अधिक प्रतिभाशाली है ;इसलिए मैं हमेशा उसे आगे बढ़ने से रोकता रहा। उसके इंटरव्यू कॉल के लेटर तक गायब कर देता था। धीरे -धीरे उसने अपनी दुनिया इस घर तक सीमित कर ली। वह अंदर ही अंदर घुटती रही। इस घुटन ने उसे कई बीमारियां दे दी, उसने शायद जीने की इच्छा ही छोड़ दी थी। और एक दिन वह अपनी ख्वाहिशों और सपनों को अपनी आँखों में लिए ही यह दुनिया छोड़कर चली गयी। " राजेश जी की आँख से भी एक क़तरा आखिर न चाहते हुए भी बह निकला।

रागिनी आँखें फाड़-फाड़ कर अपने ससुर जी को देखे जा रही थी।

"बेटा, सब यही कहते हैं कि सुषमा बिमारी की वजह से चल बसी, लेकिन मैं जानता हूँ उसके मरने की असली वजह मैं था। सब कुछ जानते हुए भी उसने कभी मुझसे कुछ नहीं कहा और न ही झगड़ा किया। और मैं अपनी श्रेष्ठ्ता और अहम् के दम्भ में खुद की जीत पर खुश होता रहा। लेकिन अब समझा हूँ यह तो मेरी सबसे बड़ी हार थी। अपने जीवन साथी को मैं अपना गुलाम समझता रहा;स्वयं को उसका स्वामी। जो भी हमें सहज सुलभ मिल जाता है ;उसकी कद्र हम कहाँ समझते हैं ? मैं रोज़ पश्चाताप की आग में जलता हूँ। मैं अब एक और सुषमा के सपनों को मरने नहीं दूंगा। शायद ऐसा करने से मेरी सुषमा भी मुझे माफ़ कर दे। आज ही मैं वरुण को समझाऊंगा, समझता है तो सही है ; वरना तुम्हारे सपनों को हक़ीक़त का जामा पहनाने के लिए अभी तुम्हारे पापा ज़िंदा हैं। तुम्हे जब बहू बनाकर इस घर में लाया था तो तुम्हारे पापा से वादा किया था कि आपकी बेटी को कभी कोई तकलीफ नहीं होने दूंगा।"

"जी पापा, आपका इतना कहना ही मेरे लिए किसी सपने के सच होने से कम नहीं है। मेरे अपने पापा के बाद आप ऐसे व्यक्ति हैं ;जिसे मेरे सपनों और ख्वाहिशों कि क़द्र है। आज मुझे आप पर और अपने आप पर अभिमान है कि मैं आपकी बहू हूँ। "रागिनी ने मुस्कुराते हुए कहा।

"एक और बात, अपने आप से हमेशा प्यार करना। जिस दिन तुम अपने आप से प्यार करना छोड़ दोगी उसी दिन से तुम्हारे जीने की इच्छा ख़त्म होने लग जायेगी।" राजेश जी ने रागिनी के सर पर प्यार से हाथ फेरते हुए बोला।


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