Shalinee Pankaj

Drama

5.0  

Shalinee Pankaj

Drama

तुम हो

तुम हो

11 mins
442


बरसो बाद उसी शहर में तबादला हुआ जिसको मैं काफी पीछे छोड़ आई थी।आज मेरा अतीत मेरे सामने आ गया न चाहकर भी मुझे यहाँ आना पड़ा।एक मित्र रोहित के अलावा यहाँ कोई नही था।

यहाँ काफी कुछ बदल गया पर नही बदला वो कॉलेज जहाँ हम साथ पढ़े ।टैक्सी में पीछे बैठे मैं रास्तों को देख रही थी। वो कालेज निकला,स्कूल आया। दूर से दिखा जर्जर हो चुका था।लाल बत्ती में गाड़ी रुकी और एक कार बगल में रुकी ऐसा लगा ..तुम हो ...इस चिंतन मात्र से मैं पीछे सरक गयी।शायद भ्रम हो, हाँ भ्रम ही होगा।सुनी थी तुम विदेश चले गए।कुछ पुरानी यादों के साथ मैं अपने रूम में पहुँची।

अगले दिन ऑफिस गयी,सब नए चेहरे कोई अपना सा नही था न कोई पुराना सा।अपने काम मे मैं मसरूफ हो गयी।वक्त बीतता गया सर्द जनवरी आई,और फरबरी.14फरबरी...तुम्हारा बर्थडे उफ़्फ़ !!ये यादें कभी पीछा नही छोड़ती आज अनाथाश्रम गयी,मंदिर गयी,तुम्हारे लिए हमेशा की तरह। ..तुम हो ...मेरी दुआओं में ,मेरी हर सांस में। शहर बदले पर तुम्हारा जन्मदिन और मेरा ये नियम कभी नहीं भूली।तुम साथ नही फिर भी ...साथ हो ..यादों के साथ।मेरे लिए नही हो,फिर भी ...तुम हो...,तुम हो..तो मैं हूँ।

तुम कभी मंदिर नही जाते थे।न जाने क्यूँ ,कभी मैंने पूछा नहीं ।और जब रिया ने एक बार पूछा तो तुमने टाल दिया बार-बार उसके पूछने पर यही कहा "मैं पत्थर को नही पूजता" और फिर शरारत भरे अंदाज़ में मेरी ओर देखते हुए कहा "मेरा भगवान मेरे सामने है""मतलब" रिया के कहने पर! फिर उसी अंदाज में "जिसे जो समझना है वो समझ ले"बहुत चंचल स्वाभाव था तुम्हारा,पर न जाने क्यों मेरे सामने आते ही मौन हो जाते थे बस देखते रहते थे अपलक..और.तुम्हारे निग़ाहों के आकर्षण में मैं भी खींचती चली गयी।तुम मौन रहते थे पर तुम्हारी आँखे बोलती थी। यही से शुरुआत हुई थी हमारी।एक अदृश्य प्रेम की डोर में हम बंध चुके थे।हम स्कूल साथ मे पढ़े पर कभी बात नही हुई तुम एक क्लास आगे सीनियर भी थे मेरे।

तभी फोन की घण्टी बजी और मैं तुम्हारे यादों के भंवर से बाहर आ गयी।रिया का कॉल था "हैलो सुधा कैसी है" मेरी बेस्ट फ्रेंड रिया का कॉल था।लम्बी बातचीत के बाद उसने बताया कि उसकी बेटी यहीं कॉलेज में पढ़ती है जहाँ से हम लोगों ने पढ़ाई की है।कल वार्षिकोत्सव है और वो नही आ पाएगी। मुझे जाने को कह कर मेरे उत्तर का बिना इंतजार किये जिद करने लगी तुझे जाना ही पड़ेगा।और सुन मैंने अपनी बेटी खुशी को भी बता दिया कि सुधा मासी आएगी तू अब चली जाना कल बस मुझे कुछ नही सुनना!!

ऑफिस से घर आई कॉफी ली।कल की छुट्टी ले ली ऑफिस से।फोन की घण्टी बजी 3 बेल... थकावट इतनी ज्यादा थी कि उठी नही और 3घण्टी के बाद फोन शांत भी हो गया।ये 3 घण्टी अक्सर बजा करती थी।पीयूष कल किसी का कॉल आया था।कहीं तुमने तो नही....पीयूष ने कहा "सुधा जब भी तुम्हारी याद आएगी तीन बार बेल बजेगी मतलब "I miss you"और कल मैंने पहली बार कॉल किया था।जब भी तीन छोटी फोन

की घण्टी बजे तुम समझ जाना मेरा है और मैं तुम्ही

मिस कर रहा" पर पीयूष "हाँ सुधा समझता हुँ।तुम मुझसे बात नही कर सकती।और मैं भी अपनी मर्यादा जानता हूँ।"पर पीयूष हम यहाँ बात करते है कभी -कभी पर बस...घर कभी कॉल नहीं करना।"3बेल भी नही" पीयूष ने कहा।पीयूष की जिद अंततः माननी पड़ी।पर तीन छोटी रिंग... न!!अक्सर जब भी पीयूष मिस करता मुझे।तीन रिंग फोन की बजती।

डोरबेल बजने से मेरी तंद्रा टूटी।सामने रोहित आया था। मेडम जी चलिए नही तो देर हो जाएगी।हाँ बस कहके मैं काफी ले आई।रोहित मेरे बचपन का मित्र और पापा के दोस्त के बेटे भी है।पापा औऱ अंकल जी चाहते थे,उनकी मित्रता रिश्तेदारी में बदल जाये। पर मैंने व्यक्तिगत रूप से रोहित को इस रिश्ते के लिए मना कर दिया।वो मान गया,पर दोस्ती की शर्त पे हमारी दोस्ती हमेशा रहेगी।रोहित ने अपनी तरफ से अपने पापा को मना कर दिया बात वहीं खत्म हो गयी।काफी खत्म कर हम सीधे कॉलेज पहुँचे।

कॉलेज जहाँ मैं पढ़ी बहुत कुछ याद आया।रोहित ने कहा"सुधा तुम्हारा कॉलेज अब भी वैसा ही है"हाँ मैंने कहा और आगे बढ़ गए।खुशी का प्रोग्राम देखे बहुत अच्छा लगा।फिर पुरुस्कार वितरण शुरू हुआ।खुशी को टॉप करने के लिए प्राइज मिला।पेरेंट्स के रूप में खुशी ने मुझे स्टेज में आने का इशारा किया।मैं बचना चाह रही थी पर खुशी और इधर से रोहित के जिद की वजह से स्टेज में चली गयी।

डॉ.पीयूष मिश्रा नाम से किसी अतिथि को बुलाया गया।डॉ. पीयूष मैं सोच में पड़ गयी!! नहीं वो नहीं हो सकता। तभी सामने 46 वर्ष के आस पास का व्यक्ति सामने आया।आंखों में चश्मा फिर भी उम्र से कम लग रहा था।अरे ये तो पीयूष है

मेरे सामने आते ही वो भी ठिठक गया।"सुधा तुम.…."सब देखने लगे।खुद को सहज कर वो खुशी को

पुरुस्कार दिया।खुशी ने पैर छुये वो उसके सिर पे आशीर्वाद देते हुए सर पे हाथ रखा।वैसे ही अपलक....मुझे देखते हुए।मैं तुरन्त लौट गई उसने आवाज दिया।जो दूर तक मेरी कान में गूँजते रहे।किसी परिचय का मोहताज नही पीयूष समाज सेवक उसके तारीफे हो रही थी।मैंने दोनों हाथों

से अपने कान बंद कर लिए और सीधे बाहर निकल गयी।

पीछे पीछे रोहित दौड़ा! स्टेज छोड़ पीयूष भी आया।पर मैं तुरन्त टेक्सी से घर आ गयी।मैं नही चाहती थी किसी से मिलना उस वक्त।और उस दिन खाना नही खा पाई,बस कॉफी पीकर लेट गयी।तरह तरह के सवाल मन मे कौंध रहे थे। की वो विदेश चला गया था,फिर यहाँ कैसे?? क्या रिया सब जानती थी।कहीं वो मेरे सामने फिर आ गया तो...नही.नही.. अब समय बदल चुका ,वो शादीशुदा होगा।सुबह हुई डोरबेल की आवाज से नींद खुली।इतनी सुबह कौन होगा कहीं पीयूष तो नही!! मैं सोचती रही तभी रोहित की आवाज आई। पक्का कल के लिए बात करने आया होगा,पर मैं कुछ नही बताऊँगी।खुद को सहज करते हुए हल्की मुस्कान के साथ दरवाजा खोली।

हमेशा मुस्कुराने वाला रोहित आज मौन था।तुझे क्या हुआ मैंने पूछा?

बिना कुछ कहे मेरी तरफ देखा औऱ सोफे में बैठ गया। क्या हुआ रोहित!!रोहित प्रश्नवाचक दृष्टि से मेरी ओर देखता हुआ बोला "सुधा तुम बताओ तुम्हे क्या हुआ??कल वहाँ से बिना बताए आ गयी।औऱ वो जो तुम्हारे पीछे पीछे भागा वो कौन था।"रोहित ने कहा अपनी दोस्ती का वास्ता दिया।रोहित मेरे अतीत के बारे में कुछ नही जानता था। मजबूरन मुझे बताना पड़ा।

सुनो रोहित बात उन दिनों की है जब आठवीं के बाद मुझे आगे की पढ़ाई के लिए

बाबूजी ने गाँव से यहां शिफ्ट किया।मैं सिर्फ और सिर्फ पढ़ना चाहती थी,इसलिए न ज्यादा किसी से दोस्ती,न किसी सांस्कृतिक गतिविधि का हिस्सा बनी।जब ग्यारहवीं में पहुँची तब तक मेरी सहेलियों को पता चल गया कि मैं अच्छा गाती भी हूँ। हॉस्टल में बिजली गुल होने पर सब ऐसे ही कुछ गाना , अंताक्षरी खेलते थे।मेरा अंतर्मुखी स्वभाव था पर धीरे-धीरे सबसे घुल मिल गयी थी।उस दिन एक सांस्कृतिक कार्यक्रम में टीचर ने मेरा नाम पुकारा और मुझे जाना पड़ा,और तालियों की गड़गड़ाहट गूंज उठी, कोई था जिसकी ताली अंतिम तक बजती रही।वो मेरे सीनियर पीयूष थे।अगले दिन सीढ़ियों में हड़बड़ी में,मैं पीयूष से टकरा गई ।वो मुझे देखता रहा अपलक ..और मैं घबराहट में पेन गिरा उसे नही देख पाई क्लास में चली गयी।छुट्टी के समय पेन दिया"हाय मैं पीयूष " ....मैं पेन लेकर चली गयी।

कभी कभी महसूस होता कि वो दो आँखे मुझे निहारती है।अक्सर क्लास में जाते वक्त नजरें मिल जाती।मैं निकल जाती पर वो देखते रहता।जाने क्यों ..उसके निगाह में प्रेम ही दिखता था।एक लगाव सा होने लगा मुझे,जो मेरे बस में नही था।जब वो नही आता तो मेरी निगाहें भीड़ में उसे ढूंढती।पर हमारी कभी बात नही हुई।वो सुंदर,स्मार्ट,चंचल और पूरे समय दोस्तो से घिरा रहता,पर जैसे ही मुझे देखता ..देखते रहता।जैसे कोई मासूम बच्चा हो इतना मौन हो जाता।

परीक्षा का समय आ गया सीनियर को विदाई समारोह देना था।सीनियर्स के लिए गिफ्ट में नाम लिखने का काम मुझे मिला।मेरी कलम रुक गयी,जब पीयूष का नाम आया "हाय मैं पीयूष"....पूरे सत्र में ये एक लाईन ही उसने कहा था।

विदाई समारोह में भी वो बस देखता रहा। और समारोह खत्म होने के बाद जाते वक्त पीछे से सुनिए"आप अच्छा गाती है मैं आपका दीवाना हो गया हूँ।"क्या मैं पलटकर देखी गुस्से में "मेरा मतलब मैं आपके गाने का,आपकी आवाज का दीवाना हो गया,आप बहुत अच्छा गाती है।".. तो... मैंने गुस्से में कहा और चली गयी। दिल कर रहा था कुछ देर और रुक जाऊँ, उसकी बातें सुनु ,वो सुनु जो उसकी आँखे बोलती है!!,पर नही रुकी पता था आज आखिरी दिन है..अब हमारी मुलाकात नही होगी। मेरे होंठो में हलकी मुस्कान थी।और एक अजब सी रूहानी एहसास हुआ दिल की धड़कन बढ़ गयी थी।मुझे समझ ही नही आ रहा कि मुझे क्या हुआ,मैं क्या करूँ.. तेज कदमो से हॉस्टल की तरफ गयी।रास्ते मे रिया मिल गयी।"क्या हुआ सुधा!! रुक तो सही तुझे देखके ऐसा लग रहा की,किसी ने तुझे प्रपोज़ किया हो।"रिया ऐसा कुछ नही है मेरी तबियत ठीक नही बस। "अच्छा!! "रिया ने कहा और जो मन मे आया रिया मुझे चिढ़ाती रही।मैं नजरअंदाज कर हॉस्टल के कमरे में आ गयी।

परीक्षा के बाद गाँव चली गयी।पीयूष के ख्यालों में खोए रहती।ये उम्र नही थी इश्क़ में डूबने की पर बस हो गया प्यार मुझे न भूख लगती,न नींद आती आँख खोलूँ तो बंद पलकों में भी पीयूष रहता था।चाँद को देखती की ये चाँद उसके आँगन में भी होगा।चाँद हम दोनों को देख रहा होगा।छुट्टियाँ खत्म हुई।इस बार बाबूजी ने गाँव से ही कॉलेज के लिए आना जाना के लिए कहा।कॉलेज का पहला दिन था, सीनियर्स क्लास में आ गए।परिचय के लिए पीयूष भी था उनमें।उसने मेरी तरफ हाथ आगे बढ़ाया दोस्ती के लिए,मैंने नमस्ते की मुद्रा में अपने दोनों हाथ जोड़ लिए।अक्सर केंटीन,क्लास के बाहर पीयूष दिख जाता।उसकी नजरें मेरी नज़रों से मिलती बस... मैं आगे निकल जाती।एक दिन सेमिनार था।मेरी आखिरी बस छूट गयी।ठंड का दिञ जल्दी अंधेरा हो गया।कुछ शराबी घूम रहे थे भय में मुझे रोना आ गया।तभी किसी ने कंधे में हाथ रखा पीछे पलटकर देखी तो पीयूष था।मुझे गाँव तक छोड़ने गया 35किलोमीटर पर रास्ते भर कोई बात नही किया ना ही मैंने किया। बस स्टॉप तक मुझे छोड़ा।टिपरि में चाय लिया,और मुझे तब तक देखते रहा,जब तक मैं अपने घर न पहुंच गयी।हमारी धीरे- धीरे दोस्ती हो गयी।न जाने कैसे पीयूष ने दिल तक दस्तक दे दी।पीयूष ने कभी अपने चाहत का इजहार नही किया।और न मैंने कभी उसे दोस्ती के अलावा भी कुछ जतलाया!!पर पीयूष पूरे समय मेरे ख्यालों में रहता।उसे देखे बिना दिन अधूरा सा लगने लगता।इतनी चाहत के बाद भी हमारे बीच मौन ही रहता।न कसमें खाई,न कभी कोई वादा किया।मेरे संस्कार, मुझे प्रेम की इजाजत नही देते थे।मैं यहाँ पढ़ने आई थी सब पता था मुझे फिर भी पीयूष के सामने आते ही दिल की धड़कन बढ़ जाती थी।जिस प्रेम को मैं महसूस नही करना चाहती थी।वो इश्क़ मुझे हो चुका था।

कॉलेज के बाद मेरी शादी की चर्चा चलने लगी।पीयूष का जॉब लग गया।एक दिन तीन छोटी रिंग के बाद फिर चौथी बार फोन की रिंग बजी पीयूष का कॉल था।मुझसे विवाह के लिए बोला,पर मैं कुछ नही बोल पाई। कैसे कहती कि तेरी उल्फत में जीना मुश्किल हो गया।अगर साथ नही चल सके तो पीयूष कैसे रहेगा।ईश्क हो जाना पर उसे निभाना मुश्किल होता है। रुढ़िवादी परिवार से थी।कैसे घर मे कहती कि, मैं किसी को पसंद करने लगी।न जाने कैसे मुझे पीयूष से बेपनाह मुहब्बत हो गयी।पीयूष के बिना कुछ कहे उसके दिल का हाल भी समझ रही थी। सजातीय होने के बावजूद मैं कुछ नही कर पा रही थी। तब पीयूष के घर से रिश्ता आया।बात बन भी गयी। कुंडली मिलान हुआ,औऱ मैं मांगलिक निकल गयी।मेरे घर के लोग भी तैयार नही हुए और पीयूष की माँ तो किसी अनिष्ट के भय से घर आकर मुझसे वचन ले ली सच्चा प्यार करती हो तो उसकी जिंदगी से दूर हो जाओ।एक माँ से किया वादा कैसे तोड़ती।कुछ दिनों बाद मेरी नौकरी का कॉल लेटर आया।रातोरात मां बाबूजी के साथ बहुत दूर चली गयी।बहुत दबाव के बाद शादी न करने के फैसले में अडिग रही।प्रेम पीयूष से तो विवाह किसी और से कैसे कर सकती थी।अकेले होकर भी अकेली नही थी।इस संसार में ...तुम हो....कहीं न कहीं तो, मेरे जीने के लिए इतना काफी था।एकलौती सन्तान थी।अपने माता पिता की पीड़ा समझती थी फिर भी ताउम्र विवाह न करने का संकल्प ले ली।हारकर घर के लोग भी शांत हो गए।कुछ सालो बाद रिया मिली तो पता चला कि पीयूष विदेश चला गया,औऱ मैं निश्चिन्त हो गयी,की वो सम्हल गया होगा।आज इतने सालों बाद वो मिला।शायद उसकी फैमिली हो..अब मैं उससे नही मिलना चाहती।

"नही सुधा" रोहित ने कहा!!पीयूष अपना जॉब छोड़ विदेश से यहाँ आ गया।पीएचडी किया।औऱ एकदिन सब छोड़ समाज सेवा करने लगा।डॉ. पीयूष को कौन नही जानता वो विदेश छोड़ यहाँ क्यों आया होगा!! सुधा तुम्हारे लिए,सिर्फ तुम्हारे लिए,तुम्हारी तलाश में"रोहित बस अब कुछ मत कहो।रोहित चला गया।

आज अपने ऑफिस में मैंने ट्रांसफर की अर्जी लगा दी।"मत जाओ सुधा इतने मुश्किल से मेरी जिंदगी में वापस आई हो,ऐसे मत जाओ"पीछे पीयूष रोहित के साथ खड़ा था।"मुझे तो माँ ने यही बताया कि तुम अपने बाबूजी के दोस्त के बेटे से शादी कर रही हो।फिर भी मैं तुम्हारे इंतजार में भटकता रहा।"ये कहते हुए पीयूष की आँखे भीग चुकी थी।"तुमसे शादी करता तो शायद मरता पर तुम्हारे बगैर मर ही जाऊँगा, सुधा मत जाओ।मेरी आँखें भी भीग गयी मैं पीयूष से लिपट गयी।पर .... सुनो..नही सुधा कुछ मत कहो अब।.पीयूष ने बीच मे ही बात काटते हुए कहा"प्यार तो अपने आप में मुकम्मल होता है,जरूरी नहीं की हमारा नाम भी जुड़े सुधा !!"


Rate this content
Log in

Similar hindi story from Drama