मुज़फ्फर इक़बाल सिद्दीकी

Tragedy

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मुज़फ्फर इक़बाल सिद्दीकी

Tragedy

टॉमी और शेरू (कहानी)

टॉमी और शेरू (कहानी)

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गैस त्रासदी के कारण हुआ पलायन अब फिर वापस अपने घरों को लौट आया था। लेकिन फिर एक अनजाना सा खौफ लोगों के दिल में समाया था। और हो भी क्यों न। जब कोई घटना अचानक घटित होती है तो फिर दुबारा घटने की भी सम्भावना से इनकार तो नहीं किया जा सकता। एक त्रासदी अनगिनत कहानियों को जन्म देती है। जब गैस त्रासदी के कारण विस्थापित लोग अपने घरों को लौटे तो अपने साथ अनेक कहानियाँ भी लेकर आए। जब भी खाली समय मिलता तो अपने-अपने घरों से निकल कर गली के नुक्कड़ पर राजा की चक्की के पास इकट्ठा हो जाते और अपनी-अपनी कहानी एक दूसरे को सुनाते। महिलाएँ घर के ड्योढ़ी पर ही बैठे-बैठे ही एक दूसरे से बतयाती रहतीं लेकिन गली के नुक्कड़ पर बिल्डिंग की छाया में पसरे शेरू को इन सबसे कोई लेना देना नहीं था। हाँ कभी-कभी टॉमी अपने घर की रैलिंग के अंदर से ज़ोर से भौंकती तो इसकी नींद में दखल होता। लेकिन गर्दन उठा कर जब शेरू को आभास हो जाता कि ये टॉमी ही है तो फिर वापस ऐसे सोता जैसे घोड़े बेचकर सो रहा हो। दिन तो उसके लिए जैसे सोने के लिए ही बना हो। जैसे-जैसे शाम के अंधेर गाढ़ा हो जाता तो शेरू अपने ड्यूटी करने के लिए मुश्तैदी से तैयार हो जाता। 

एक तरह से शेरू गली नंबर तीन का बिना न्युक्ति वाला सेक्युरिटी ऑफिसर था। गली के एक ओर सरकारी डिस्पेंसरी की बाउंडरी वाल थी। उसी के अहाते में डॉक्टर साहब का बंगला था जिसमें टॉमी उनके साथ रहती थी। दूसरी तरफ कुल नौ मकान थे। गली का मुँह दूसरी तरफ से बंद था। या यूँ कहें कि वहाँ श्यामलाल ठेकेदार का मकान था। और इसी से सटे गुप्ता जी के मकान में पहली मंज़िल पर देवेश अपने भैय्या-भाभी के साथ रहता था। देवेश उन दिनों बीएससी कर रहा था। एक तो नया-नवेला शहर दूसरे बाहर घूमने फिरने का कोई साधन भी तो नहीं था। बस कॉलेज से आकर सो जाना और शाम को बालकनी में अपना डेरा जमा लेना। वहीँ अपनी एक किताब हाथ में रख ली और बैठ गए रात तक। उसके वहाँ बैठने से एक तो गली का पूरा दृश्य दिखता रहता। दूसरे डॉक्टर की बहन रोज़ी, टॉमी को बाहर घुमाने रोज़ शाम को निकलती और गली के नुक्कड़ तक ले जाकर वापस ले आती। 

आज जैसे ही टॉमी और रोज़ी गली के बाहर निकले शेरू के कान खड़े हो गए और तेजी से भौंकने लगा। शेरू का भोकना देवेश के लिए संकेत था कि अब रोज़ी और टॉमी आने वाले हैं। देवेश भी अपनी कालर-वालर ठीक करके सीधा खड़े हो गया। रोज़ी ने उड़ती नज़र से देखा लेकिन उसकी आज वो हल्की सी मुस्कान गायब थी। यह क्रम रोज़ ही चलता था। लेकिन आज तो देवेश को वह टॉनिक नहीं मिला जो उसे एक अलग ही तरह की एनर्जी देता था। सोचा कुछ गड़-बड़ ज़रूर है। जब तक रोज़ी नुक्कड़ से वापस आई ये भी रास्ते में खड़ा हो गया। और टॉमी को पुचकारने लगा। टॉमी भी बजाय भौकने के इसके पास खड़े होकर पूछ हिलाने लगी जैसे इन दोनों के दिलों के हाल वह बहुत अच्छे से जनती हो। दूर से शेरू को देखा न गया, वह अपने यथा स्थान खड़ा भौकता रहा लेकिन उसकी आवाज़ में वो तल्खी नहीं थी। 

उस ज़माने में किसी लड़की के पास इतने देर खड़े होना भी बड़ी बात थी। जब दोनों को कोई बात का बहाना न सूझा तो रोज़ी ने कहा - "आपको पता है? ये जो फैक्ट्री के जिस सिलिंडर से गैस रिसी थी न। अभी उसमें और भी शेष बची है। भैय्या बता रहे थे। उसका वॉल्वे तो इमरजेंसी में जिसने बंद किया था। सबसे पहले तो वही बेचारा मारा गया। देखो न कितना बुरा हादसा हुआ। आप कहाँ गए थे भाग कर।' 

-" मेरे भैय्या तो पीडब्लूडी में हैं न तो उन्हीं की गाड़ी से उनके गेस्ट हाउस चले गए थे।"

-"अब कहाँ जाओगे?"

- "मतलब?"

- "अब वह जो सिलिंडर में बची गैस है न ! उसे निष्क्रिय किया जाना है। पाँच तारीख को।' 

- "मुझे तो पता नहीं।"

- "तुम मिलते कहाँ हो किसी से। बस छत पर टंगे रहते हो।' 

"देवेश को काटो तो खून नहीं। उसे लगा मेरी चोरी पकड़ी गई।" 

- "मैं अभी नया-नया हूँ न यहाँ। इसलिए दोस्त भी नहीं हैं। आज भैय्या आएँगे तो पूछूँगा।" 

अफवाह तो ज़ोरों पर थी। सभी लोग एक बार फिर अपने नाते-रिश्ते दारों के यहाँ पाँच तारीख के पहले एक के बाद रवाना हो रहे थे। भैया-भाभी ने भी अपनी ससुराल जाने का प्लान बनाया। देवेश ने सोचा मैं तो सुबह की ट्रैन से अपने घर चला जाऊँगा। 

हर घर के लोग अपना-अपना सामान लेकर जब गली के बाहर जाते तो शेरू भी बड़ी सूनी सी आँखें लेकर चुप-चाप खड़ा हो जाता। देवेश सारा नज़ारा देख रहा था। आज की शाम तो रोज़ी और टॉमी भी चले गए थे। टॉमी को जाते देख। शेरू आज नहीं भौका। उसके पास जाकर खड़ा ज़रूर हो गया। देवेश भी बाहर निकल कर सामान ऑटो में रखवाने के बहाने आ गए। इसी बीच रोज़ी से हेलो-हाय भी हो गई। शेरू और टॉमी भी ऐसे मिले जैसे अब इसके बाद मिलेंगे ही नहीं। पता नहीं एक दूसरे के मुँह के पास मुँह ले जाकर क्या गुटुर-गू हुई। क्योंकि देवेश ने तो रोज़ी की तरफ से नज़र जब तक नहीं हटाई जब तक ऑटो गली के नुक्कड़ से मुड़ नहीं गया। फिर शेरू की पीठ पर हाथ फेरते हुए बोला, - "दोस्त अब आज की रात तो क़त्ल की रात जैसी है। अब गली में केवल तुम हो और मैं हूँ।" 

- शेरू ने भी दुम हिलाकर जवाब दिया। "डरने की कोई बात नहीं है, मैं तो हूँ।" 

सुबह सवेरे जब देवेश भी अपना बैग लेकर बाहर निकला तो शेरू तो झूम ही गया। मानो वह उसको जाने हीं नहीं देना चाहता हो। देवेश ज़बरदस्ती आगे बढ़ा तो उसने मुँह में बैग का कोना पकड़ लिया। तब देवेश ने बड़ी मुश्किल से पिंड छुड़ाया। थोड़ी दूर आगे जाकर जब देवेश ऑटो रोक कर स्टेशन जाने के लिए बैठा तो शेरू सामने खड़ा था। 

शेरू को शायद गैस त्रासदी के समय सभी का यकायक गली छोड़कर जाने वाला सीन याद आ रहा था। 

ट्रैन ने रफ़्तार पकड़ ली थी लेकिन देवेश तो मानसिक रूप से शेरू के पास खड़ा उसकी पीठ पर हाथ फेर रहा था। 

- काश, रोज़ी की टॉमी की तरह मैं भी शेरू को अपने साथ ला पाता।

कहते हैं जानवर में दिमाग़ नहीं होता। लेकिन दिल तो होता है तभी तो उनमें भावनाएँ होतीं हैं। वफादारी होती हैं। 



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