ठूठ
ठूठ
कालोनी में बने बड़े बड़े मकानों के बीच एक खाली प्लाट है। उस प्लाट के मालिक ने बाउंड्री की दीवार बनवा दी गेट भी लगवा दिया। अमूमन खाली प्लाट कूड़ा घर बन जाते है तभी बड़े शहरों का रिवाज ही बन गया है कि उस मे कोई न कोई परिवार झोपड़ी बना के रहने लगता ताकि उस जगह की सुरक्षा हो सके और सफाई भी होती रहे ।
ऐसे ही एक प्लाट में रम्मी भी तीन बच्चों और पति के साथ रहती है पति मजदूरी करता और वो खुद कालोनी के घरों में साफ सफाई का काम करती। उन लोगो पर मौसम अपना कहर बरपाता रहता है ठंड में ठिठुरने के अलावा उनके पास कोई और रास्ता नहीं बचता है। गर्मियों में उनके घर के बाहर लगा बड़ा सा गूलर का पेड़ ही उनका सहारा है जो झोपड़ी पर छाया करे रहता है वरना दोपहर में जीना मुश्किल हो जाये।
आज पास में रहने वाली शर्मा आंटी ने पेड़ कटवाने के लिए एक आदमी बुलाया है। वैसे तो सरकार द्वारा गली में लगवाए गए पेड़ को कटवाने काअधिकार
किसी को नहीं है फिर भी लोग मनमानी करते ही है उनको रोकने वाला कोई नहीं है।तुर्रा ये की शर्मा जी के लॉन में पेड़ के कारण धूप नहीं आती। रम्मी भी वक्ती तौर पर बहुत खुश हो रही कि लकड़ी मिल जाएगी जलाने के लिए।अचानक से शोर शराबा सुन के नेहा बाहर निकली और आश्चर्य से पूछा, "ये क्या हो रहा है?"
"मैडम जी पेड़ काट रहे।" एक आदमी बोला।
"क्यो ??? किस की आज्ञा से?"
नेहा की आवाज सुन के शर्मा आंटी आ गईं बाहर अकड़ कर बोलीं, "मैंने कहा है, मेरे लॉन में धूप नहीं आ रही इसके कारण।"
"अरे आंटी जी आप तो हर बार ठंड के मौसम में पेड़ की शाखाएं कटवाती ही हैं ताकि घूप आये आपकी तरफ, अब इस बार इतना जड़ के पास से क्यूँ कटवाना है?" नेहा विनम्रता से बोली।
"मुझे समस्या है तभी कटवाना है........" बहुत रूखे पन से शरमाईन बोली।
रम्मी को डर भी लग रहा कोई बड़ी सी शाखा उसकी झोपड़ी पर न गिर जाए।
"आंटी कुछ महीनों बाद गर्मी में इस पेड़ की छाया की जरूरत होगी, तो आप बस शाखाएं कटवाइए जिस से काम चल जाये।" नेहा ने समझाया।
" नहीं- नहीं मुझे इसकी छाया नहीं चाहिए।" शरमाईन तुनक कर बोलीं।
"अरे आप को नहीं होगी छाया की जरूरत आंटी, मैं तो रम्मी की बात कर रही, चिलचिलाती धूप में इसी की छाया के कारण ये लोग रह पाते हैं।" नेहा कड़ाई से बोली।
रम्मी हतप्रभ सी नेहा की तरफ देखने लगी कि वो तो इतना सोच भी नहीं पाई।लेकिन तब तक पेड़ ठूठ बनाया जा चुका था।