ठिठुरन
ठिठुरन


भीषण कड़कड़ाती ठंड में जहां चार- चार रजाई लेने से भी ठिठुरन नहीं जा रही थी वहीं मुक पशु इस ठंड का खुले में सामना कर रहे थे। लगता है सूर्य देवता भी इसी भय से प्रात: 6:30 के पश्चात प्रकाश बांट रहे थे। चाहे मौसम जैसा भी हो, सभी को अपने कार्य तो करने होते ही हैं।
जैसे सूर्य देवता का उदय होना, पंछियों का नीड से बाहर आना, प्रकृति में तो सब कुछ सामान्य रूप से चलता है, फिर इंसान कैसे रूके? मैं भी सुबह -सुबह 7:30 बजे कार्यालय के लिए निकल पड़ी। मोटा स्वेटर पहने, हाथों में दस्ताने, सिर पर ऊनी टोपी डालें, फिर भी हैंडल पर हाथ थर- थरा रहे थे। रास्ते पर गाड़ियों की आवाजाही हर रोज की तरह ही सामान्य थी। घर से निकलकर 5 मिनट की दूरी तय करने पर एक मोड़ पर अचानक मैंने गाड़ी को ब्रेक लगाया। रास्ते के एक किनारे मैली, फटी चटाई पर एक दुबली -पतली स्त्री, सिकुड़ कर बैठी हुई थी। शरीर पर जो साड़ी थी वह एक और जा रही थी, घुटने तक टाँगे खुली पड़ी थीं, पल्लो सरक कर जमीन पर लेट रहा था। बाल पूरी तरह से बिखरे हुए थे जैसे वर्षों से उसमें कंघी न की गई हो, बिल्कुल जटाएं प्रतीत हो रही थी। वह इधर-उधर देख मुँह का मुँह में कुछ बड़बड़ाते जा रही थी और स्वयं ही हंस रही थी। रास्ते पर आने जाने वाले उसे मुड़- मुड़ कर देख रहे थे और आगे निकल जा रहे थे , कुछ-कुछ एक दूसरे को देख अश्लीलता से मुस्कुराए जा रहे थे। मुझे भी तो रजिस्टर साइन करना था अतः मैं भी मस्तिष्क में यह प्रश्न लिए कि इस स्त्री को क्या हो गया होगा अपने रास्ते पर आगे बढ़ी।
करीब दो-तीन घंटे उसकी स्मृति बनी रही पर धीरे-धीरे काम में मैं उसे भूल गई। संध्या को घर लौटते समय देखा तो वह स्त्री वहां नहीं थी, पर जैसे ही मोड़ पर मुड़कर आगे बढ़ी, कुछ दूरी पर मुझे वह दिखाई दी । अब मेरे पास समय था इसलिए मैं उसके निकट गई । उसकी स्थिति और भी भयंकर थी। उसके शरीर पर साड़ी नहीं थी उसका लहंगा घुटनों तक ऊपर चला गया था, एक कंधे पर से ब्लाउज नीचे सरक रहा था, छाती की हड्डियां स्पष्ट नजर आ रही थी। अर्धनग्न अवस्था में वह बार-बार सिर खुजला रही थी । उसके आसपास अजीब सी बदबू आ रही थी, मक्खियां भी भिन भिना रही थी। मैंने नजदीक जाकर उससे पूछा "कौन हो तुम और तुम्हारी यह स्थिति किसने की?" उसे जैसे कुछ सुनाई नहीं दिया या फिर कुछ समझ में नहीं आया। वह बस इधर-उधर देख कर हंसने लगी, और जाने क्या बड़बड़ाने लगी । मैंने अपने पर्स में से टिफिन निकाला, उसमें रोटी बची थी , डरते डरते हाथ आगे बढ़ा
कर उसे दी । रोटी हाथ से लेकर वह खाने लगी। कुछ दो निवाले हीखाए होंगे फिर उसने रोटी नीचे डाल दी। मेरी समझ में नहीं आ रहा था उसकी मदद कैसे करें? कुछ देर वहां रुक कर मैंने उससे बात करने की कोशिश की पर कुछ लाभ ना हुआ। शाम गहराने लगी थी , मैं घर लौट आई । य्ही सोचने लगी कि किस से मदद मांगे ? कुछ देर सोचने के बाद मैं अपने काम में व्यस्त हो गई। रात में खिड़की दरवाजे लगाकर उनके सांध से हवा ना आए इसीलिए वहां समाचार पत्र लगा रही थी, तभी मेरी नजर एक तस्वीर पर पड़ी । जिसमें रोटरी क्लब के सदस्य अन्न, वस्त्र गरीबों में बांट रहे हैं। मुझे उस स्त्री का स्मरण हो
आया । मैनें झट से रोटरी क्लब के एक सदस्य जिन्हें मैं जानती थी, उनको फोन लगाया और उस दीन स्त्री के बारे में बताया । उनसे पूछा "क्या कुछ मदद मिल सकती है?" उन्होंने कहा, "माफ कीजिए मैडम इस वर्ष हम किसी और प्रोजेक्ट पर काम कर रहे हैं।" मैनें थैंक यू कह कर फोन रख दिया। बाहर साँय साँय कज चलने वाली हवा से रूह कांप रही थी।सोचा उस स्त्री को जाकर देखूं पर बच्चों को अकेले छोड़कर जाने की हिम्मत न हुई।
रात होते ही उसकी वह शोचनीय दशा याद आ रही थी। मन में आया, जीवित है भी या नहीं। सुबह स्कूल जा रही थी तो देखा वह रास्ते के किनारे सो रही है उसके शरीर पर काला मोटा कंबल था। मैंने राहत की सांस ली। मनुष्य भी ऐसे पशुओं के समान जीवन जीता हैं यह देख मन खिन्न एवं विचलित होगया । संध्या समय फिर से उसकी पीड़ा देखना असहनीय लग रहा था, परंतु जब शाम को घर लौटी तो वह वहां नहीं थी। उसका क्या हुआ पता नहीं। पर रात में मेरे पापा जो अगली गल्ली में रहते हैं, मुझसे मिलने आए थे, मैंने उनसे कहा , पापा एक बहुत ही दीन स्त्री कल से यहां ठंडी में बैठी हुई थी, पता नहीं रात में उसे किसने कंबल उड़ाया? पापा ने थोड़ा सा हिचकीचाहते हुए कहा, मैंने हीं उसे कंबल उड़ाया था । पापा के शब्दों में समाज की नीच सोच पर चिंता स्पष्ट नजर आ रही थी । उन्होंने कहा पहले तो वह उस तरफ थी फिर घिसट घिसटते वह इस कोने पर आई, ऐसे उसका कंबल उससे पीछे छूट गया और नाली के पानी से भी भीग गया था । तब रात में मैंने घर से पुराना कंबल लाकर उसके शरीर पर डाला।" अपने पिता के द्वारा किए गए इस कार्य पर मैं नतमस्तक थी। और सोच रही थी कि किसी ने लिया या नहीं पर ईश्वर ने अवश्य इसका फोटो लिया होगा । ईश्वर किसी ने किसी को मदद के लिए भेजी ही देता है। चाहे वह जहां भी रहें, आगे भी ईश्वर ही उसका ध्यान रखेंगे।