Mahak Garg

Abstract

4.7  

Mahak Garg

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टेलिफोन का जमाना

टेलिफोन का जमाना

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दादाजी परसो ही गांव से शहर आए थे। दादीजी की मृत्यु के बाद, वह अपना घर व कारोबार बेचकर अपने बेटे के पास रहने शहर आ गए थे। एक दिन दादाजी आंगन में बैठे अखबार पढ रहे थे। तभी रामा वहां अपने फोन पर बातें करती हुई आई। उसे देख दादाजी ने सोचा क्यों न अपने दोस्त दामोदर मिश्रा से बात की जाए। काफी समय से उनकी कोई खबर ही नहीं ली। दादाजी ने अपनी अलमारी में रखी फोन नंबर लिखे एक डायरी निकाली और रामा को आवाज़ लगाते हुए कहा कि उन्हें टेलीफोन से दामोदर मिश्रा का फोन मिलाकर दे दें। रामा ने कहा -"दादाजी ये आप कैसी बातें कर रहे हैं? यह मॉर्डन जमाना है। अब घर में टेलीफोन नहीं होता। हम सबके पास अपने-अपने फोन हैं। इसमें सबके फोन नंबर सेव होते हैं। जिसे भी फोन मिलाना हो, एक बटन लगाते ही फोन डायल हो जाता है। नंबर याद रखने की भी ज़रूरत नहीं पड़ती। मै पापा से कह कर आपके लिए भी एक फोन मंगा देती हूँ। आप मुझे ये डायरी दे दीजिये, मै आपके फोन में सभी नंबर सेव कर दूंगी। फिर आपको यह डायरी लेकर घूमने की ज़रूरत भी नहीं पड़ेगी । अभी आप मेरे फोन से बात कर लीजिए।" रामा की ऐसी बातें सुनकर दादाजी कुछ सोचते हुए बोले -" रहने दो बेटा, अभी बात करने का मन नहीं हैं ।" सोचते-सोचते दादाजी पुरानी यादों की गलियों में जा पहुँचे।

सुबह के ग्यारह बजे थे, पवन भाई गाँव में पहला टेलीफोन लाए थे। पूरे गाँव में ढिंढोरा पीटा गया था। पूरे गाँव के लोग टेलीफोन का नजारा देखने आए थे मानो किसी विदेशी ने गाँव में दस्तक दी हो। टेलीफोन का तिलक किया गया। सत्यनारायण की कथा रखवाई। हवन हुआ। चाची ने पूरे गाँव में देशी घी के बने लड्डू बाँटे थे। कितने स्वादिष्ट लड्डू थे। आज भी जुबान से स्वाद जाता नहीं। सब लोगो ने एक-एक करके टेलीफोन को कान पर लगाया और बात की। कुछ दिनों तक तो पूरे गाँव में बस टेलीफोन की आवाज गूंज रही थी।

कुछ समय बाद सबके रिश्तेदारों के फोन टेलीफोन पर आने लगे। पवन भैया सबके फोन उठाकर उनका नाम व पता पूछते और मै लोगों को बुलाने जाता था। फोन की घंटी बजते ही पूरे गाँव में अलग ही माहौल होता था और जिसके लिए भी फोन आता था, वह तो खुशी से सराबोर हो जाता था। लोगो को अपनों से बातें करते देख हमारा मन भी प्रफुल्लित हो उठता था।

जब भी कोई अपनो की आवाज सुनता तो बेहद ही प्रसन्न हो जाता था।

उनसे सुख-दुख की बातें करता, प्रसंग के लिए न्योता भेजता। अभी-अभी बुआ बनी संगीता अपने भतीजे की आवाज सुन मंत्रमुग्ध हो जाती थी। शहर मे नौकरी करने वाले अपने बेटे से बात करके करूणा चाची के आँसू नहीं रुकते थे। राकेश भाई भी अपनी दिन भर की दिनचर्या का विवरण अपनी बहन को सुना देते थे।

उस दिन तो कमाल ही हो गया। रामू काका ने दर्जी को फोन मिलाया और फोन लगाते ही बरस पड़े -"क्यों भाई दर्जी, तू तो कहता था कि तेरे हाथों में जादू है, दो दिन में मेरे कपड़े सी देगा! अब एक महीना होने को आया, कहाँ है मेरे कपड़े ? अगर आज शाम तक नहीं आए तो थाने में तेरी रपट लिखा दूंगा।" उधर से आवाज़ आई पड़ोस के गाँव का पहलवान गुस्से से बोला-"ज़बान संभाल कर बात कर।" तब पता चला कि अपनी भूलने की आदत के कारण गलत नंबर डायल कर दिया। फिर तो जैसे- तैसे गाँव में सबने मिलकर मामला निपटाया।

कभी-कभी तो हमें माँ से डाँट भी पड़ जातीं थी। माँ बार-बार समझाती कि दूसरों की बातें सुनना अच्छी बात नहीं है। मगर लोगों की खुशी देखने में इतना आनंद आता था कि हम पर कोई असर नहीं होता था। लोगो के चेहरे की मुस्कान, आँखो से छलकते खुशी के आँसू, अपनो की आवाज सुनने की खुशी, सुख-दुःख की बातें देखकर मन उल्लास से भर जाता था।

आज मैं सोचता हूँ कि क्या ये मोबाइल, टेलीफोन की बराबरी कर सकते हैं। उस वक्त कुछ ही घर में टेलीफोन होता था और आज देखो बच्चे-बच्चे के हाथ में मोबाइल है।उस वक्त घर पर लोगो का तांता लगा ही रहता था और हर रोज़ मोहल्ले के लोगों से मुलाकात हो ही जाती थी। आज सब अपने मोबाइल में इतने मशगूल हैं कि कोई किसी की ओर देखता तक नहीं है। उस वक्त की बात ही कुछ और थी। टेलीफोन के बहाने ही सही, हमे लोगो से मिलने का मौका मिलता था, उनसे बात करने का समय मिलता था, नई-नई बातें सीखने को मिलती थी, देश-दुनिया की बातें जानने को मिलती थी। आज तो सब कुछ इस एक छोटे से फोन में समा गया हैं। इतने लोगो के नंबर याद रखने के कारण दिमागी शक्ति तेज होती थी। अब तो नंबर भी ये फोन याद रखता है। पहले किसी से मिलना होता था तो उसके घर चले जाते थे, अब तो विडियो काॅल जैसी सुविधाओ के कारण मोबाइल से ही एक-दूसरे को देख सकते हैं। भले आज इस चीज के कितने ही फायदे क्यों न हो, मगर इसमें हमारे जमाने जैसा अपनापन और भाईचारा कहाँ ? आज भले कितनी भी सुविधाएं हो मगर उन दिनों की बात ही अलग थी।


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