मिट्टी से पत्थर का सफर
मिट्टी से पत्थर का सफर




अमर एक बहुत ही होनहार लड़का थी। परंतु उसका अपना कोई नही था। वह बहुत ही गरीब था। उसे मिट्टी के घर बनाने का बहुत शौक था। एक दिन उसकी इस प्रतिभा को राम नामक एक आदमी ने देख लिया जो कि घर बनाने मेंं माहिर था। उसने सोचा यदि मैं इसे पक्का मकान बनाना सिखा दू तो यह मेंरे काम आएगा। वह अमर के पास गया और उसे कहा कि वह उसे पक्का घर बनाना सिखाएगा और उसकी मदद करने पर उसे कुछ पैसे भी देगा। ऐसा सुनकर अमर तुरंत मान गया और अगले दिन से ही उसने काम पर जाना शुरू कर दिया।
राम उसे एक दिन के काम के पचास रूपये देता था। अपनी मेंहनत और लगन के बल पर उसने इस काम में जल्द ही महारथ हासिल कर ली। उसके पास कुछ पैसे इकट्ठा हो गए थे। उसने सोचा कि क्यो न मैं पढाई शुरू कर दूँ।
उसने गाँव के ही एक स्कूल में दाखिला ले लिया। अब वह काम पर जाने के साथ ही पढाई भी करने लगा। अपनी मेहनत और लगन से उसने अपनी पढ़ाई पूरी कर ली। अब उसने सोचा कि क्यो न मैं इंटिरियर ड़िज़ाइनिंग की पढ़ाई शुरू कर दूँ ताकि सेठ जी को और ज्यादा काम मिल जाए। इससे उन्हें मुनाफा भी ज्यादा होगा। परंतु इसके लिए उसे गाँव छोड़कर शहर जाना था और कुछ पैसों की भी जरूरत थी।
वह इस बारे में बात करने राम के पास गया। राम ने सोचा कि मेरे सभी कारिगरों में राम सबसे मेहनती है। यदि यह चला गया तो मेरा धंधा मंदा पड़ सकता है लेकिन ज्यादा मुनाफे के लिए उसका शहर जाना जरूरी था। मन ना मानते हुए भी उसने अमर को पैसे दिए और भेज दिया।
कुछ साल बाद जब उसकी पढ़ाई पूरी हो गई तो वह वापस गााँव आ गया और फिर से अपने काम में जुट गया। अब उसका काम पहले से और भी ज्यादा निखर गया था। फिर उसने सोचा कि क्यो न मैं अपना खुद का काम शुरू करूँ। उसने नौकरी छोड़ दी और अपना काम जमाने में जुट गया और बहुत जल्द उसने अपने क्षेत्र में ख्याति प्राप्त कर वी थी। कुछ समय बाद ही उसका नाम सबसे प्रसिद्ध इंटिरीयर ड़िजाइनर में लिया जाने लगा। उसने इसका सारा श्रेय राम को दिया। अपनी मेहनत और लगन से उसने गरीबी दूर कर एक अच्छी जिंदगी अपना ली।