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Ila Jaiswal

Inspirational

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Ila Jaiswal

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आज नीरज फिर बिना किसी बात के गुस्सा हो गया। उसके मूड का कुछ पता नहीं चलता, पल में तोला, पल में माशा। कभी तो वसुधा की बड़ी गलती होने पर भी कुछ नहीं कहता और कभी छोटी सी बात पर भी इतना हंगामा खड़ा कर देता कि पूछो मत। वसुधा को समझ नहीं आता कि क्या करे। नीरज का बेकार का शक, बिना वजह के इधर - उधर के प्रश्नों से वह तंग आ चुकी थी। लेकिन बच्चों का मुंह देखकर चुप हो जाती। ऐसे ही गृहस्थी की गाड़ी चल रही थी।

दिन, महीने, साल तेजी से बीतते चले जा रहे थे। अब उसकी दोनों बेटियां बड़ी हो चुकीं थीं और पढ़ - लिखकर अपने पैरों पर खड़ी हो चुकी थीं। अपने माता - पिता का वैवाहिक जीवन देखकर उन्होने पहले ही कह दिया था, ' हमें शादी की कोई जलदी नहीं है। और आप लोग तो बिल्कुल ही मत ढूंढ़ना।' नीरज भी बेटियों के आगे कुछ बोल नहीं पाए। एक दिन सुबह के समय नीरज ने वसुधा से कहा, " शाम को तैयार हो जाना, बुआ जी के यहां जाना है। "

वसुधा हमेशा की तरह चुप ही रही। उसके मौन को उसकी स्वीकृति मान कर वह ऑफिस चला गया। शाम को घर आकर उसने देखा कि वसुधा तैयार नहीं हुई, बल्कि सोफे पे बैठी आराम से किताब पढ़ रही थी। देखते ही नीरज चिल्लाया, " अभी तक तैयार नहीं हुईं तुम। सुबह ही बता दिया था तुम्हें।" वसुधा ने आराम से जवाब दिया, " हां, पर क्यों बताया था ? तुम्हें अच्छे से पता है कि वे मुझे बिल्कुल पसंद नहीं करती और तुम्हें भी मेरे खिलाफ भड़काती रहती हैं।" " अपनी रिश्तेदारों से बात करने के लिए, तुम्हारी अनुमति लेनी पड़ेगी।" नीरज ने गुस्से से बोला। इस बहस का कोई अंत नहीं था।

नीरज को जाना था वह चला ही गया पर वसुधा शांत भाव से पड़ी रही। अगली सुबह उसे नीरज के गुस्से का सामना करना ही पड़ा। बिना कुछ बोले वह अपने कमरे में गई और हाथ में अपना सूटकेस लेकर बाहर निकली।

नीरज कुछ पूछता इससे पहले ही उसने कहा," सारी ज़िन्दगी इसी भ्रम में रही कि आप मेरी बात को समझेंगे, मेरा साथ देंगे पर ऐसा कुछ भी नहीं हुआ। हमारे हालत दिन प्रति दिन बिगड़ते ही चले गए।आपने अपनी हर सही - गलत बात को मनवा ही लिया क्योंकि आपने अपने साथ की, क्षणिक प्रेम की कीमत लगा रखी थी। अगर ये चाहती हो तो ऐसा ही करना पड़ेगा। अपनी गृहस्थी मुझे चलानी थी इसलिए आपके ऊपर लगे हर टैग के अनुसार कीमत चुकाती चली गई, अपने आत्म - सम्मान का, अपने हर रिश्ते का त्याग किया और भी ना जाने क्या - क्या ?

सूची इतनी लंबी है कि न तो आप सुन पाएंगे और न ही मैं सुना पाऊंगी। इसलिए सिर्फ अंतिम बात ही कहना चाहती हूं, मैंने निर्णय तो बहुत पहले ही ले लिया था किन्तु अपने बच्चों के बड़े होने का इंतज़ार कर रही थी, कहीं उनको ना लगे कि मैंने उन्हें पिता के प्रेम से वंचित कर दिया। अब आप पर लगे टैग की कीमत मैं नहीं चुका पाऊंगी, अब सीता की तरह अग्नि परीक्षा और नहीं दे सकूंगी इसलिए जा रही हूं। कुछ करने की उम्र तो बची नहीं पर फिर भी कुछ न कुछ तो कर ही लूंगी।" इतना कहकर वसुधा बाहर निकल गई।


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