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Prabodh Govil

Abstract

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Prabodh Govil

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टापुओं पर पिकनिक

टापुओं पर पिकनिक

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आर्यन तेरह साल का हो गया। कल उसका बर्थडे था। इस जन्मदिन को लेकर वो न जाने कब से इंतजार कर रहा था। वो बेहद एक्साइटेड था। होता भी क्यों नहीं, आख़िर ये बर्थडे उसके लिए बेहद ख़ास था।

उसने एक महीने पहले से ही इस दिन को लेकर एक मज़ेदार प्लानिंग की थी। वो एक - एक दिन गिन- गिन कर काट रहा था कि कब उसकी ज़िंदगी का ये बेहद अहम दिन आए।

आज से उसने उम्र के उस दौर में प्रवेश कर लिया था जिसे "टीन एज" कहते हैं। अर्थात बचपन छोड़ कर किशोरावस्था में जाने की उम्र।उसने इस दिन की ख़ास तैयारी की थी। पहले से ही अपने बेहद ख़ास दोस्तों, यानी बेस्ट फ्रेंड्स का एक ग्रुप बना लिया था। वैसे तो हर एक का बेस्ट फ्रेंड कोई एक ही होता है, लेकिन बचपन में किसी एक से ही जुड़े रहने से मन कहां भरता है? इसलिए उसने भी अपने सबसे करीबी पांच दोस्तों को अपने इस प्यारे समूह में शामिल किया था।

ग्रुप का नाम था- "टापुओं पर पिकनिक"!आर्यन अपनी इस ख़ुशी के मौक़े पर भी एक दुविधा में घिरा हुआ था। अकेला आर्यन ही क्यों, उसके सारे दोस्त, सारे उसके स्कूल वाले लोग, सारे परिवार वाले लोग, और सारी दुनिया के ही लोग इस दुविधा में शामिल थे। स्कूल बंद थे, बच्चों का कोरोना संक्रमण के कारण एक दूसरे से मिलना या बाहर कहीं आना- जाना प्रतिबंधित था।

यही कारण था कि आर्यन ने भी अपना ये पसंदीदा ग्रुप ऑनलाइन ही बनाया था। वो सब एक दूसरे से सोशल मीडिया के माध्यम से ही जुड़े हुए थे। हां, आर्यन ने ये ख़ास ध्यान रखा था कि इन पांच दोस्तों के अलावा कोई और न तो इस ग्रुप से जुड़ सके, न कोई इनकी बातें जान सके और न ही किसी तरह से कोई दख़ल ही दे सके।इस ग्रुप का नारा था- दिन हो या रात, बस हम पांच!

आर्यन के इस ग्रुप में जो उसके चार साथी और थे वो भी लगभग उसी की आयु के थे। हां, वो सब उसकी तरह आज ही टीनएज में शामिल हुए हों, ऐसा नहीं था। क्योंकि एक ही क्लास में पढ़ने वाले इन सभी बच्चों के जन्मदिन एक साथ एक दिन ही आएं, ऐसा तो हो नहीं सकता। अतः ये सब कुछ महीने के अंतर से लगभग हमउम्र थे।

आर्यन के अपने इस जन्मदिन का इंतजार बेसब्री से करने के पीछे भी एक ख़ास कारण था। यूं तो उसका जन्मदिन हर साल ही आता रहा था और वो अपने घरवालों और दोस्तों के साथ मिलकर उसे धूमधाम से मनाता भी रहा था। उसके पापा हर बार एक ख़ूबसूरत और स्वादिष्ट सा केक लेकर ही आते थे। उसकी मम्मी भी उसके दोस्तों की पार्टी में परोसने के लिए अपने हाथ से कई- कई व्यंजन बनाती ही रहती थीं। उसे अपने साथियों और रिश्तेदारों से एक से बढ़कर एक नायाब तोहफ़े भी मिलते थे जिन्हें वो सबके जाते ही फटाफट खोल डालता और उनमें खो जाता था। लेकिन ये सब तो हमेशा की बात थी। हर साल की।इस बार उसे एक नया अनुभव हुआ।



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