टापुओं पर पिकनिक- 24
टापुओं पर पिकनिक- 24
आगोश अब ये अच्छी तरह जान चुका था कि उसके डॉक्टर पिता अपने पेशे को लेकर नैतिक नहीं हैं। वो ग़लत तरीके से पैसा कमाते हैं। केवल लालच ही नहीं, बल्कि अपराध भी उनके मुंह लग चुका है।लेकिन वो सीधे अपने पिता से कुछ नहीं कह सकता था। पिता ने उसे ज़िन्दगी दी थी पर उसे ख़ुद उनकी ज़िंदगी पर कोई अधिकार नहीं दिया था। यदि उनके तौर- तरीके आगोश को परेशान करें तो भी उसे उसी घर में उन्हीं के साथ रहना था।
ये ठीक ऐसा ही था कि अगर कोई दूधवाला दूध में पानी मिलाए तो उसे उसके घर वाले छोड़ कर नहीं जा सकते थे क्योंकि वह उन्हीं के लिए ज़्यादा कमा रहा था।आगोश की मम्मी उसे इसी तरह समझाती थीं।
आगोश कुछ नहीं कह पाता था लेकिन वह दिनोंदिन ज़िद्दी, अक्खड़ और लापरवाह होता जा रहा था। वह अपने पिता का सम्मान नहीं करता था।कई बार तो डॉक्टर साहब, उसके पिता उसकी उपेक्षाभरी हरकतों से तिलमिला जाते पर वो उससे कुछ कह न पाते।
एक दिन तो आगोश ने उनके सामने ही क्लीनिक में सफ़ाई करने वाली एक लड़की को चूम लिया। लड़की सकपका कर रह गई। आगोश अब कोई बच्चा नहीं था, अच्छा भला जवान लड़का था।वह लड़की वैक्यूम क्लीनर लेकर रिसेप्शन एरिया का काउंटर साफ़ कर रही थी और डॉक्टर साहब अपने केबिन में बैठे अख़बार पढ़ रहे थे।
उन्हें केबिन के शीशे से सब कुछ साफ़ दिख रहा होगा, ये जानते हुए भी आगोश ने लड़की के पास जाकर उसका किस ले लिया। उसने भांप लिया कि उसके पिता ने कनखियों से उसे ऐसा करते हुए ज़रूर देख लिया है।एक दिन तो वह पिता की उपस्थिति में ही सिगरेट पीने लगा। पिता ने अनदेखी की, और वहां से चले गए।लेकिन ये बातें धीरे - धीरे आगोश के दोस्तों को भी पता चलने लगीं।निश्चय ही आगोश ने खुद किसी को ये सब नहीं बताया था। शायद डॉक्टर साहब ने आगोश की मम्मी को बताया होगा और मम्मी ने आगोश से कुछ न कह कर उसके दोस्तों, खास कर आर्यन को बता दिया होगा।आगोश मम्मी का पूरा सम्मान करता था। उनके सामने उसने कोई अशिष्टता कभी नहीं की, किंतु उसके पापा से ये सब बातें सुनकर वो चिंतित ज़रूर होती थीं। उन्हें समझ में नहीं आता कि वो आख़िर क्या करें। इसी उधेड़बुन में वो आगोश के दोस्तों के बीच ऐसी चर्चा कर बैठती थीं।
ऐसे में आगोश आर्यन के साथ रहता और अगर आर्यन उसे अपने साथ अपने घर ले जाना चाहता तो वो कभी इनकार नहीं करती थीं। आगोश रात को सोने भी वहां चला जाता।आगोश की मम्मी को लगता था कि घर में अकेले ही घुटते रहने और न जाने क्या- क्या सोचते रहने से तो आगोश दोस्तों के साथ, उनके बीच रहे, यही अच्छा है।
वो भरसक कोशिश करती थीं कि आगोश के दोस्तों को आए दिन कुछ बनाने- खिलाने और पार्टी देने के बहाने वह अपने घर बुलाती रहें।लेकिन इन सब बातों की खुली चर्चाओं से ये लड़के समय से पहले बड़े हो रहे थे।आगोश को अब शहर से कहीं दूर भेजने की बात पर तो पूरी तरह विराम ही लग गया था, अब इसकी चर्चा भी घर में कोई नहीं करता था।
एक दिन ये सब दोस्त इकट्ठे थे कि आगोश बोला- यार किसी की जानकारी में अगर कोई अच्छा सा रूम हो तो मुझे बताओ। मेरा एक फ्रेंड बाहर से आ रहा है, उसके लिए चाहिए।
"किस एरिया में रहेगा वो?" मनन ने पूछा।
"कोई भी हो, ज़रा पॉश कॉलोनी में होना चाहिए"। आगोश बोला।
"क्या करता है वो? मेरा मतलब है कि कितने दिन रहेगा? उसे कुछ दिन के लिए ही चाहिए या फिर परमानेंट यहीं रहेगा?" सिद्धांत ने कुछ सोचते हुए इस तरह कहा मानो उसकी निगाह में आसपास कोई कमरा ख़ाली हो।
"चाहिए तो परमानेंट ही।" आगोश बुदबुदाया।
ये सुन कर मनप्रीत ने बातों ही बातों में अपनी सहेली मधुरिमा का ज़िक्र कर दिया। उसने मधुरिमा के घर में किराए से रहने वाली उस नर्स की बात छेड़ी जो अब कहीं दूर दक्षिण में जा चुकी थी और मधुरिमा के घर में कमरा ख़ाली होने के कारण वो लोग कमरा किराए से उठाना चाहते थे।
आगोश ने मनप्रीत से पूछा- "तूने देखा है कमरा?"
"हां, मैं तो मधुरिमा के घर जाती ही रहती हूं। कई बार देखा है।" वह बोली।
" कैसा है?" आगोश फ़िर बोला।
"कहा न, अच्छा है, बड़ा, खुला, हवादार! घर के ऊपर वाली मंजिल पर है। बिल्कुल सेपरेट। टॉयलेट भी अटैच है।" मनप्रीत किसी प्रॉपर्टी डीलर की तरह बोलती चली गई।
"चल, दिखा।" आगोश एकदम से कुछ सोच कर तुरंत बोला।
"अभी, आज ही आ रहा है क्या तेरा फ्रेंड? मैं ज़रा पूछ तो लूं मधुरिमा से, उन लोगों ने किसी से बात तो नहीं कर ली है।" मनप्रीत बोली।अगले दिन सुबह- सुबह आर्यन और आगोश बाइक लेकर मनप्रीत के बताए हुए पते पर पहुंच गए। मनप्रीत ने पहले ही मधुरिमा को फ़ोन पर सब बता दिया था।
मधुरिमा ने पहले तो थोड़ी आनाकानी की। बोली- यार, किसी अकेले लड़के को रखने के लिए शायद डैडी तैयार नहीं होंगे।मनप्रीत ने समझाया- मैडम, मैं कोई ऐसा -वैसा किरायेदार नहीं बताऊंगी तुझे, वो मेरा फ्रेंड है न आगोश, उसके किसी गेस्ट को चाहिए। अंकल से कहना, बेफिक्र रहें, मेरी ज़िम्मेदारी है।
आगोश को कमरा बहुत पसंद आया। साफ़- सुथरा बना हुआ था। मधुरिमा दोनों लड़कों को ऊपर कमरे में छोड़ कर नीचे उनके लिए पानी लेने चली गई।
आगोश आर्यन से बोला- सामान रखने के लिए अलमारी तो एक ही है, पर हां, छत के पास ये साइड वाली जगह काफ़ी चौड़ी है। ज़रा इस पर चढ़ कर देख, "इसकी चौड़ाई क्या होगी?"
आर्यन तुरंत खिड़की पर पैर जमा कर उस टांडनुमा जगह को पकड़ कर देखने लगा।
"खूब चौड़ी है, बॉक्स या सूटकेस भी रखा जा सकता है।" आर्यन ने कहा।
"अभी कुछ रखा है क्या?" आगोश पूछने लगा।
"एक चप्पल पड़ी है! उतारूं?" कह कर आर्यन हंसने लगा।
इतने में ही नीचे से मधुरिमा एक ट्रे में पानी के दो गिलास लेकर ऊपर आ गई। उसके आने की आहट पाते ही आर्यन धम से नीचे कूद गया।
