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Prabodh Govil

Abstract

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Prabodh Govil

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टापुओं पर पिकनिक- 12

टापुओं पर पिकनिक- 12

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आर्यन अपने घर के लॉन में किसी पड़ोसी बच्चे के साथ बैडमिंटन खेल रहा था कि गेट पर एक कार आकर धीरे से रुकी।उसे देखते ही रैकेट छोड़ कर आर्यन गेट खोल कर बाहर निकला और कार के पास पहुंच गया।आगोश था। अकेला ख़ुद गाड़ी लेकर आया था। आर्यन भी गाड़ी का दरवाज़ा खोल कर उसके अंदर ही जा बैठा। भीतर एसी भी ऑन था और तेज़ स्वर में म्यूज़िक भी।

आगोश ने बताया कि उसके तो मजे आ गए हैं। पापा ने फ़ोन पर मम्मी को बता दिया कि वो कुछ दिन बाद ही वापस आयेंगे, उन्हें कुछ ज़रूरी काम है। साथ ही उन्होंने ड्राइवर अंकल को भी वहीं बुला लिया है।"

"यहां बाज़ार का कुछ काम था, तो मम्मी ने मुझे गाड़ी देदी।

"वाह, तेरी तो लॉटरी खुल गई।" आर्यन ने कहा।

"चल हम लोग घर चलते हैं।" आगोश बोला।

वापस आगोश के घर लौटने से पहले दोनों दोस्तों ने कई किलोमीटर तक गाड़ी इधर- उधर दौड़ाई। दोनों में से किसी के पास भी लाइसेंस नहीं था फ़िर भी गनीमत रही कि कहीं कोई परेशानी नहीं आई। आगोश बता रहा था कि वो जल्दी ही लर्निंग लाइसेंस बनवाने वाला है।आगोश के घर पहुंच कर दोनों के आगोश के कमरे में जाकर बैठते ही उसकी मम्मी भी वहीं आ बैठीं। फ़िर से उस रात की बात छिड़ गई और दोनों दोस्तों ने मम्मी को उस रात घटी एक- एक बात पूरे विस्तार से बताई। मम्मी हैरान होती रहीं।

जब मम्मी अपने कमरे में चली गईं तो दोनों की बातचीत का सुर बदल गया।जिस तरह पुराने ज़माने के राजाओं और नवाबों के किस्सों में होता था कि शिकार के समय तो उनकी डर के मारे घिग्घी बंध जाती थी पर बाद में वो शिकार के वाकयात को खूब चटखारे ले लेकर बढ़ा- चढ़ा कर सबको सुनाते थे, ठीक वैसे ही दोनों अब रात की घटनाओं और अपनी बहादुरी का बखान एक दूसरे के सामने कर रहे थे।

"यार, क्या हम लोग पांच- पांच होते हुए भी उस एक अकेली से डर गए, वो तो साजिद की जगह मैं होता तो उसका हाथ पकड़ लेता। पूछता- कौन है, कहां से आई, यहां क्यों बैठी है"! आगोश ने शेखी बघारी।

"जा जा... पसीने तो छूटने लगे थे तेरे।" आर्यन ने उसे चिढ़ाया।

" हां यार...वो थी भी तो बिना लिफ़ाफे के... ढंग से कुछ पहन रखा होता तो उसे रोकता भी।" आगोश ने अपना बचाव किया।

"यार, वो खून- वून भी उसी का होगा".. आर्यन ने कुछ मुस्कुराते हुए कहा।

आगोश हंसने लगा। फ़िर बोला- "इतना?"

"उसके पास कौन सा कोई पैड- वैड होगा.. पागल तो लग ही रही थी।" आर्यन ने कहा।

"छी छी... सिद्धांत ने तो उसमें पैर ही रख दिया था।"

दोनों हंसने लगे। उन्हें लगा कि अब स्कूल में जब सिद्धांत मिलेगा तो उसे छेड़ेंगे...

"पर वो हाथ क्यों धोने गया था?" आर्यन बोला।

"क्या पता! तू ही तो पूछ रहा था बार- बार, बैड टच बता, बैड टच बता.. उसने बता दिया होगा।"

"किसको? मुझे तो नहीं बताया, मनन को बताया होगा...पर हाथ धोने की ज़रूरत क्यों ..."दोनों की बातचीत अधूरी रह गई क्योंकि तभी मम्मी सूप के बाउल्स लेकर कमरे में आ गईं।

आर्यन को सूप बहुत पसंद था। मम्मी ने झटपट बना दिया।

"आर्यन खाना खाकर जाना"। मम्मी ने कहा।

"नहीं आंटी, खाना तो घर पर जाकर ही खाऊंगा, अभी भूख भी नहीं लगी।"

आगोश जब आर्यन को छोड़ने जाने के लिए फ़िर से गाड़ी निकालने लगा तो मम्मी एकदम से कुछ कहते- कहते रुक गईं। शायद आगोश से कहने जा रही थीं कि अब गाड़ी मत निकाल, स्कूटर से छोड़ आ। पर कुछ सोच कर चुप रह गईं।दोनों चले गए।

मम्मी ने सोचा, अब जाने दो रोकना क्या, साल दो साल बाद तो बच्चों को गाड़ी चलानी ही है, अच्छा है जितना जल्दी शुरू करेंगे उतना हाथ साफ ही होगा। समय बीतते- बीतते कोई देर थोड़े ही लगती है, अभी देखते- देखते गाड़ी- घोड़े सब इन्हीं के हो जाने हैं... हम बुड्ढा- बुढ़िया के तो हाथ कंपकपाने लगेंगे फ़िर ऐसे ट्रैफिक में गाड़ी चलाने में।

उधर रास्ते में आगोश और आर्यन ने फ़िर से एक प्लान बना डाला। दो छुट्टियां भी आ रही थीं एक साथ।



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