तृप्ति--भाग(३)
तृप्ति--भाग(३)
रोते हुए कमलनयनी मन्दिर से लौट आई, उसने मन में सोचा कि वो तो निर्मल मन से देवताओं के दर्शन करने गई थी किन्तु पुरोहित जी ने मन्दिर के निकट जाने से पूर्व ही उसे मन्दिर से बाहर जाने को कह दिया, क्यों वो मेरा अपमान करते हैं, उन्हें इसमें कौन सा असीम आनन्द प्राप्त होता है, मैं अब इन सबका उत्तर पुरोहित जी से चाहती हूँ वो बार बार ऐसे मेरा अपमान नहीं कर सकते और उसके मन में ये विचार आया कि परन्तु वो उनसे ये प्रश्न किस स्थान पर जाकर पूछेगी? क्योंकि मन्दिर में वो जा नहीं सकती और महल के कक्ष में पुरोहित जी को बुलाना उचित ना होगा।
उसने इस कार्य हेतु पुनः मयूरी से कहा, एक दो दिन में मयूरी ने ज्ञात कर लिया और कमलनयनी से कहा कि पूजा -अर्चना करके वो अपने निवास की ओर निकलते हैं, हम उनके निवास पर जाकर आपके प्रश्नों के उत्तर लेंगें।
अच्छा, तो ये बात है, परन्तु वो पुनः कब मन्दिर की ओर प्रस्थान करते हैं, कमलनयनी ने मयूरी से पूछा।
मन्दिर की पूजा अर्चना करने के पश्चात दोपहर के समय पुरोहित जी अपने निवास स्थान जाते हैं, निवास स्थान पर भोजन करके कुछ समय विश्राम करके, सूर्यास्त से पूर्व ही पुनः मन्दिर लौट आते हैं, मयूरी बोली।
अब कमलनयनी ने निर्णय ले लिया था कि पुरोहित जी से मुझे अपने प्रश्नों का उत्तर चाहिए इसलिए उसने मयूरी के संग मिलकर योजना बनाई कि आज ही हम पुरोहित जी के निवास स्थान पर जाएंगे, मयूरी ने भी कोई आपत्ति नहीं जताई और उसने कमलनयनी के संग पुरोहित जी के घर जाने में अपनी सहमति जता दी।
दोनों मन्दिर के पीछे छुपकर पुरोहित जी के घर जाने की प्रतीक्षा कर रही थीं, पूजा अर्चना करके पुरोहित जी अपने निवास स्थान को निकले और वो दोनों भी छुप छुप कर उनके पीछे पीछे चल दीं, परन्तु कमलनयनी को एक बात पर संदेह हो रहा था कि पुरोहित जी ने राजमहल से इतनी दूर क्यों अपना निवास स्थान चुना, वो चाहते तो राजमहल में ही उन्हें रहने को मिल जाता, हो ना हो इसका कोई ठोस कारण अवश्य है।
दोपहर का समय था, कमलनयनी कभी भी इस समय राजमहल से बाहर नहीं निकली थी, वो कोमलांगी सूर्य के ताप से कुम्हलाने लगी , मार्ग भी कच्चा और धूल मिट्टी से भरा हुआ था, अगल बगल घनी घनी झाडियाँ और बड़े बड़े वृक्ष थे, जिनके पीछे से वो दोनों छुपते छुपाते गौरीशंकर के पीछे चलतीं चलीं जा रहीं थीं।
राज्य के बाहर निकलते ही किसानों के खेत थे , वहाँ अपने अपने खेतों के पास किसानों की झोपड़ियाँ थी और वहीं पर गौरीशंकर का भी मिट्टी से बना खपरैल वाला घर था, घर को चहुँ ओर से छोटी छोटी लकड़ियों के पटरों से वृत्ताकार रूप में घेरा गया था, वहीं पर जल के लिए एक कुआँ था और थोड़ी बहुत फूल फुलवारी लगी थी, घर की खपरैल पर बगल की दीवार से होतीं हुई कुछ लताएं छायीं हुई थीं।
कमलनयनी और मयूरी दूर ही एक वृक्ष की ओट में छुप गईं और उन्होंने देखा कि गौरीशंकर ने घर के द्वार पर जाकर किवाड़ो की साँकल खटखटाई, एक बूढ़ी स्त्री ने किवाड़ खोले और गौरीशंकर घर के भीतर चला गया।
तब मयूरी ने कमलनयनी से कहा___
चलिए ना देवी! अब हम भी चलते हैं।
नहीं!इतनी शीघ्र नहीं, कहीं पुरोहित जी को संदेह ना हो जाए कि हम उनका पीछा कर रहे थे, कुछ समय इसी वृक्ष के तले विश्राम करते हैं, इसके उपरांत चलेंगें, कमलनयनी बोली।
कुछ समय तक दोनों ने वृक्ष के तले विश्राम किया, इसके उपरांत दोनों गौरीशंकर के घर के द्वार पर पहुँची और कमलनयनी ने किवाड़ो की साँकल खटखटाई, सौभाग्य वश गौरीशंकर ने ही किवाड़ खोले और आश्चर्यचकित होकर दोनों से पूछा___
आप दोनों! और मेरे निवास स्थान, कोई विशेष कार्य है क्या?
जी नहीं! ऐसा कोई विशेष कार्य नहीं है, बस हम तो आपका निवास स्थान देखना चाहते थे, मयूरी ने उत्तर दिया।
आइए...भीतर आइए, गौरीशंकर ने दोनों से कहा।
दोनों भीतर पहुँची , गौरीशंकर दोनों को अतिथि कक्ष में बैठाकर चला गया और कुछ समय पश्चात कुछ लड्डू और जल लेकर अतिथि गृह में उपस्थित हुआ और दोनों से बोला____
लीजिए , आप लोग जलपान गृहण कीजिए तब तक मैं आता हूँ और इतना कहकर गौरीशंकर चला गया, दोनों सूर्य के ताप से कुमल्हा गई थीं, दोनों को प्यास भी अत्यधिक लग आई थीं इसलिए दोनों ने संकोच को त्याग कर जलपान गृहण करना प्रारम्भ कर दिया।
कुछ समय पश्चात गौरीशंकर एक वृद्ध स्त्री के साथ उपस्थित हुआ, जिनकी गोद में दो साल का बालक था, गौरीशंकर ने उन स्त्री से दोनों का परिचय करवाते हुए कहा कि___
इनसे मिलिए, ये मेरी माता जी हैं।
तभी मयूरी का ध्यान उस बालक पर गया और उसने गौरीशंकर से पूछा___
और ये बालक कौन है?
तभी गौरीशंकर की माता जी ने उत्तर दिया__
ये देवव्रत है, गौरीशंकर का पुत्र॥
ये सुनकर कमलनयनी के हृदय को आघात सा लगा।
तभी मयूरी ने गौरीशंकर की माता से दूसरा प्रश्न पूछा___
और पुरोहित जी की धर्मपत्नी कहाँ हैं?
तभी गौरीशंकर की माता जी बोलीं___
चलिए, आइए ! मैं आपलोगों की उससे भेंट करवाती हूँ और इतना कहकर गौरीशंकर की माता जी उन दोनों को दूसरे कक्ष में ले गईं।
दोनों ने उस कक्ष में जाकर देखा कि गौरीशंकर की पत्नी पलंग पर लेटी हैं और उन लोगों को देखते ही उसके मुँख पर एक हँसी सी आ गई और माता जी से उन दोनों की ओर संकेत करते हुए पूछा___
आप लोंग पुरोहित जी मिलने आए हैं।
ये तो मुझे भी ज्ञात नहीं है, किन्तु मुझे ऐसा प्रतीत हुआ कि कदाचित गौरीशंकर इन दोनों से परिचित है, माता जी बोलीं।
मैं और मेरी सखी, हम दोनों मन्दिर में भजन गाते हैं, कमलनयनी ने माता जी से झूठ बोलते हुए कहा।
ये बात गौरीशंकर ने भी सुनी परन्तु कहा कुछ भी नहीं और गौरीशंकर ने दोनों को अपनी धर्मपत्नी का परिचय करवाते हुए कहा___
ये मेरी धर्मपत्नी सौभाग्यवती है।
सौभाग्यवती हल्की सी हँसी हँसते हुए बोली___
हाँ, मेरा नाम तो सौभाग्यवती है, परन्तु इनके लिए बहुत बड़ा दुर्भाग्य हूँ, एक वर्ष से लकवे से ग्रस्त हूँ, कमर के नीचे का भाग कार्य नहीं करता, किसी भी वस्तु को इन अंगों पर अनुभव नहीं कर पाती, ये एक वर्ष से मेरी सेवा में लगे हुए हैं, तभी हम राजमहल से इतनी दूर रह रहे हैं, कभी कभी तो मुझे इन पर तरस आता है।
कैसी बातें करती हो ? सुभागी! मैंने कभी तुम्हें कोई उलाहना दिया है कि मुझे तुमसे कोई भी कष्ट है और यदि ऐसा कुछ मेरे संग होता तो क्या तुम मुझे छोड़ देती? गौरीशंकर ने सौभाग्यवती से कहा।
मैं बहुत भाग्यशाली हूँ, जो आप मुझे मिले, सौभाग्यवती बोली।
इसके उपरांत माता जी बोलीं___
चलिए! भोजन तैयार है, आप लोंग भी भोजन कर लीजिए।
परन्तु , भोजन के लिए कमलनयनी ने मना कर दिया।
तभी सौभाग्यवती ने पूछा___
आप दोनों ने अपने नाम तो बताएं ही नहीं।
मेरा नाम कमल है और ये है मयूरी और अब हमें राजमहल लौटना होगा, बहुत विलम्ब हो गया है, कमलनयनी बोली।
ऐसा भी कोई बिलम्ब नहीं हुआ जा रहा है, आप लोग भोजन करके जाइए, सौभाग्यवती बोली।
क्षमा करें, पुरोहितन जी! किन्तु आज हमें जाना होगा, अब तो परिचय हो गया है, आते जाते रहेंगे, मयूरी बोली।
ठीक है, तो अब नहीं रोकूँगी, परन्तु अब की बार आइएगा तो तनिक समय लेकर आइएगा ताकि कुछ समय बैठकर बातें कर सकें, सौभाग्यवती बोली।
जी, अच्छा! और इतना कहकर दोनों गौरीशंकर के घर से वापस आ गईं।
अब कमलनयनी के सोचने की क्षमता जा चुकी थी, उसे कुछ भी नहीं सूझ रहा था कि वो क्या करें, कदाचित वो गौरीशंकर से प्रेम करने लगी थी, वो दिन रात बस उसके ही स्वप्नों में खोई रहती, अब जब भी गौरीशंकर से मिलती तो श्रृंगारविहीन होकर मिलती, वो अब आए दिन उसके निवास स्थान पर भी जाने लगी, सौभाग्यवती को भी कमल का आना अच्छा लगता, परन्तु कमलनयनी जिस दृष्टि से गौरीशंकर को देखती थी ये बात सौभाग्यवती ने अत्यधिक गहराई से अनुभव की।
और उधर श्याम भी कमलनयनी की इस दशा को देखकर आश्चर्य में था कि जो कमलनयनी लोभ और माया में जकड़ी थी, एकाएक उसके स्वभाव में ऐसा परिवर्तन किस कारण से हो गया, अब जो उसका रूप था वो पूर्व कमलनयनी से बिल्कुल विपरीत था और उसने इसका कारण मयूरी से ज्ञात करना चाहा___
ये क्या हो गया है? कमलनयनी को, वो इतनी बेसुध सी क्यों प्रतीत होती है, ना साज श्रृंगार, ना ही नृत्य का अभ्यास और अब तो वो राजा के निकट भी नहीं जाती, उनसे भी अन्तर बना लिया है, जब भी राजा उसे बुलाते हैं तो वो ये कहकर टाल देती है कि स्वास्थ्य अच्छा नहीं है।
कमलनयनी को प्रेम हो गया है, जिस प्रकार मैं तुमसे प्रेम करती हूँ, उसी प्रकार, मयूरी बोली।
परन्तु , मैं तुमसे प्रेम नहीं करता, श्याम बोला।
तो किससे प्रेम करते हो? कमलनयनी से, मयूरी ने श्याम से पूछा।
मैं तुमसे क्यों बताऊँ? श्याम बोला।
मत बताओ, मुझे ज्ञात है कि तुम कब से कमलनयनी से प्रेम करते हो, परन्तु वो तो किसी और से प्रेम करती है, कदाचित तुम्हारे प्रेम की भाँति कमलनयनी के प्रेम का स्वप्न भी अधूरा रह जाएगा क्योंकि वो जिससे प्रेम करती है वो विवाहित है, ना जाने ईश्वर ने ये कौन सा खेल रचा है, मयूरी बोली।
कहना क्या चाहती हो ? मयूरी! तनिक खोलकर बताओ, श्याम ने पूछा।
समय आने पर तुम्हें सब ज्ञात हो जाएगा और इतना कहकर मयूरी चली गई।
एक दिन गौरीशंकर और सौभाग्यवती के विवाह की वर्षगाँठ थी, सौभाग्यवती ने कमल और मयूरी को बुलावा भेजा, अतिथि के रूप में दोनों गौरीशंकर के घर उपस्थित हुईं।
कमलनयनी ने गौरीशंकर से डरते हुए पूछा कि___
क्या मैं माता जी की रसोईघर में सहायता कर सकती हूँ? मेरे छूने से आपकी रसोई अपवित्र तो नहीं हो जाएगी, क्योंकि आपने मेरा मन्दिर में जाना वर्जित कर रखा है।
हाँ! क्यों नहीं? तुम मेरी अतिथि हो और अतिथि तो ईश्वर के समान होता है, रही मन्दिर की बात तो वो मेरा धर्म और कर्तव्य है, मेरी निष्ठा और ईमानदारी सबका विश्वास है, मुझे उन सबका विश्वास बना कर रखना पड़ता है कि मेरे कारण वहाँ कुछ ऐसा ना हो कि सबकी श्रद्धा और आस्था डगमगाने लगे, गौरीशंकर बोला।
इतना सुनकर कमलनयनी प्रसन्न हुई और माता जी के संग रसोई मे जाकर भोजन की तैयारी करवाने लगी, साथ में मयूरी भी लग गई, दोनों ने माता जी को कोई भी कार्य ना करने दिया, इसके उपरांत सबने रात्रि में भोजन किया, अधिक बिलम्ब होने के कारण दोनों गौरीशंकर के घर पर रूक गईं, माता जी और सौभाग्यवती एक कक्ष में, मयूरी और कमलनयनी एक कक्ष में और गौरीशंकर अतिथि गृह में सो गया।
अर्द्ध रात्रि बीत चुकी थी परन्तु कमलनयनी की आँखों से निंद्रा कोसों दूर थी, सबके सो जाने के बाद कमलनयनी उठी और अतिथि कक्ष पहुँची, पूर्णिमा की रात्रि थी, चन्द्र का श्वेत उज्जवल प्रकाश वातायन से आकर सीधे गौरीशंकर के तन पर पड़ रहा था, कमलनयनी उसे ध्यानपूर्वक देखने लगी, गौरीशंकर के घने घुघराले काले बाल, सुन्दर मुँख, गुलाबी होंठ, सुन्दर सुडौल बाजू और चौड़ा सीना, ये देखकर कमलनयनी स्वयं पर अंकुश ना लगा सकीं और गौरीशंकर से प्रेमपूर्वक लिपट गई।
कमलनयनी का स्पर्श पाकर एकाएक गौरीशंकर ने अपनी आँखें खोलीं और इस प्रकार स्वयं से कमलनयनी को लिपटे हुए देखकर उसने उसे स्वयं से बलपूर्वक हटा दिया और गाल में जोर का थप्पड़ दिया।
कमलनयनी क्रोधित होकर बोली___
मेरा दोष क्या है? बस इतना ही कि मैं आपसे प्रेम करने लगी हूँ।
ये प्रेम नहीं वासना है, इसी समय अपने कक्ष में जाओ, गौरीशंकर ने कमलनयनी को आदेश देते हुए कहा......
क्रमशः____

