Saroj Verma

Romance

4.0  

Saroj Verma

Romance

तृप्ति--(अन्तिम भाग)

तृप्ति--(अन्तिम भाग)

11 mins
350


भोजन करने के उपरांत, जोगन विश्राम करने के लिए कुटिया में लेट गई और कादम्बरी एवं देवव्रत कुटिया के बाहर आकर मन्दिर के चबूतरे में बैठकर वार्तालाप करने लगे____

अच्छा!तो तुम्हारा नाम कादम्बरी है, तुमने मार्ग में तो नहीं बताया, देवव्रत ने कहा।

हाँ, क्यों मेरा नाम कादम्बरी है, इसमें कोई बुराई है क्या? और तुमने भी तो अपना नाम नहीं बताया था, कादम्बरी बोली।

ना ! तुम्हारे नाम में कोई बुराई नहीं है, बहुत ही सुन्दर नाम है तुम्हारा, कादम्बरी का अर्थ होता है कोयल, परन्तु तुम्हारे स्वर तो बिल्कुल भी मीठे नहीं हैं, तुम्हारे मुँख से तो केवल कड़वें बोल ही निकलते हैं, देवव्रत बोला।

हाँ....हाँ....महाशय! क्यों नहीं? आपके बोल तो मधु में लिप्त रहते हैं, कादम्बरी क्रोधित होकर बोली।

कमलनयनी सोई नहीं थी और कुटिया के भीतर लेटे लेटे उन दोनों के वार्तालाप को सुन कर मन ही मन प्रसन्न हो रही थी।

     साँझ का समय हो चला था, गाँव वालें देवव्रत के दिनचर्या में प्रयोग होने वाली वस्तुएँ लेकर आ चुके थें, गाँववालों ने देवव्रत के मन्दिर में रहने की ब्यवस्था की और गाँव वापस चले गए, कादम्बरी को कमलनयनी ने अपने संग कुटिया में ही रोक लिया था, रात्रि का भोजन कादम्बरी ने ही पकाया, रात्रि को पुनः तीनो भोजन करने बैठे, तब वार्तालाप करते हुए कमलनयनी ने देवव्रत से पूछा____

पंडित जी! आपकी आयु क्या होगीं?

सर्वप्रथम तो आप मुझे पंडित जी कहकर ना पुकारें, क्योंकि आप मेरी आदरणीया है और आप मेरी माँ समान हैं, इसलिए मैं आपको भक्तिन माँ कहकर ही पुकारा करूँगा एवं कृपया आप मुझे मेरा नाम लेकर ही पुकारा करें और रहीं मेरी आयु की बात तो मेरी आयु यही कोई इक्कीस वर्ष होगी, देवव्रत बोला।

   अच्छा, ठीक है मै तुम्हें देवव्रत ही कहकर पुकारा करूँगी, इतनी कम आयु में तुमने इतना ज्ञान अर्जित कर लिया, अत्यधिक अच्छा लगा, ऐसे ही सफलता अर्जित करो , मेरा आशीर्वाद सदैव तुम्हारे संग है, परन्तु एक बात बोलूँ, तुम्हारा नाम कुछ सुना सुना सा लग रहा है किन्तु कुछ याद नहीं आ रहा, कमलनयनी बोली।

    कोई आश्चर्य वाली बात नहीं है भक्तिन माँ! कोई और भी होगा मेरे नाम जैसा, देवव्रत बोला।

कमल ने मन में सोचा कि कितना शिष्ट और ज्ञानी बालक है, कितना अच्छा हो यदि कादम्बरी का ब्याह इस बालक से हो जाए, किन्तु ये तो अत्यधिक अच्छे परिवार से लगता है, क्या ये कादम्बरी से ब्याह के लिए सहमत होगा?

   कुछ ही दिनों में देवव्रत ने मन्दिर का कार्यभार सम्भाल लिया और ऐसे ही दिन बीत रहे थें____

मुखिया जी ने बड़े बरगद के तले और मंदिर के निकट देवव्रत की कुटिया भी , कमलनयनी की कुटिया के बगल में बनवा दी, कभी देवव्रत स्वयं भोजन पकाकर भक्तिन माँ के संग खा लेता तो कभी कमल ही कुछ पकाकर देवव्रत को खिला देती तो कभी कादम्बरी ही दोनों के लिए भोजन पकाकर ले आती, परन्तु देवव्रत सदैव अपनी भक्तिन माँ के संग ही भोजन करता।

    इस तरह कादम्बरी और देवव्रत एक दूसरे के समीप आते जा रहे थे, दोनों के हृदय में एक दूसरे के लिए प्रेम अंकुरित हो रहा था, परन्तु दोनों में से किसी ने भी अपने हृदय की बात एक दूसरे को नहीं बताई।

     इधर मयूरी को कादम्बरी पर कुछ संदेह हो चला था क्योंकि कादम्बरी अब आए दिन मंदिर जाने लगी थी, उसके स्वाभाव में भी कुछ अन्तर दिखाई दे रहा था, अब वो गम्भीर दिखाई पड़ने लगी थी, अब ना वो पहले की भाँति अधिक हँसती और ना ही हठ करती, जो कह दो तो शांत होकर मान लेती, ये बात मयूरी ने श्याम को बताई।

   तो तुम मन्दिर क्यों नहीं चली जाती?कदाचित कमलनयनी को कुछ ज्ञात हो, श्याम बोला।

हाँ! कदाचित तुम ठीक कह रहे हो, कल ही मैं अकेले ही मन्दिर जाऊँगी, कादम्बरी को घर पर ही छोड़ दूँगी, मयूरी ने श्याम से कहा।

       और दूसरे दिन ही मयूरी ने कादम्बरी को घर में रहने का आदेश दिया और स्वयं वो कमलनयनी के पास मन्दिर चली आई, उसने कमलनयनी से कहा___

  आजकल कादम्बरी के स्वाभाव में अत्यधिक परिवर्तन आ गया हैं, क्या आपको इसका कारण ज्ञात है?मयूरी ने पूछा।

  हाँ, हमारी कादम्बरी को प्रेम हो गया है, ये मैं अपने अनुभवों से कह रही हूँ, जब मैं मन्दिर के पंडित जी और कादम्बरी के मध्य हो रहे वार्तालाप को सुनती हूँ तो मुझे इसका अनुभव होता है कि कदाचित दोनों के मध्य प्रेम का अंकुरण हो रहा है, मैं देख तो नहीं सकती किन्तु मन के भावों को भलीभाँति अनुभव कर सकतीं हूँ, हो ना हो मयूरी के गम्भीर होने का यही कारण है, कमलनयनी बोली।

    तभी वहाँ देवव्रत आ पहुँचा और उसने कमलनयनी से कहा____

चलिए, भक्तिन माँ! भोजन कर लीजिए, आज दोपहर का भोजन मैने पकाया है, जी और आप, देवव्रत ने मयूरी की ओर संकेत करते हुए पूछा___

   ये....ये कादम्बरी की माता जी हैं, कमलनयनी बोली।

इतना सुनते ही देवव्रत ने शीघ्र ही मयूरी के चरणस्पर्श किए और कहा____

काकी जी! चलिए आप भी हम लोगों के संग भोजन कीजिए।

 कुछ भोजन मैं भी लाई थी अपनी सखी के लिए, चलिए सब संग में भोजन करते हैं, मयूरी बोली।

 मयूरी ने सबके लिए भोजन परोसा और सब संग मिलकर खाने बैठे, इसके उपरांत आपस में कुछ वार्तालाप भी हुआ।

       कुछ समय उपरांत जब मयूरी को कमलनयनी के संग एकांत का अवसर मिला तो उसने कमलनयनी से कहा___

बालक तो बहुत ही अच्छा है, अत्यधिक संस्कारों वाला भी लगता है, मुझे तो अत्यधिक भा गया ।

 वही तो मैं कहना चाहती थी, मैने उसकी सूरत तो नहीं देखी किन्तु इतना अवश्य कह सकती हूँ कि बालक हृदय का अत्यन्त ही अच्छा है, वो हमारी कादम्बरी को सदैव प्रसन्न रखेगा, कमलनयनी बोली।

   मैं आज ही श्याम से इस विषय पर बात करती हूँ, कुछ ही समय में नवरात्रि प्रारम्भ होने वाली है, इसी के मध्य यह शुभ कार्य हो जाए तो अति उत्तम रहेगा, मयूरी बोली।

      हाँ! मयूरी! बिलम्ब मत करना, कभी कभी अधिक बिलम्ब हो जाने से हाथों से सब छूट जाता है और उसका जीता जागता उदाहरण तुम्हारे समक्ष है, कमलनयनी उदास होकर बोली।

    इतनी ब्यथित ना हो सखी! तुम्हारे मन की इच्छा एक ना एक दिन अवश्य पूर्ण होगी, एक दिन पुरोहित जी के दर्शन पाकर तुम्हारे मन को अवश्य तृप्ति मिलेगी, मयूरी बोली।

  मयूरी! मैने तो अब इसकी आशा ही छोड़ दी है, ये तो मेरे लिए एक अधूरा स्वप्न बनकर रह गया है, मुझे अब अन्तर भी नहीं पड़ता, बस मैं तो उनको मीरा की भाँति अपने मन मन्दिर में बसा कर दिनरात उनकी ही भक्ति करती हूँ, कमलनयनी बोली।

    परन्तु सखी! तुम्हारी प्रतीक्षा कभी भी ब्यर्थ ना जाएगी और ये अधूरा स्वप्न एक ना एक दिन अवश्य पूर्ण होगा, मयूरी बोली।

बस, इसी आशा में तो अब तक जीवित हूँ नहीं तो कब के प्राण त्याग चुकी होती, कमलनयनी बोली।

 ऐसे अशुभ शब्दों का प्रयोग ना करो सखी, सकारात्मक सोचों, पुरोहित जी के दर्शन तुम्हें शीघ्र ही होगें, मयूरी बोली।

  तुम्हारा कथन सत्य निकले मयूरी! कमलनयनी बोली।

अच्छा, सखी! अब मैं जाती हूँ, साँझ होने वाली है श्याम और मयूरी मेरी प्रतीक्षा कर रहे होगें, मयूरी बोली।

अच्छा, मयूरी! अब तुम जाओ और इस विषय पर श्याम से अवश्य पूछ लेना, कमलनयनी बोली।

हाँ अवश्य और इतना कहकर मयूरी चली गई।

  घर जाकर मयूरी ने श्याम से देवव्रत के विषय में कहा___

सर्प्रथम इस विषय में कादम्बरी से पूछ लो, यदि उसकी इच्छा देवव्रत से विवाह की है तो उसकी ही इच्छा हम सबकी भी इच्छा होगी, श्याम बोला।

 इसके उपरांत मयूरी ने इस विषय पर कादम्बरी से पूछा तो कादम्बरी ने हाँ में उत्तर दिया, आप श्याम को पूर्णतः विश्वास हो गया था और इस विवाह की लिए उसने सहमति दे दी एवं एक दिन श्याम और मयूरी की योजना मन्दिर जाने के लिए बनी क्योंकि श्याम भी देवव्रत को देखना चाहता था और दोनों देवव्रत से मिलने मन्दिर पहुँचे।

    श्याम ने जैसे ही देवव्रत को देखा तो वो उसे भा गया और विवाह के विषय में श्याम ने देवव्रत से कुछ वार्तालाप किया, देवव्रत बोला___

 जैसा आप उचित समझें, आप लोगों लगता है कि यदि मैं आपके पुत्री के लिए योग्य वर हूँ तो मुझे भी इसमें कोई आपत्ति नहीं है, कादम्बरी जैसी सुशील और सुन्दर कन्या से भला कौन ब्याह ना करना चाहेगा, इस ब्याह के लिए मेरी सहमति है किन्तु इतना बड़ा निर्णय लेने से पहले मुझे अपने पिताश्री की भी अनुमति चाहिए होगी, यदि आप लोगों को कोई आपत्ति ना हो।

  अवश्य! उनकी सहमति के बिना तो ये कार्य पूर्ण ही नहीं हो सकता, आप नवरात्रि में अपने पिताश्री को हमारे निवास स्थान पर लाइए, वो हमारी पुत्री को देखकर संतुष्ट हो जाएं तभी ये कार्य सम्पन्न होगा, तो ऐसा कीजिए आप नवरात्रि की अष्टमी को अपने पिताश्री के संग हमारे निवास स्थान पर पधारें, किन्तु आप कल ही हमारे घर जलपान हेतु आमंत्रित हैं, कृपया अपने चरण स्पर्शों से हमारे घर को पवित्र करें, श्याम बोला।

   जी अवश्य! मैं कल ही दोपहर के भोजन के लिए आपके घर पर मुखिया जी के संग उपस्थित हो जाऊँगा, देवव्रत बोला।

   जी, हम प्रतीक्षा करेंगें, श्याम बोला।

और कुछ देर के वार्तालाप के पश्चात् श्याम और मयूरी वापस अपने घर लौट गए, दूसरे दिन देवव्रत भी जलपान हेतु दोपहर के समय कादम्बरी के घर पहुँचा, मयूरी और श्याम ने देवव्रत को बड़े आदर सत्कार के संग भोजन कराया, देवव्रत को भी कादम्बरी के माता पिता भा गए , वो प्रसन्नतापूर्वक मन्दिर लौटा और कमलनयनी को सारा वृत्तांत सुनाया, ये सुनकर कमलनयनी भी अति प्रसन्न हुई।

    बस, ऐसे ही मिलने मिलाने में नवरात्रि भी आ गई, इसी मध्य देवव्रत अपने घर अपने पिता को इस बात की सूचना दी और उनसे कहा कि उन दोनों को नवरात्रि की अष्टमी के दिन कादम्बरी के परिवार ने अपने घर पर आमंत्रित किया है, विवाह की बात करने के लिए।

    देवव्रत के पिता ये सुनकर अति प्रसन्न हुए कि उनके पुत्र ने स्वयं ही पुत्रवधु ढूढ़ ली, वो इस विषय में विचार ही कर रहे थे और ये कार्य देवव्रत ने पूर्ण कर दिया , उन्होंने अष्टमी के दिन कादम्बरी के घर चलने की अनुमति दे दी, देवव्रत को अत्यधिक प्रसन्नता हुई कि उसके पिता इस बात से सहमत हैं।

      कमल ने नवरात्रि का व्रत रखा है, दिन में एक समय जल और कुछ फल ग्रहण करती है, ऐसा करने से उसका स्वास्थ्य बिगड़ रहा है, परन्तु उसने अपना नियम नहीं तोड़ा, जब वो अत्यधिक जीर्ण हो गई तो उसने अपनी देखभाल के लिए कादम्बरी को बुलवा लिया क्योंकि देवव्रत भी उस समय अपने घर गया हुआ था,

      आज अष्टमी है और अत्यधिक दयनीय अवस्था है कमलनयनी की, सुबह उसने कुछ जल एवं फल ग्रहण किए थे और तब से कुछ और भी ग्रहण नहीं किया, उसकी अवस्था देखकर कादम्बरी उससे बार बार विनती कर रही है किन्तु कमलनयनी उसकी एक नहीं सुन रही है____

 बड़ी माँ! कुछ तो ग्रहण कर लीजिए, आपकी दशा अत्यन्त दयनीय हो रही है, कादम्बरी बोली।

नहीं मेरा व्रत पूर्ण नहीं होगा, मेरी वर्षों की तपस्या भंग हो जाएगी, कमलनयनी बोली।

 कादम्बरी के इतना आग्रह करने के पश्चात् भी कमल ने कुछ भी ग्रहण नहीं किया, कादम्बरी चिन्तित होकर कमल के सिराहने बैठ गई।

    और उधर गाँव में,

जैसे ही देवव्रत अपने पिता को लेकर कादम्बरी के घर के द्वार पर उपस्थित हुआ तो श्याम ने ही किवाड़ खोले और अपने समक्ष पुरोहित गौरीशंकर को देखकर आश्चर्यचकित हो उठा____

पुरोहित जी! आप! वो भी इतने वर्षों के उपरांत, श्याम बोला।

जी, श्याम जी! तो क्या आप ही कादम्बरी के पिता हैं?गौरीशंकर ने पूछा।

और देवव्रत आपका ही पुत्र है, श्याम बोला।

हाँ! मेरा ही पुत्र है, किन्तु ये सब बातें बाद में कीजिएगा, पहले मुझे ये ज्ञात करना है कि कमलनयनी कहाँ हैं? गौरीशंकर बोला।

 अब क्या कहूँ? पुरोहित जी!आपके कहने पर वो आपके जीवन से दूर तो हो गई परन्तु, वो जीवित होकर भी निष्प्राण थी, आपके प्रेम ने उसकी दशा को अत्यन्त दयनीय बना दिया, अत्यधिक रोने से उसके नेत्रों की ज्योति चली गई और अब जोगन बनकर मन्दिर में भजन गाती रहती है और आपकी प्रतीक्षा करती है, श्याम बोला।

तो क्या? भक्तिन माँ ही आपकी कमलनयनी है, जैसा कि प्राण त्यागते समय माता ने बताया था, देवव्रत ने कहा।

हाँ! पुत्र !वो ही कमलनयनी है और उसकी अवस्था अत्यधिक जीर्ण हो चली है, परन्तु उसने व्रत रखना नहीं छोड़ा, इसी कारण उसकी स्थिति इतनी बिगड़ चुकी है कि कदाचित कोई अशुभ समाचार ना आ जाए, आप आने वाले थे , इसलिए आज हम दोनों उससे मिलने नहीं जा पाएं, श्याम बोला।

मेरे कारण इतनी बुरी अवस्था हो गई है कमलनयनी की, मैं ही उसका अपराधी हूँ, ईश्वर मुझे कभी भी क्षमा नहीं करेगा, मैं अभी इसी समय उसे देखना चाहता हूँ, कृपया आप मुझे वहाँ लें चलें, गौरीशंकर बोला।

   और सब निकल पड़े मन्दिर की ओर कमलनयनी से मिलने, वहाँ पहुँचकर गौरीशंकर ने कुटिया के बाहर से पुकारा____

कमल.....कमल....देखों मैं आ गया।

कमलनयनी ने जैसे ही गौरीशंकर का स्वर सुना तो आश्चर्यचकित हो उठी,

और इतना कहते ही गौरीशंकर जैसे ही कुटिया के भीतर पहुँचा, तो कमल बोली___

पुरोहित जी ! आप आ गए, ईश्वर को मेरे अन्तिम समय में आखिर दया आ ही गई मेरे ऊपर,

    ऐसा ना कहो कमल ! गौरीशंकर ने कमल का सिर अपनी गोद मे रखते हुए कहा___

बस, पुरोहित जी!एक बार मुझे अपने हृदय से लगा लीजिए, मेरी वर्षों से प्यासी आत्मा को तृप्त कर दीजिए, कमलनयनी बोली।

  और कमलनयनी के इतना कहने पर गौरीशंकर ने कमलनयनी को अपने हृदय से लिया___

किन्तु, ये क्या? गौरीशंकर ने जैसे ही कमलनयनी को अपने हृदय से लगाया , कमलनयनी के हृदय की गति रूक गई, उसने श्वास लेना बंद कर दिया, कदाचित गौरीशंकर को पाकर वो तृप्त हो चुकी थी।

     गौरीशंकर फूट फूटकर रोते हुए बोला____

इतने वर्षों बाद मिली थी, इतनी घनघोर तपस्या की तुमने मेरे लिए और आज जब हमारा संगम होने वाला था तो तुम मुझे छोड़कर चली गई, मेरे संग बहुत बड़ा विश्वासघात किया तुमने कमल!जितनी अधीर और व्याकुल तुम थी मेरे लिए मैं उससे अधिक अधीर और व्याकुल था तुम्हारे लिए, ईश्वर साक्षी है कि कैसे मैने इतने वर्ष मृत के समान बिताएँ हैं, तुम मेरे जीवन से चली गईं तो ऐसा प्रतीत हुआ कि इस शरीर से मेरे प्राण भी चले गए, तुम मेरी आत्मा थीं, मैनें जब पहली बार तुम्हारे होंठो को स्पर्श किया था तो उसी समय मुझे तुमसे प्रेम का अनुभव हो गया था किन्तु मेरे कर्तव्य मेरे प्रेम के आड़े आ गए, आज मैं पुनः तुम्हारे मृत होंठों का स्पर्श करके उस अनुभव को पुनः पाना चाहता हूँ, क्या पता मैं पुनः भविष्य में तुम्हारा स्पर्श ना पा पाऊँ____

       और रोते हुए गौरीशंकर ने अपने होंठों से कमलनयनी के होंठों का स्पर्श किया, गौरीशंकर का स्पर्श पाकर कमलनयनी के शरीर में कम्पन हुआ, उसमें चेतना का संचार प्रारम्भ हो गया और वो जीवित हो उठी, कमलनयनी को जीवित देखकर गौरीशंकर ने कमलनयनी को प्रसन्नतापूर्वक अपने हृदय से लगा लिया, आज वर्षों के पश्चात एक दूसरे के प्रेम को पाकर दोनों को तृप्ति मिल गई थी।

समाप्त____


    



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