Mahendra Pipakshtriya

Romance Crime Thriller

4  

Mahendra Pipakshtriya

Romance Crime Thriller

Today's Chanakya Chapter 3

Today's Chanakya Chapter 3

13 mins
430


३. The Naughty One


सुबह के 6 बज रहे थे। ओम अनिरुद्ध के कमरे में उसके पलंग पर बैठा था और पास में बाथरूम से शॉवर से पानी गिरने की आवाज आ रही थी।

" भाई तू इतना जल्दी उठ नहा धोकर तैयार हो जाता है इसका मतलब ये नहीं की तू अपने दोस्तों को भी इस बात के लिए परेशान करे।" बाथरूम से अनिरुद्ध की आवाज आई।

" ऐसा है की हमें किसी आवश्यक कार्य से बाहर जाना है।" ओम ने शिकन भरे चेहरे के साथ अपने मोटे से चश्मे को थोड़ा ऊपर नीचे करते हुए कहा।

" इतनी सुबह क्या काम है भाई?" अनिरुद्ध टॉवेल में बाथरूम से बाहर निकलते हुए बोला ।

" तुम्हारे लिए एक ड्राइवर ढूंढने।" कहते हुए ओम पलंग पर से खड़ा हो गया और अपना चश्मा उतार बाथरूम के दरवाजे के पास ही लगे मिरर के पास पहुंच गया।

" पर मेरे पास तो ड्राइवर है!" अनिरुद्ध ने प्रश्नभरी नजरों से ओम की तरफ देखते हुए कहा।

" हां पर मुझे लगता है हमें उससे अच्छा ड्राइवर चाहिए।" ओम ने मिरर में अपने चेहरे को गौर से देखते हुए कहा। उसने अपनी दोनों आंखों के पास नाक की हड्डी को अपनी तर्जनी अंगुली और अंगूठे से दबाते हुए कहा, " ये आज मेरे नाक - कान क्यों दर्द कर रहे है।" उसके चेहरे पर पहले की ही तरह शिकन के भाव थे।

" सर्दी जुकान हुआ होगा।" अनिरुद्ध ने विकल्प सुझाया।

" नहीं , परंतु मौसम परिवर्तन के कारण हो भी सकता है।" कहते हुए ओम ने फिर से अपना चश्मा पहन लिया और वह फिर से अनिरुद्ध की तरफ मुड़ गया।

"तो चले?" उसने अनिरुद्ध की तरफ बढ़ते हुए कहा।

" हां हां, पहले मैं कपड़े तो पहन लूं।" अनिरुद्ध ने पेंट पहनते हुए कहा। " पर ये 'अच्छा ड्राइवर' क्यों चाहिए।"

ओम मुस्कुराते हुए बोला, " क्योंकि हमें तुम्हारी प्राचीन वस्तुओं को बचाने के लिए हेवी ड्राइवर चाहिए।" इसी बीच अनिरुद्ध अपने कपड़े पहन चुका था।

" तो ऐसा बोलो न ।" कहते हुए अनिरुद्ध ओम को एक तरफ कर मिरर के पास जा पहुंचा और खुद को संवारने लगा।

" मुझे बस 2 मिनट और लगेंगे।" अनिरुद्ध अपने बालों को comb करते हुए बोला।

परंतु अगले 5 मिनट बाद ही वो दोनों अपनी गाड़ी में निकल पाए।

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यह एक सब-अर्बन एरिया था। अनिरुद्ध और ओम एक मैदान में अपनी गाड़ी के पास खड़े थे। शायद कुछ वर्षों पहले यहां से कोई नदी बहती रही होगी पर अब थोड़े से गंदे पानी के अलावा यहां कुछ नही था वो भी पास की ही किसी फैक्ट्री से यहां नाली के रूप में आ रहा था। यहां से करीब 200 मीटर की ही दूरी पर कुछ झोपड़ पट्टियां दिखाई दे रही थी। वही से अजान की आवाज भी आ रही थी।

" यार इस एरिया में।" अनिरुद्ध ने अपने चारों ओर देखते हुए कहा, "तुम हमारे लिए यहां से किसी को काम पर रखना चाहते हो ?" अनिरुद्ध ने ओम की तरफ गौर से देखते हुए बड़े ही अविश्वास भरे लहजे में कहा।

" अयोग्य पुरुषो नास्ति, योजकस्तत्र दुर्लभ ।"

ओम की कहे श्लोक को सुनकर अनिरुद्ध ने बिना कुछ बोले ही इस प्रकार अपना सिर हिलाया जैसे वह उसकी बात समझ चुका हो और उससे प्रभावित हो चुका हो।

" वैसे वो है कौन?" अनिरुद्ध ने जिज्ञासापूर्वक कहा।

" मैने उस तक खबर पहुचाई हैं, वो आ........." तभी एक हॉर्न के शोर की वजह से उसकी बात अधूरी रह गई।

' पो...... पो ।"

उस झोपड़ पट्टी की ओर से आती एक टैक्सी ने उन दोनों का ध्यान अपनी ओर खींच लिया था।

उस टैक्सी को एक लड़की चला रही थी ।ऐसा लग रहा था जैसे उसमे सलमान खान की आत्मा आ गई थी क्योंकि उस तंग गली से उसने टैक्सी को ऐसे घुमाया था की वहां से गुजरने वाले तीन राहगीर हॉस्पिटल में भर्ती होने से बाल बाल बचे थे।

"अबे देख के नही चल सकते क्या?" वह लड़की टैक्सी से अपना मुंह बाहर निकल कर चिल्लाई।

टैक्सी ओम और अनिरुद्ध की तरफ की बढ़ रही थी। उनके पास पहुंचते ही लड़की ने टैक्सी को ऐसे चलाया जैसे कोई सांप चल रहा हो। वह उसे ऐसे भगा रही थी जैसे वो टैक्सी नहीं रेसिंग कार हो।

लड़की ने टैक्सी की स्पीड तब भी कम नहीं की थी जब वह ओम और अनिरुद्ध के बहुत करीब पहुंच गई थी। कुछ ही फीट की दूरी पर उसने टैक्सी को इस प्रकार घुमाया की वह स्किड करते हुए उन दोनों से कुछ ही इंच दूर रही होगी।

" और जानेमन।" उस लड़की ने अपने काले गोगल को अपने कपाल तक ऊपर उठाते हुए कहा," आज सूरज किधर से उगेला हैं, जो खुद संस्कारी महाराज अपने एरिया में आ गेले है।" उसकी टपोरी भाषा में शरारत का मिश्रण था ।

वह लड़की एक ही झटके में टैक्सी का दरवाजा खौल टैक्सी से बाहर आ गई। उसने जींस और चितकबरा शर्ट पहन रखा और उसका अंदाज टपोरियों भी जैसा ही था।

" तो तुम इस पुरुष की बात कर रहे थे।" अनिरुद्ध ने ओम को घुरकर देखते चिल्लाया, " ये अभी हमे ऊपर पहुंचा देती।"

" मैं श्लोक बोल रहा था ...।"

ओम आगे कुछ बोल पाता उससे पहले ही वो लड़की बोल पड़ी।

" तुमने अपुन को पुरुष बोला।" वह लड़की ओम की तरफ दो कदम बढ़ चली, " साला अपुन तेरे को पुरुष लगता है क्या इसीलिए तू अपुन से कन्नी काटता है।"

" संस्कृत का पुरुष शब्द नर - नारी दोनों के लिए use होता है।" ओम उससे थोड़ी दूरी बनाते हुए बोला। अनिरुद्ध के चहरे के भाव ओम की मिश्रित भाषा सुनकर बदल गए थे पर वह कुछ बोला नहीं।

" नर - नारी के लिए use होता है, तो अपुन के लिए क्यों use कर रहा हैं।" वह लड़की फिर से उबल पड़ी।

" अरे, लड़का - लड़की दोनों के लिए उसे होता हैं।" ओम ने परेशान होते हुए कहा।

" हां तो ऐसे pure हिंदी में बोलने का।" लड़की की आवाज से पता चल रहा था की अब उसका पारा उतर रहा था।

ओम ने पहले तो उस लड़की को घूर कर देखा फिर अनिरुद्ध की तरफ नजर घुमाई। अनिरुद्ध को ओम की भाषा में आए बदलाव का कारण समझ आ गया था और उसकी दबी हुई हंसी धीरे से बाहर निकल गई।

" अपुन को पता चला है की तू अपुन को ढूंढ रहा है।" कहते हुए वह लड़की अनिरुद्ध की तरफ मुड़ गई, " और ये सेठ कौन है?" उसने ऐसा अनिरुद्ध के सूट - बूट को देखते हुए कहा था।

" ये मेरा दोस्त हैं।"

ओम आगे बोलता उससे पहले ही वो लड़की बोल पड़ी, " क्या फैकता है। जरा इस सेठ को देख और खुद को देख।" कहते हुए उसने ओम कपड़ों की तरफ दोनों हाथों से इशारा किया क्योंकि ओम साधारण पेंट - शर्ट पहने हुए था।

ओम कुछ बोल पाता उससे पहले ही अनिरुद्ध आगे बढ़ते हुए बोला, " वैसे मेरा नाम अनिरुद्ध रामचंद्रन है और ओम सच में मेरा दोस्त है।"

" सच में!" लड़की अचरज के साथ बोली, " चलो तुम बोलते हो तो मान लेती हूं , सेठ! वैसे अपुन का नाम आयशा है।" लड़की ने अभिवादन करने की मुद्रा में झुकते हुए कहा।

" सेठ कहने से तो अच्छा है तुम मुझे अनिरुद्ध ही कहो।" अनिरुद्ध ने गंदा सा मुंह बनाते हुए कहा।

आयशा दांत दिखाते हुए बोली, " जैसी तुम्हारी मर्जी सेठ, मेरा मतलब अनिरुद्ध।" कहते हुए आयशा ने खुद के सिर पर ही बाए हाथ से चपत लगा दी।

यह देख ओम और अनिरुद्ध भी खुद को हंसने से रोक नहीं पाए।

" वो तो ठीक है।" कहते हुए वो एक ही झटके में उछलकर टैक्सी के बोनट पर बैठ गई।

' ठपाक'

एक जोरदार आवाज के साथ टैक्सी अच्छे से हिल गई थी।

" पर तुम लोग अपुन को क्यों ढूंढ रेले थे?" आयशा अपना सिर हिलाते हुए पूछा।

" हमें एक ड्राइवर की जरूरत हैं। सोचा तुमसे बेहतर कौन होगा ?" ओम ने मस्का लगाने के अंदाज में कहा।

" एक मिनट रुको।" आयशा ने अपने बाए हाथ की अंगुली आसमान की तरफ उठाते हुए कहा, " तुझे अपुन ड्राइवर लगती है।" आयशा ने ओम को घूर कर देखते हुए आगे कहा, " याद है तुमने मुझे उस दिन कितना सुनाया था।"

" हमें heavy driver की जरूरत है।" ओम ने उसकी बात को टालते हुए कहा।

" क्या मतलब?" आयशा बोनट से उतर कर ओम की तरफ बढ़ गई।

" अरे मेरे heavy driver कहने का मतलब केवल ड्राइविंग से है मेरी मां।" ओम पीछे हटते हुए बोला।

अनिरुद्ध को यह सब देखकर काफी हंसी आ रही , शायद वह पहली बार ओम को इतना लाचार देख रहा था।

" अरे अनिरुद्ध तुम कुछ बोलते क्यों नहीं।" ओम ने अनिरुद्ध को आवाज देते हुए कहा।

" ये सही कह रहा है, हमे सच में ड्राइवर की जरूरत है।" अनिरुद्ध ने ओम को आयशा से बचाने का प्रयास किया।

अनिरुद्ध की बात सुनकर आयशा रुक भी गई।

" अच्छी बात है।" आयशा अनिरुद्ध की तरफ मुड़ते हुए बोली, " पर अपुन का अपना बिजनस हैं, अपन अपने लिए ईच गाड़ी चलाती है।"

" तुम एक टैक्सी चलाती हो! " ओम उसके पीठ पीछे रूखे स्वर बोला।

" यही च अपना बिजनस है।" आयशा तेजी से ओम की तरफ मुड़कर बोली, " और अपुन इसी से खुश है, समझा।"

" हम तुम्हे एक लाख देंगे।" अनिरुद्ध ने कहा।

" महीने का।" आयशा आवेग के साथ एक ही झटके में अनिरुद्ध की तरफ दौड़ पड़ी।

" एक दिन का।" ओम ने आयशा की तरफ देखते हुए कहा।

"साला मजाक नही करने का मेरे साथ।" आयशा फिर गुस्सा हो गई।

" मैने कभी मजाक किया है तुमसे ?" ओम ने गंभीर आवाज में कहा।

" वो तो है पर।" आयशा ने कुछ सोचते हुए बोला, " तुम्हें कही हेलीकॉप्टर तो नही उड़वाना मुझसे?"

" नहीं नहीं, गाड़ी ही चलानी है।" ओम दांत दिखाते हुए बोला, " तुम्हें हमारे साथ आने वाले थर्सडे तक रहना है 'सिर्फ काम के लिए ',और एक दिन गाड़ी चलानी है।" ओम ने ' सिर्फ काम ' शब्द पर विशेष जोर देते हुए कहा।

" सात दिन! तुम्हारे साथ।" आयशा की आवाज में फिर से शरारत के भाव थे, " पहले बता देते तो अपुन फ्री में आ जाती।" वह धीरे से फुसफुसाई पर उसकी आवाज इतनी भी धीमी नही थी की ओम और अनिरुद्ध उसे सुन न पाए हो।

" लाओ चाबी अपुन अभी से काम पर लग जाती है।" आयशा ने अपना हाथ ओम की तरफ आगे बढ़ते हुए कहा।

ओम ने उसके हथेली पर एक कार्ड रख दिया।

" अपना सामान लेकर कल तक इस एड्रेस पर आ जाना।" कहते हुए ओम उस गाड़ी की तरफ मुड़ गया जिसमे वो और अनिरुद्ध आए थे। अनिरुद्ध भी बिना बोले उसके पीछे हो लिया।

आयशा अपने हाथ में कार्ड लिए, दोनों को जाते हुए देख रही थी।

" अपुन आज ही आ जायेगी।"

आएशा, ओम की जाती हुई कार को देखते हुए खुद से ही बोल पड़ी।

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" तो ओमू मेरी जानेमन! " अनिरुद्ध ने हंसते हुए कहा जबकि ओम कार चला रहा था, " ये क्या था, बसपन का प्यार।"

" वो हमारे काम के लिए जरूरी है।" ओम की नजर सड़क पर जमी हुई थी, " इसके अलावा और कुछ नही।"

" वैसे उसमे कोई खराबी भी नही हैं, दिखने में भी सुंदर है।" अनिरुद्ध ओम के मजे लेते हुए आयशा की तारीफ करने लगा, " हां टपोरी भाषा में चपर चपर बहुत करती है पर तुम्हारे लिए परफेक्ट लगती है, जोड़ी जमेगी।"

"क्या बात कर रहे हो तुम।" ओम ने बिना अनिरुद्ध की तरफ देखे कहा, " तुमने देखा नहीं ,वो कैसे मुझसे झगड़ रही थी।"

" मुझे वो झगड़ना कम और तुम्हारे पास आने की कोशिश ज्यादा लग रही थी।" ओम खिलखिलाते हुए बोला।

" उसका नाम आयशा सईद है।" ओम ने एक सेकंड के लिए अनिरुद्ध की तरफ देखकर कहा।

" क्या यार।" अनिरुद्ध ने अपना सिर बाई ओर हिलाते हुए कहा, " इतना भी idealist नहीं होना चाहिए, ' अति सर्वत्र वर्जयेत् '।"

" अब तुम संस्कृत बोलने लगे।" कहते हुए ओम ने कार को दाई ओर मोड़ दिया।

" हां , तो अमेरिका में भी यूनिवर्सिटीज संस्कृत ऑफर करती है।" अनिरुद्ध ने कहा, " मुझे वो तुम्हारे लिए सही लगती है पर तुम्हें यकीन है कि वो इस काम के लिए सही हैं, तुमने उसकी स्टंटबाजी देखी थी न।"

"हमे इस काम के लिए ऐसा कोई चाहिए तो जो विश्वासपात्र हो और हटेला भी।" ओम ने गंभीरता के साथ कहा, " और आयशा में दोनों ही है।"

" अब तुम उसकी भाषा में बोल रहे हो।"

ओम बिना अनिरुद्ध को जवाब दिए केवल मुस्कुरा दिया।

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" साला ये घर है की बंगला।" आयशा ने हॉल में चारों तरफ देखते हुए कहा, " अपनी दस खोलियां आ जायेगी इसमें तो।"

आयशा ने एक काऊबॉय हेट पहन रखा था। उसने अपने सफेद शर्ट के अंतिम दो बटन खोल उसके दोनों छोर को इस प्रकार बांध दिया था की उसकी नाभी स्पष्ट दिखाई दे रही थी। उसका नीला जींस घुटनों में से फटा हुआ था। आयशा अपने साथ दो बड़े bags भी लाई थी।

अनिरुद्ध उसके पास खड़ा मुस्कुरा रहा था।

" आयशा तुम !" ओम ऊपर की मंजिल पर सीढ़ियों के पास आकर बोला। उसने आयशा को एड़ी से चोटी तक देखते हुए अजीब मुंह बनाते हुए कहा, " और तुमने ये क्या पहन रखा है?"

"अपुन को लगा , इन कपड़ों में अपुन तेरे को हॉट लगेगी।" आयशा ने अपनी कमर को लहराते हुए कहा। उसके अंदाज में शरारत भरी हुई थी।

"क्या!" ओम का चेहरा देखने लायक था, " पर तुम आज क्यों आ गई, तुम्हें तो कल आना था।"

" अपुन आज आ गया उससे कोई प्रोब्मल है तेरे को?" आयशा ने ऊपर देखते हुए पूछा।

" प्रॉब्लम!" अनिरुद्ध ने मुस्कुराते हुए उसे सही करने की कोशिश की।

" हां वही च।" आएशा ने अपना बायां हाथ ओम की तरफ फैलाते हुए कहा, " साला अपुन तेरे लिए टनाटन होकर इधर आया और तू ऐसे मुंह बना जैसे अपुन के आने की तेरे को खुशीच नहीं हो रेली है।"

ओम जानता था की आयशा को चुप कराने का एक ही तरीका है खुद ही चुप हो जाओ।

" क्या सेठ, तेरे खडूस दोस्त का कमरा कौनसा है?" आयशा ने अपने दोनों bags उठाते हुए पूछा।

"ऊपर से पहला।" अनिरुद्ध ने सीढ़ियों की तरफ हाथ करते हुए कहा।

" क्यों! क्या करना है?" ओम ने घबराते हुए कहा।

" टेंशन नको रे।" आयशा शरारत भरे लहजे में बोली, " जब तक शादी नहीं हो जाती अपुन तेरे पास वाले कमरे में रह लेगी।" उसने मुस्कुराते हुए अनिरुद्ध की तरफ देखा, " OK सेठ।"

" OK." अनिरुद्ध भी मुस्कुरा दिया।

" क्या OK।" ओम ने झल्लाते हुए कहा, " तुम्हें नीचे का कमरा मिलेगा।"

" अपुन को ऊपर का कमरा नहीं मिला तो अपुन काम नहीं करेगा।" आयशा ने ओम की आंखों में आंखें डालकर कहा। उसकी नाक ओम की नाक से एक इंच से भी कम दूरी पर थी।

आखिर ओम को मानना ही पड़ा। आयशा को ओम के कमरे के पास वाला कमरा मिल गया।

रात का खाना खाने के बाद करीब आठ बजे सब अपने कमरों में थे। ओम ने अगले दिन सुबह 8 बजे हॉल में इकट्ठा होने को कहा था।


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दस बज रहे थे। ओम सोने की तैयारी ही कर रहा था की किसी ने उसका दरवाजा खटखटाया।

उसने दरवाजा खोला तो सामने आयशा थी।

"तुम!" ओम ने आयशा को गौर से देखते हुए कहा, " और इस वक्त।"

" वो मेरे को।" कहते हुए आयशा ओम के कमरे के अंदर आ गई।

"अरे।" ओम उसे देखता ही रह गया।

" मेरे को तेरे दोस्त ने बताया की इस बंगले में भूत हैं।" आयशा के चेहरे से ही पता चल रहा था की वह डरने का नाटक कर रही थी।

" इस बंगले में नहीं, उसके बंगले में भूत था" **

( अधिक जानकारी के लिए पढ़े पुस्तैनी बंगला भाग 1 एवम् पुस्तैनी बंगला भाग 2)

" जो भी हो अपुन को भूतों से बहुत डर लगता है।" वह बोलती रही, " क्या पता सेठ के पीछे इधर भी आ गेले हो, अपुन इसी कमरे में सोएगा।"

" अरे इधर कुछ नही है, तुम प्लीज अपने कमरे में जाकर सो जाओ।" ओम झल्लाया।

" नही अपुन नही जायेगा। तू जो बोलेगा वो करेगा पर अपुन इसी कमरे में सोएगा।" वह कमरे में बहुत अंदर तक आ गई थी, ताकि ओम उसे बाहर न निकल सके।

" ठीक है पर तुम इसके बाद कोई और डिमांड मत करना।"

" वादा।" आएशा खुशी के मारे पलंग के ऊपर चढ़ गई, " चल सो जाते है, सुबह काम भी करना है।"

पर ओम कमरे के दरवाजे की तरफ जाने लगा।

" हां, दरवाजे को कुंडी लगा दे।" आयशा बच्चों की तरह हरकते कर रही थी।

ओम दरवाजा बंद करने की बजाय कमरे से ही बाहर निकल गया।

" अरे तू किधर जा रेला है ?" आयशा ने उसे आवाज लगाई।

" मैंने कहा तुम इस कमरे में सो सकती हो।" ओम ने बिना उसकी ओर देखे ही कहा, "मैं तुम्हारे कमरे में सोने जा रहा हूं।"

" पर अपुन को अकेले...."

आयशा अपनी बात पूरी नहीं कर पाई क्योंकि ओम बीच में बोल पड़ा, " तुमने वादा किया है तुम और डिमांड नहीं करोगी। चुप चाप सो जाओ।" कहते हुए ओम आयशा की नजरों से ओजल हो गया।

" साला चश्मिस, देख लूंगी।" आयशा गुस्से की मारी केवल मुट्ठियां बांधे ही रह गई।



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