आइस क्रीम
आइस क्रीम
ये कहानी मैने 7 साल पहले लिखी थी । तब मैं हमेशा पजलिंग स्टोरी लिखता था जिसका हर उत्तर उसी कहानी में होता था और उत्तर पढ़ने वाले को खुद ही निकलना होता था ।
इस कहानी के साथ भी ऐसा ही कुछ है सभी क्या क्यों कैसे का उत्तर इसी में है( लगभग सभी क्योंकि मैंने कोशिश की है आपके मन मे उठने वाले हर प्रश्न से जुड़ी बात पर तर्क डालने की) पर इसका मंथन आपको ही करना पड़ेगा।अब इसे कृतिदेव से यूनिकोड में कन्वर्ट कर अपलोड कर रहा हूँ तो अगर कोई कन्वर्शन के कारण टाइपिंग में गलतिया हो तो मुझे अवश्य बताए।
धन्यवाद
मुझे लगता है विकास मुझे कभी भी चौका सकता है, सपने में भी। ( एक मिनट इसका मतलब ये नही है कि मुझे विकास के सपने आते है। मैं नॉर्मल हूँ और मुझे भी बाकी लडकों की तरह ही सपने आते हैं। शायद आप समझ गये होंगे।)
खैर अब आप सोच रहे होंगे की विकास ने मुझे किस बात पर चौकाया। वो बात यह थी कि विकास को आइस-क्रीम खानी थी। अब आप ये भी कहेंगे कि इसमें चौकने वाली क्या बात है ?
बात तो है , क्योंकि परिस्थिति ही कुछ ऐसी थी। क्योंकि पिछले पचास साल में पहली बार हमारा शहर बाढ का सामना कर रहा था । नीचले इलाकों में पानी भर चुका था और लोग ऊंचे इलाको और स्कूलों में शरण लेने को मजबूर हो गए थे। हमारे लिए अच्छी बात यह थी कि हम ऊंचे इलाके में थे।
” मैं आइस क्रिम खाने जा रहा हूँ, बस।“ विकास ने हठ करते हुए कहा ।
”तीनो प्रकार के हठ तुममे मौजूद है,मेरे दोस्त।“ मैने उसे डपटते हुए कहा , ”अरे बैल - बुद्धि सात दिनों से शहर की बत्ती गुल है , कही भी तुझे आइस - क्रिम नही मिलेगी।
”मिलेंगी।“
”कहा ?“
“उन्मूक्त सिंह की फेक्ट्री पर।“
”तु आइस - क्रिम की फेक्ट्री से एक आइस - क्रिम खरीदेगा?“ मैं हंस पडा।
”वो तु मुझ पर छोड दे। तु बस चल।“
उसने मेरा हाथ खींचते हुए कहा ।
”पर , फेक्ट्री भी तो लाईट से ही चलती है।“
”उसके पास बेक-अप है।“
”सात दिनों तक बेक-अप !“मैने हंसते हुए कहा , ”हं.......हं ऐसी कौनसी बैटरी है?“
”तू चलेगा कि नही ?“विकास ने गुस्से के साथ पूछा।
”मेरा क्या है। चलो।“
और हम दोनों आइस-क्रिम फेक्ट्री की तरफ चल पडे।
जैसा कि मेरा अनुमान था हमे वहा आइस-क्रिम नही मिली क्योंकि बेचारी बैटरियां को चार दिन पहले ही दम तोड चुकी थी और अगर बैटरियां चालू होती तो भी हमे आइस-क्रिम नही मिलती क्योंकि एक दुर्घटना हो गई थी। उन्मुक्त सिंह की बेटी की लाश बाढ के पानी में से मिली थी। पुलिस वहां पूछताछ के लिए आई थी और वहां रोना धोना भी शुरू हो गया था। इंस्पेक्टर परमार मुझे फेक्ट्री के बाहर मिले और मुझे देखते ही मुस्कुरा दिये -
”जहां भी कुछ गडबड होती है, वहां तुम मिल जाते हो।“ उन्होने मजाकिया अंदाज में कहा , ”कही इसके पिछे तुम्हारा तो हाथ नही है?“
”किसके पिछे मेरा हाथ है , सर?“
“मेरे साथ आओ , पता चल जाएगा। “
इंस्पेक्टर परमार ने मुझे खुला निमंत्रण दिया था इस केस में इन्वॉल्व होने का और मैने भी छोडा नही। वो हमें सीधे पुलिस हैडर्क्वाटर ले गये ।हम एक कमरे में थे जो किसी हॉल से भी बडा था। वहां बहुत सारे यन्त्र पडे हुए थे। एक स्ट्रेचर पर एक लाश पडी थी जो कपड़े से ढकी हुई थी और उससे बदबू भी आ रही थी। उस लाश के पास में ही एक कुर्सी पर एक लडकी बैठी हुई थी जो कुछ लिख रही थी। हमे देखते ही वह खडी हो गई और हमारी तरफ बढी।
”अच्छा हुआ सर आप आ गए।“ वह बिना एक भी पल गवाएं बोल पडी, ”आप वो चीज देखकर चौक जाएंगे जो हमें उस लडकी के पेट में से मिली है।“
”कही इसे बच्चा तो नही मिल गया।“ विकास मेरे कान में फुसफुसाया।
”चुपचाप सुन।“ मैने धीरे से कहा।
इंस्पेक्टर परमार ने उत्सुकता पूर्वक लडकी की तरफ देखा और कहां, ”तो फिर मुझे जल्दी से चौका दो।“
”आइए सर।“ कहते हुए वह लडकी फिर से उस लाश की तरफ बढी। हम तीनों भी उसके पीछे थे। लाश से बदबू आ रही थी इसलिए हमने अपनी नाक ढक ली।
”वो चीज ये है सर।“ वह फिर से हमारी तरफ मुडते हुए बोली। उसके हाथ में एक प्लेट थी जिसमें एक बर्फ का टुकडा था।
”क्या अब भी तुम्हे आइसक्रीम खानी है, विकास? मौका है!“ मैने धीरे से विकास के कान में कहा।
”ह.......अ!“ वह भी जवाब में गुर्राया।
मैने फिर अपनी तव्वजों उस लडकी को दी।
मैने उससे पूछा,” इस लडकी की लाश को पानी से बाहर कब निकाला गया है?“
जवाब में वह लडकी कुछ बोली नही बस मुझे घूर कर देखती रही।
”बताओ,बताओ! ये हमारी मदद के लिए है,मीरा।“ इंस्पेक्टर परमार ने कहा।
”दस घंटे हो गये हैं।“ उसने गंदा सा मुंह बनाते हुए कहा।
”तो तुमने वातावरण के ताप के साथ बर्फ के पिघलने की दर की गणना की है कि दस घंटे में कितनी बर्फ पिघली होगी?“
”हां।“ कहते हुए वह एक तरफ पडे डेस्कटॉप कंप्यूटर की तरफ बढी और की-बोर्ड पर टूट पडी।
”अरे हां, पेट के अंदर रही बर्फ और पेट के बाहर रही बर्फ की गणना अलग-अलग होगी।“
”हां मुझे मालुम है।“वह झल्लाते हुए अपने काम पर लगी रही।
हम तीनों भी बडी उत्सुकता से मोनीटर की तरफ नजरे टिकाएं खडे रहे।
”हो गया।“ मीरा ने बडे ही जोश के साथ कहा,” ये देखिए सर।“
उसने कहा तो इंस्पेक्टर परमार से था पर आगे मैं बढ गया जो उसे बिनकुल ही पसन्द नही आया पर वह कुछ बोली नही।
”एक चौथाई।“ मैं खुद से ही बोला, ”इतना बडा बर्फ का टुकडा।“
मैने पास में ही टेबल पर पडे दस्ताने पहन लिए और फिर उस लाश की तरफ बढ चला।
” चलो देख लेते है।“ कहते हुए मैने बिना किसी की परमिशन लिए ही उस मृत लडकी का मुंह खोल लिया।
” ऐ, लाश के साथ छेडछाड क्यो कर रहे हो?“ मीरा मुझे रोकने के लिए तेजी से मेरी तरफ बढी और साथ ही इंस्पेक्टर परमार भी।
”क्योंकि मेरी तुममें कोई दिलचस्पी नही है।“
”क्या?“
”कुछ नही।“ मैने बात को संभाला, ”मैं यह जानने की कोशिश कर रहा हूँ कि क्या यह लडकी इतने बडे बर्फ के टुकडे को एक साथ निगल सकती है।“ मैने बर्फ के टुकडे को उस लडकी के मुंह के साथ नापा, ”और मेरा अनुमान है, नही।“ लाश के मुंह को ठीक तरह से देखकर मैने उसे फिर बंद कर दिया।
”तो फिर यह बर्फ पेट में गयी कैसे?“ इंस्पेक्टर परमार ने चौकते हुए पूछा।
”यही तो पता करना है।“ मैं मुस्कुराते हुए बोला।
मैं मीरा की तरफ मुडा, ”तुम्हारे हिसाब से इसकी मौत कब हुई होगी?“
”सडन के हिसाब से कम से कम दो दिन तो हो ही गए होंगे। “ जब से मैं यहां आया था, मीरा मुझे अनमने से ही जवाब दे रही थी।
”दो दिन?“ मैने उसे प्रश्नभरी नजरों से देखा।
”हां! क्यों?“
”कुछ नही।“ मैने कुछ सोचते हुए उससे पूछा, ”अच्छा और क्या-क्या पता चला है?“
”हां, इसके नाखुनों में खून के कुछ नमूने मिले हैं जो की इसका नही है।“
”शायद इसने किसी को नौचा हो।“ मैने पूछा, ”रिपोर्ट आ गयी क्या?“
”हां।“
”अच्छा। क्या पता चला?“ अबकी बार इंस्पेक्टर परमार में उत्सुकता पूर्वक पूछा।
”नाखुनों में मिला खून जिसका भी है उसे एक दुर्लभ बिमारी है जो लाखों में किसी एक को ही हाती है।“ कहते हुए मीरा ने एक फाइल इंस्पेक्टर परमार को थमा दी।
”ये तो अच्छी बात है।“ मैने कहा।
”कैसे?“ तीनों एक साथ बोल पडे।
”दुर्लभ बिमारी वाले व्यक्ति का ढूंढना आसान होगा ना।“
तीनों अब भी मुझे प्रश्नभरी नजरों से देख रहे थे।
”पर ये बिमारी लोगों में सीधे ही दिखाई नही देती है और ये ज्यादा खतरनाक भी नही है।“ मीरा ने तर्क दिया।
”फिर भी हम उसे ढूंढ सकते है, इस लडकी से जुडे लोगों में और हां, ये बिमारी दुर्लभ है तो इसकी दवाई भी हर जगह नही मिलती होगी।“
”बिल्कुल।“ इंस्पेक्टर परमार मुस्कुराये, ”मैं अभी से अपने लोगों को काम पर लगा देता हूँ।“ कहते हुए इंस्पेक्टर परमार ने अपने मोबाइल में कुछ नंबर डायल किए और कॉल रिसीवर को कुछ हिदायत देने लगे। जब उन्होने बात पूरी कर ली तो मैने मीरा से फिर पूछा, ”अच्छा और कुछ?“
”हा, वो..........।“ कहते-कहते मीरा चुप हो गयी।
”वो क्या?“ मैने पूछा।
पर मीरा कुछ भी नही बोली तो मैने इंस्पेक्टर की तरफ देखा।
”वो लड़की टाइम से थी।“ इंस्पेक्टर परमार ने जवाब दिया।
”हे। कितने दिनो से ?“ विकास ने चौकते हुए अपना मुंह खोला।
इंस्पेक्टर परमार उसे देखते हुए पहले तो मुस्कुराये ,”दो से पाँच दिन।“
”दो से पाँच।“ मैने उनकी बात पर गौर करते हुए कहा ”आज छः दिसम्बर हैं। यानी एक से चार दिसम्बर तक वह जिंदा रही होगी।“
”बिल्कुल।” इस्पेस्टर परमार ने स्वीकारात्मक रूप से अपना सिर हिलाया ।
”हमे इस लड़की................“मैने लाश की तरफ ईशारा करते हुए कहा ”वैसे इसका नाम क्या हैं?
”लावण्या“ मीरा ने जवाब दिया ।
”हॉ ! हमे लावण्या के घर जाना होगां।“
”ठीक है! पर मुझे एक जरुरी काम है।“
इंस्पेक्टर परमार ने कहा, ”इसलिए मीरा तुम्हारे साथ आएगी।“
”मैं!“ मीरा चौकते हुए बोल पड़ी,”मै नही जाऊगी, इसके साथ।“ उसने मेरी और विकास की तरफ घूरते हुए कहा।
”ओह मीरा।“ इंस्पेक्टर परमार ने गंभीर आवाज के साथ कहा।
”पर।“
”पर वर कुछ नही ! तुम जाओ, बस।“
और फिर मीरा को आना ही पडा। हम लावण्या के घर पहुच गये। करीब आधा घंटा तो वहां रोना-धोना चला फिर कही जाकर हमें लावण्या के कमरे में जाने को मिला। मीरा उस कमरे की आलमारियां, दराजे वगैरह छान रही थी और मैं भी कमरे को अच्छी तरह से देख रहा था। तभी मेरी नजर दीवार पर टंगे केलेन्डर पर पडी। उसमें 21 नवंबर पर पेन से गोल घेरा किया हुआ था। मैने जल्दी-जल्दी में और पेज पलटे तो मुझे 27 सितम्बर, 30 अगस्त, 2 अगस्त पर भी वैसे ही घेरे किए हुए मिले।
”विकास।“मैने विकास की तरफ घूमते हुए कहा, “ तुम लावण्या की सारी कॉलेज बुक्स और नोट बुक्स का एक-एक शब्द छान मारा और जो अपवाद हो मुझे बताओ।“
फिर क्या था विकास ने केमिस्ट्री की बुक उठाई और संक्रमण तत्वों के अपवाद सुना डाले।
”अरे ! ये नही। “ मैने उसे समझाते हुए कहा, “ यहां अपवाद से मतलब है वो चीज जो पढाई से सम्बन्धित नही है।“
”ऐसा क्या !“
”हाँ। अब फर्स्ट पेज, लास्ट पेज , पेज के ऊपर की खाली जगह , पेज के नीचे की खाली जगह या जहां भी खाली जगह होने की संभावना हो वहां देखो , किसी लडके का नाम या नाम का फर्स्ट लेटर है कि नहीं।“
मीरा भी हमारी बाते बडे गौर से सुन रही थी। वहां और भी जल्दी छान बीन करने लगी।
”तुम्हे कैसे मालूम कि किसी लडके का नाम होगा?“ विकास ने पुछा।
”मेरे दोस्त ! इश्क में आदमी अजीब हरकते करता है। अंगुलियां अपने आप चलने लगती है।“ मैने मुस्कुराते हुए जवाब दिया।
”और औरते?“
”वो तो पहले से ही अजीब होती है, यू नो ।” मैने मीरा की तरफ हाथ से इशारा करते हुए कहा।(अच्छा था अब उसका ध्यान हमारी तरफ नही था।)
मन से ढुँढो तो भगवान भी मिल जाते है ये तो नाम था, मिल ही गया । सॉरी पूरा नाम नही, एक लेटर।
”मिल गया।“ विकास खुशी से चीख पडा।
वह इतनी जोर से चीखा था कि मीरा भी चौक पडी।
”यह देखो लास्ट पेज पर एक दिल बना के अन्दर L और D लिखा हुआ है।“
”L का मतलब लावण्या पर D का मतलब क्या हो सकता है?“ मीरा ने पुछा।
”उसके दोस्तो में से कोई होगा।“ मैने कहा।
तभी मेरे और मीरा के मोबाइल की घण्टियां बज उठी। हम दोनो ने एक ही तरह से जवाब दिया।
”हां!..........................क्या?.......................कब...........................ठीक है।“ और फिर कॉल डिस्कनेक्ट कर दिया।
”मुझे जरूरी काम है, इसलिए मै जा रही हूँ। तुम अपना काम निपटा कर हेडक्वार्टर पहुचों।“
मीरा ने हमारे कुछ कहने का भी इन्तजार नही किया और वहा से चली गई।
अब कमरे में, मै और विकास।
”तुझे किसका फोन आया था?“ विकास ने आँखों से इशारा करते हुए पूछा।
”दिनेश का था।“
”दिनेश का ! क्या कह रहा था?“
”आज फिर उसकी पिटाई हुई।“
”कल तो उसे उसकी बीवी ने पिटा था, पर आज?“ विकास ने मुस्कुराते हुए पूछा।
”उसकी गर्लफ्रेण्ड ने।“ मैं भी मुस्कुरा दिया।
” ऐ कही D का मतलब दिनेश तो नही?“ विकास ने जोरदार आवाज में कहा।
”हां, कुछ कह नही सकते। वो तो पूरा कृष्ण भक्त है।“ मैने मजाकिया अंदाज में कहा, ” चलो! लवण्या के माता-पिता से बात करते है।“
हम दोनों कमरे से बाहर चल पडे। मैने सोच लिया था कि मैं उन दोनों से इस तरिके से बात करूंगा जैसे मुझे लावण्या का किसी से चक्कर होने की बात पता हो। (इससे कुछ जानकारी मिल सकती थी।)
” तो उन्मुक्त सिंह जी, आप मुझे उस लडके के बारे के बारे में बताएंगे जिसका नाम D से शुरू होता है।“ मैने लावण्या के माता-पिता के पास पहुचते ही ये सवाल पूछ डाला।
” आप उसके बारे में क्यों पूछ रहे है?“ उन्मुक्त सिंह ने पूछा।
” अब तो बता दीजिए, जो होना था वो तो हो चुका है, शायद ये बात इस केस पर कुछ प्रकाश डाले।“ मैने कहा।
”उसका नाम देवेन्द्र है।“ उन्मुक्त सिंह की बीवी ने जवाब दिया, ”मैं उसकी डॉक्टर थी। वह मेरे अस्पताल में अपना ईलाज करवाने आता था और उसने मेरी बेटी को फंसा लिया। हमारी इज्जत की परवाह किए बगैर वह उसके साथ भाग गयी थी।“
”वो किस रोग का ईलाज करवा रहा था?“ मैने उसकी बात पर गौर करते हुए पूछा।
”कोई दुर्लभ बिमारी है। मैं पता करवा कर आपको उसकी रिपोर्ट दे दूंगी।“
” एक और सवाल। आपकी बेटी कब भागी थी?“
”दो दिसम्बर को।“
”तो आपने पुलिस में रिपोर्ट क्यों नही की?“
”हम नही चाहते थे कि हमारे परिवार की बदनामी हो।“ उन्मुक्त सिंह ने जवाब दिया।
“और कुछ नही पूछना।“ मैने दोनों को घृणा पूर्वक देखा और हम वहा से पुलिस हेड क्वार्टर की तरफ चल पडे।
अभी हम तक बीच राह में ही थे कि मेरा मोबाइल बज उठा।
”हेलो!“ मैने कॉल रिसीव किया, ”क्या? कातिल मिल गया। ठीक है......मैं हेड क्वार्टर पहुचता हूँ।“ मैने कॉल डिस्कनेक्ट किया और विकास की तरफ घूमते हुए बोला, ”चलो! कातिल पकडा गया है।“
हेड क्वार्टर पहुचने पर मैने पाया कि मीरा का दिमाग सातवे आसमान पर था। वह सबसे अपनी तारीफ सुनना चाह रही थी। आखिर कातिल जो उसने ढूंढा था।
”तुम्हे कातिल के बारे में कैसे पता चला?“ मैने उससे पूछ ही लिया।
”दिल के अंदर लिखे D और दुर्लभ बिमारी के clue से।“ उसने इतराते हुए जवाब दिया, ”मैने अकेले ही ये केस सुलझा लिया बिना किसी बाहरी मदद के।“
”चलो इस खुशी में तुम ही मुझे आइसक्रीम खिला दो।“ विकास ने उसकी तारिफ करते हुए मांग की।
”क्या कहा तुमने?“ मैं अचानक से चौक पडा।
”मैने कहा आइसक्रीम खिला दो।“ विकास ने अपनी बात दोहराई।
”आइसक्रीम!“ मेरे चेहरे पर अब मुस्कान फैल गयी, ”विकास, अगर तुम लडके न होते तो आज तो मैं तुम्हे चूम ही लेता।“ मैने इंस्पेटर परमार से कहा, ”चलिए सर।“
”कहा?“
”विकास को आइसक्रीम खिलाने और असली कातिल को पकडने के लिए।“
”क्या?“ मीरा ने चौकते हुए कहा।
”हां।“ मैंने मुस्कुराते हुए कहा।
फिर क्या था असली कातिल को पकड लिया गया और मैं और विकास फिर अपने-अपने घर की तरफ चल पडे।
समाप्त
