अक्लमंद बेवकूफ भाग 1
अक्लमंद बेवकूफ भाग 1
एक बड़े से हाल में नेताओं की तरह का कुर्ता पजामा पहने एक आदमी चहल कदमी कर रहा था। उसका नाम साहुल सांधी था। वह काफी गुस्से में लग रहा था। उसके पास में ही बगल में हाथ बांधे एक मरियल सा आदमी खड़ा था। जिसका नाम कचरावाल था।
"हूँ। कितने आदमी थे।"साहुल सांधी ने घुरघुराती हुई आवाज में कहा।
"मालिक, वो दो लड़के थे।"कचरावाल ने डरते हुए जवाब दिया।
" दो।" साहुल सांधी चिल्ला उठा,"सिर्फ दो।"
वह कचरावाल को खा जाने वाली नज़रो से देख रहा था, "और तुम क्या वहाँ झख मार रहे थे। ना – इन्साफी है, यह तो बहुत ही ना-इन्साफी है। तुम मुझे पहले नही बता सकते थे। आखिर उन दोनों को किसने हक़ दे दिया साफ सफाई करने का, कचरा ले जाने का। तुम्हें उन्हें रोकना चाहिए था ना।"
साहुल सांधी लगातार कचरावाल पर चिल्लाये जा रहा था। " मैं दिन रात एक करके इतनी मेहनत और कठिन परिश्रम से गन्दगी और कचरा फैलाता हूँ। मैं रोज सुबह उठता हूँ तो मेरे दिमाग में यही ख्याल रहता है की मैं आज किस तरह से गंदगी फैलाऊँ, मैं गंदगी फ़ैलाने के नए नए तरीके खोजता रहता हूँ और मैं आज क्या सुनता हूँ, मैं सुनता हूँ की कोई कल के छोकरे मेरी सारी मेहनत बर्बाद कर गए, और तुम मुझे अब बता रहे हो।" उसके हाव भाव से लग रहा था की वह कचरावाल का गला दबा देगा पर वह अपने आप पर काबू पाए हुए था। बेचारा कचरावाल थर थर कांप रहा था और उसकी फटकार सुन रहा था,
"तुम्हें समझना चाहिए की हमें इस नयी सरकार के स्वच्छ भारत अभियान को किसी भी हालत में असफल बनाना है इसके लिए हमें हमारे अस्वच्छ भारत अभियान को किसी भी हालत में सफल करना ही होगा। अगर हमारी पार्टी को पुनः सरकार बनानी है तो यह अत्यावश्यक है।"
उसकी आवाज में फिर से चढ़ाव आया, "और तुम मुझेssssssssss अब बता रहे हो। जब वो सब कुछ साफ कर गए। क्या सोचे थे, साहुल सांधी खुश होगा। शाबासी देगा, क्यों ?"
कचरावाल को तो जैसे सांप सूंघ गया था।
"कूड़ेलाल के बच्चे।" वह अचानक से कचरावाल की तरफ घूमते हुए चिल्ला उठा। उसकी आवाज से पूरा हाल गूंज उठा।
"अब तेरा क्या होगा कचरावालिया ?"
"म ....म.....मालिक मैंने आपकी दाढ़ी बनाई है।" कचरावाल ने डरते हुए कहा।
"अब hair style बना।" साहुल सांधी ने थोड़ा शांत होते हुए कहा।
कचरावाल कैची लेकर उसका हुक्म मानने को उद्धत हुआ पर साहुल सांधी ने उसे रोक लिया। वह फिर बोलने लगा, "अभी नहीं बाद में, पहले ये बताओ की आखिर वो दोनों है कौन ? क्या करते है ?"
" वो दोनों विज्ञान विषय के छात्र है। सारा कचरा उन दोनों में से एक लड़के के कमरे पर है जो इस मोहल्ले में नया आया है। उसका कमरा पास ही में है। मालिक हमें अभी उसके पास जाकर अपना कचरा फिर से प्राप्त करना चाहिए। मुझे भी उससे अपना हिसाब बराबर करना है।"
" हिसाब। कैसा हिसाब ?" साहुल सांधी ने चौकते हुए पूछा।
" मालिक, मैंने उसके बारे में सब पता किया है। उसका नाम मानव है। दिखता तो सीधा सादा है पर है बड़ा ही ढीट, बदमाश और चालाक। अभी परसो ही मेरी दुकान पर एक बच्चे को लेकर आया था। मुझसे बोला, 'जब तक मैं बाहर से अपना सामान खरीदता हूँ, इसे हीरो की तरह बना दो, पैसो की बिलकुल ही परवाह मत करना।' यह कह कर वो चला गया। फिर क्या था मैंने उस बच्चे के बल काटे, मसाज की, फेसियल किया, एक तरह से सब कुछ कर दिया। वह एक राजकुमार की तरह दिखने लगा था। फिर मैंने दो घंटे तक उसका इंतजार किया पर वह नहीं आया। मैंने उस लड़के से पूछा – तुम्हारे अंकल कब आयेंगे, वो बोला – वो मेरा अंकल नहीं है। मैंने पूछा – भाई तो वह बोला वो मेरा भाई भी नहीं है। मैंने फिर पूछा – जो तुम्हारे साथ आया था वो कब आएगा तो वो लड़का बोला मुझे क्या मालूम, वो मेरा कुछ नहीं लगता। फिर मैंने पूछा – तो तुम उसके साथ क्यों आये थे। तो लड़के ने बताया – उसने मुझसे कहा था फ्री में हीरो जैसा बनाना है तो मेरे साथ आओ और मैं आ गया।"
अपनी दुःख भरी कहानी सुनाते सुनाते कचरावाल की आँखों में आंसू आ गए।
उसने अपने आंसू पोंछते हुए कहा, "उसने मुझे बेवकूफ बनाया। "
" कोई बात नहीं, हम अभी जाकर सारा हिसाब बराबर कर देंगे।"साहुल सांधी ने दृढ़ता के साथ कहा।
"चलो।"
आदेश मिलते ही कचरावाल साहुल सांधी को रास्ता बताते हुए आगे-आगे चलने लगा।
करीब दस मिनट बाद दोनों एक घर के दरवाजे के पास जा कर रुक गए।
( हालांकि वह एक बड़ा सा कमरा ही था। )
कचरावाल ने दो तीन बार जोर जोर से दरवाजा खटखटाया।
कुछ देर बाद करीब २० साल के एक लड़के ने दरवाजा खोला। उसका नाम मानव था।
"ओह महाशय आप।"
मानव ने कचरावाल को देख कर मुस्कुराते हुए कहा, "आइये, अन्दर आइये।" कहते हुए मानव ने दोनों को अन्दर आने के लिए राह दी। दोनों ने अन्दर प्रवेश किया।
"और आप ?" मानव ने साहुल सांधी की तरफ देखते हुए कहा।
"साहुल सांधी नाम है मेरा। प्यार से लोग मुझे पप्पू बुलाते है।" साहुल सांधी ने जवाब दिया।
"ओह अच्छा। "कहते हुए मानव ने उसकी तरफ अपना हाथ बढ़ाया पर जब साहुल सांधी ने प्रत्युतर में हाथ नहीं बढ़ाया तो उसे अपना हाथ वापस खींच लेना पड़ा।
"तो बताइए कैसे आना हुआ ?" मानव ने सीधे ही मुद्दे की बात की।
"कैसे आना हुआ !"कचरावाल झल्लाते हुए बोला, " मैं अपने पैसे लेने आया हूँ। याद है ?"
"अरे यार, थोड़ा तो परोपकार करो। वो बहुत गरीब लड़का है। मैंने भी उसे फ्री में कपड़े सील के दिए है।"
" तो मैं क्या करूँ। मुझे कोई परोपकार नहीं करना। तुम ने ही कहा था पैसे की कोई परवाह मत करना, तो मैंने उस पर अपना बहुत सा समय बर्बाद किया है। मेहनत की है।"
" बिल्कुल। मैंने कहा था पैसे की परवाह मत करना। तो फिर परवाह क्यों करते हो। चलो भूल जाओ उसे।" मानव ने मजाकिया अंदाज में हाथ झटकते हुए कहा।
"अबे तेरी तो ................।"
" ना ना ना।" मानव बीच में ही बोल पड़ा।" गाली नहीं देना। पता है पचास पचास कोस दूर जब कोई गाली देता है तो सब कहते है मत दे, मत दे वरना थप्पड़ आ जायेगा।" मानव ने कचरावाल को अपना दाहिना हाथ दिखाया।
पहले तो कचरावाल डर गया पर बाद में साहस जुटा कर उसने मानव का कॉलर पकड़ लिया, "तुम मुझे थप्पड़ मारोगे ?"
"अबे मैं तो डायलॉग मार रहा था। कालर छोड़।" मानव ने उसके हाथ को झटकते हुए अपना कालर छुडाया।
" कालर पकड़ने से थोड़े ही पैसे मिलेंगे। ठीक है तुम्हे तुम्हारे पैसे मिल जायेंगे। वैसे भी कुछ ही दिनों में मेरे पास बहुत सारे पैसे आने वाले है।"
"पैसे आने वाले है ! वो भी बहुत सारे।" साहुल सांधी जो काफी देर से चुपचाप दोनों की बाते सुन रहा था पैसो की बात सुनते ही बीच में बोल पड़ा,कैसे ?"
"कचरे से।"
"कचरे से !" साहुल सांधी चकराते हुए बोला," कचरे से कैसे।"
"वो देख रहे हो।" मानव ने एक बड़े से ड्रम की तरफ इशारा करते हुए कहा जो कमरे के एक कोने में पड़ा था। उसका ढक्कन बंद था और ढक्कन के बीचो बीच से एक नली निकली हुई थी। जो एक गैस सिलेंडर की थी।
"वो क्या है ? "साहुल सांधी ने पूछा। वह आश्चर्य से उस ड्रम को देखे जा रहा था।
"वो मैंने बनाया है।" मानव बोला, "वह एक प्रायोगिक मॉडल है, कचरे से गैस बनाने का जिसे हम सिलेंडर में भर कर एलपीजी की तरह उपयोग में ले सकते है।
"हें !" साहुल सांधी ने चौकते हुए मुंह खोला, "क्या तुम सच कह रहे हो ?"
" हाँ। अगर व्यावसायिक तौर पर इसका निर्माण किया जाय तो, हालांकि मेरी गणित खास अच्छी नहीं है पर हमे प्रति सिलेंडर अधिकतम पचास रुपये खर्च आएगा और आप जानते ही है कि वर्तमान में गैस सिलेंडर की क्या कीमत है।"
"इससे तो मै रातो रात अमीर बन जाऊंगा।" साहुल सांधी ख्याली पुलाव बनाते हुए फुसफुसाया।
"क्या ?"मानव ने पूछा।
"अ ............. अ.........। कुछ नहीं।" साहुल सांधी थोड़ा हड़बड़ाया
"तो तुम यह काम शुरू क्यों नहीं कर देते।"
"महाशय व्यापार शुरू करने के लिए दो चीजो की जरूरत पड़ती है, पहला – आइडिया जो की मेरे पास है।" कहते हुए मानव ने मजाकिया अंदाज में अपना मोबाइल हाथ से लहराया, "और दूसरा – इन-वेस्टमेन्ट। जिसकी मुझे जरुरत है।" कहते हुए मानव चुप हो गया।
"तुम्हारा लहजा कुछ जाना-पहचाना लग रहा है।" साहुल सांधी ने कहा, "मोदी के फेन लगते हो, क्या बी जे पी से हो ?"
"नहीं मैं वहां से हूँ जहां से मोदी निकला है, संघ से।"
"अच्छा ठीक है, मेरी तुम्हारे इस काम में रुचि है पर तुम्हें मुझे यह बताना होगा की ......." कहते हुए वह ड्रम के पास पहुँच गया, "ये आखिर काम कैसे करता है ?" उसने अपना हाथ ड्रम के ढक्कन की तरफ बढ़ाया।
"वॉव वॉव वॉव। रुकिए।"
मानव ने तेजी से साहुल सांधी की तरफ बढ़ते हुए कहा, "प्लीज ढक्कन मत खोलियेगा। नहीं तो दो दिन से जमा हुई सारी गैस बाहर निकल जाएगी। मैं आपको दिखाता हूँ यह कैसे काम करता है।"
कहते हुए मानव ने कचरावाल की तरफ देखते हुए कहा,
"वो वहां कोने में खाली सिलेंडर पड़ा है, लाना जरा।"
कचरावाल ने साहुल सांधी की तरफ देखा।
"लाओ।" साहुल सांधी ने कहा और उसके कहते ही कचरावाल ने सिलेंडर लाकर ड्रम के पास रख दिया। मानव ने नली को सिलेंडर पर लगा दिया।
"श ..........श...........श........." सिलेंडर से एक आवाज आने लगी।
"देखा ड्रम से गैस इस सिलेंडर में आ रही है।"
कुछ ही देर में सिलेंडर, गैस से पूरी तरह भर चुका था।
"अब इसे उठाकर देखो "
कचरावाल को उसे उठाने में काफी मशक्कत करनी पड़ी।
"ये तो सच में भर गयी है !" कचरावाल ने आश्चर्य के साथ कहा।
साहुल सांधी भी मुंह फाड़े आश्चर्य से मानव और सिलेंडर को देखे जा रहा था।
मानव ने कुछ कागजात साहुल सांधी को दिखाते हुए कहा, "अगर आपकी रुचि इसमें invesment करने की हो तो इन कागजों में व्यावसायिक तौर पर कचरे से गैस बनाने का पूरा विवरण है।
"बिलकुल मेरी रूचि है।" कहते हुए साहुल सांधी ने कुटिल मुस्कान मुस्कराते हुए मानव से वो कागजात ले लिए।
"ऐसा करो तुम मुझसे दो दिनों बाद मेरे घर पर मिलो, तब तक मैं इस पर विचार करता हूँ। ठीक है हम चलते हैं। चलो कचरावाल।"
"पर मेरे पैसे।" कचरावाल बीच में बोल पड़ा।
"अरे वो मैं दे दूंगा।" साहुल सांधी ने जल्दबाजी में कहा।
"आप देंगे ?"कचरावाल ने साहुल सांधी को बहुत ही आश्चर्य मिश्रित नजरों से देखते हुए कहा।
कचरावाल को बहुत आश्चर्य हो रहा था क्योंकि साहुल सांधी परले दरजे का कंजूस जो था।
"हाँ। अब जल्दी चलो।" कहते हुए साहुल सांधी दरवाजे की तरफ बढ़ चला।
दोनों बिना देर किये वहाँ से चले गये।
To be continued.............
क्रमशः
