अक्लमंद बेवकूफ भाग 2
अक्लमंद बेवकूफ भाग 2
2.
"तुम खुद को अक्लमंद समझते हो पर मुझे लगता है तुम्हारी अक्ल मंद है। तुम बेवकूफ हो।"
एक लड़का मानव पर चिल्ला रहा था, उसका नाम विशाल था। वह उसका दोस्त था।
"तुम्हें उस साहुल सांधी को वो कागजात देने की क्या जरूरत थी। तुम इस मोहल्ले में नये आये हो, पर मैं नहीं। मैं उसे अच्छी तरह से जानता हूँ। उस कंजूस , मक्कार को। अब वो तुम्हें एक ढेला भी नहीं देगा, हिस्से के बारे में तो भूल ही जाओ।
"पर उसने मुझे आज मिलने को बुलाया है।" मानव ने कहा।
"मिलने को बुलाया है , कहा पर ?"
"उसके घर।"
"अच्छा , उसके घर ! चलो वही जाकर आते हैं। पता चल जाएगा की मैं सही हूँ या गलत।"
"चलो।"
दोनों साहुल सांधी के घर की तरफ चल पड़े। दोनों कुछ समय बाद साहुल सांधी के घर के दरवाजे के पास थे। वहाँ बाहर एक बोर्ड रखा हुआ था , जिस पर लिखा था 'कुत्ते से सावधान' जिसे देखकर मानव अचानक रुक गया।
"क्या हुआ ?" विशाल ने मानव की तरफ मुड़ते हुए कहा।
"इस बोर्ड को देख कर एक शेर याद आ गया।"
'जल्दी बको।"
"धन से बेशक गरीब रहो पर दिल से रहना धनवान,
अक्सर झोपड़ी पे लिखा होता है सुस्वागतम् और महल वाले लिखते है कुत्ते से सावधान।"
"यह अच्छा था।"
विशाल ने प्रभावित होते हुए कहा , "पर तू चिंता न कर अन्दर कोई कुत्ता नहीं है। यह आदमी इतना कंजूस है की चूहा भी न पाले। ये तो लोगों को डराने के लिए ऐसे ही बोर्ड लगाया है। क्योंकि लोग आते हैं तो उन्हें चाय नाश्ता भी करवाना पड़ता है यानी खर्चा।"
"ह.....म सही कहा।" मानव ने मुस्कुराते हुए अपना सिर हिलाया।
"चलो अब अन्दर जा कर देखते है।"
विशाल ने दरवाजा खटखटाया। सामने से कचरावाल ने दरवाजा खोला और दोनों अन्दर चले गए। कुछ देर बाद ही घर के अन्दर से कुछ जोर जोर की आवाज आने लगी। जो साहुल सांधी की थी।
"किसने कहा तुम्हारा आइडिया........... क्या सबूत है तुम्हारे पास की वो तुम्हारा आइडिया है................
मैंने कहा था विचार करूँगा और मैंने विचारा है की मौहल्ले का सबसे ज्यादा कचरा तो मेरा ही है , सारा कचरा एक्सपोर्ट तो मैं ही करता हूँ तो तुम्हे हिस्सा क्यों दू ..................... और इन दो दिनों में मैंने पूरे शहर का कचरा अपने फार्म पर जमा कर दिया है इसलिए अब तुम्हे करने को कुछ भी नहीं मिलेगा। तुम्हे वो हर जगह बिल्कुल ही साफ नजर आयेगी जहा पहले गंदगी थी , कचरा था। तुम्हे अब कही भी कचरा नहीं मिलेगा। हा....हा....हा....हा....हा...." घर के अन्दर से साहुल सांधी के जोरदार ठहाकों की आवाज आ रही थी , "अब मेरा कोई भी प्रतिद्वन्दी नहीं होगा क्योकि सारा कच्चा माल मेरा मतलब सारा कचरा तो मेरे पास है और महीने भर बाद जब मैं सिलेंडर बेचूंगा तो रातोरात करोड़पति बन जाऊँगा। हा....हा....हा....हा....हा.... और तुम दोनों निकलो यहाँ से।"
अगले ही पल दरवाजा खुला और मानव तथा विशाल बड़ी ही तेजी से बाहर की तरफ उछले। ऐसा लग रहा था जैसे उन्हें धक्का मारा गया हो। मानव तो बोर्ड से ही टकरा गया। उसके घुटने में चोट लग गई और वहां से थोडा सा खून भी आने लगा था।
"अबे जा रहे हैं , धक्का क्यों मारता हैं।" विशाल ने चिल्लाते हुए कहा।
"और तूने कहा था, अन्दर कोई कुत्ता नहीं है ?" मानव ने अपना घुटना सहलाते हुए कहा।
"चल अब , घर चल।" विशाल ने गुस्से से मानव की ओर देखते हुए कहा।
गुस्से में दोनों ही काफी तेजी से चल रहे थे इसलिए दोनों को मानव के कमरे तक पहुँचने में कोई देर नही लगी।
"देखा जैसा मैंने साहुल सांधी के बारे में बताया था, वह वैसा ही निकला न।"
"सही है।" कहते हुए मानव ने अपनी आलमारी से एक टूथपेस्ट का ट्यूब उठा लिया।
"क्या दातुन कर रहा है ? अभी, इस समय? " विशाल ने चौकते हुए उसकी तरफ देखा तब तक मानव ट्यूब का ढक्कन खोल चूका था।
अचानक से विशाल जोर से चीखा ,"रुको क्या तुम्हारे टूथपेस्ट में नमक है।'
वही सुना सुनाया डायलॉग।
"नहीं , मैं जख्मों पे नमक नहीं छिड़कता।" मानव ने अपने घुटने की तरफ इशारा करते हुए कहा
'न ही मैं घटिया विदेशी चीजें उपयोग में लेता हूँ। मैं तो स्वदेशी अपनाता हूँ जो चोट लगे तो भी काम आये।" मानव ने विशाल को अपना टूथपेस्ट दिखाते हुए कहा।
"ये कब लगी ?" विशाल को शायद अभी ही ये बात पता चली थी।
"जब उसने हमें धक्का दिया था तब।"
मानव ने बात बदलते हुए कहा, "चलो उसने मुझे बेवकूफ बना दिया। अब ये माडल " उसने ड्रम की तरफ ईशारा किया
"ये मेरे किसी भी काम का नहीं, इसको किसी दूसरे तरीके से उपयोग में लेना होगा। तू इसे अलग करने में मेरी मदद कर।"
मानव ने एक ठंडी आह भरी।
" ह........ह। वैसे भी उसने हमारे लिए कही भी कचरा नहीं छोड़ा है।"
"यानी तेरे पास एक और आइडिया है ?' विशाल ने मुस्कराते हुए पूछा।
" हाँ। पर पहले इसको खोलकर इसके पार्ट्स अलग कर दे।"
"ठीक है। तू कहता है तो....।" कहते हुए विशाल ने ड्रम का ढक्कन खोल दिया और उस में से कचरा बाहर निकालने लगा। गैस ट्यूब अभी भी ड्रम के अंदर गहराई तक लगी हुई थी। विशाल ने थोड़ा सा कचरा ही निकाला था की उसका मुंह खुला का खुला ही रह गया। वह हतप्रभ होकर मानव को देखने लगा। मानव बैठा-बैठा मुस्कुरा रहा था।
अगले ही पल विशाल जोर जोर से हंसने लगा।
"हा....हा....हा....हा....हा...."उसकी हंसी से पूरा कमरा गूँज उठा। वह काफी देर तक हँसता रहा।
"यानी इसका मतलब, हा....हा....हा....हा....हा....।" वह हंसते हँसते ही बोले जा रहा था।
"इसका मतलब उसने तुम्हें बेवकूफ नहीं बनाया।"
"बिल्कुल नहीं मेरे दोस्त , कोई नसेड़ी पप्पू टाइप का आदमी हमें कैसे बेवकूफ बना सकता है।"
मानव ने आगे पूछा
"तो। मेरी अक्ल अब भी मंद है , मैं बेवकूफ हूँ। क्यों ?"हाँ बेवकूफ तो हो।"
"क्या ?"मानव ने गुर्राते हुए कहा।
"पर अक्लमंद बेवकूफ।" विशाल शरारत भरी मुस्कान के साथ बोला।
"ह......ह। चलो ये भी अच्छा है। पर तुम उसे ड्रम से बाहर तो निकालो।" मानव भी मुस्कराया।
"ये लो।"
कहते हुए विशाल ने अपना दायाँ हाथ ड्रम के अन्दर डाला। वह अभी भी हंस रहा था ,"पर मुझे तो , हा....हा....हा....हा....हा....इस बात पर हंसी आ रही है की साहुल सांधी , वो पप्पू बन गया। उसने तो पूरे शहर का कचरा इकट्ठा कर लिया है और ज्यादा के लालच में उस कंजूस ने खर्चा भी बहुत कर दिया है। वो तो फेक्ट्री लगाने की सोच रहा है। उसे क्या मालूम की तुमने तो सिर्फ एक सिलेंडर से दूसरे में गैस ट्रान्सफर की थी।' कहते हुए विशाल ने एक ही झटके में एक सिलेंडर ड्रम के अन्दर से बाहर निकाल लिया।
अचानक से विशाल हँसते-हँसते रुक गया ,"कही तुमने उसके साथ कुछ ज्यादा ही गलत तो नहीं कर दिया।"
"नहीं मेरे दोस्त गलत के साथ गलत हो , यही सबसे अच्छा है। स्वच्छ भारत के लिए यह जरूरी है। पूरे शहर की गंदगी साफ़ हो गयी 'स्वच्छ भारत अभियान' में हमारा भी योगदान हो गया।"
जय हिंद
भारत माता की जय
समाप्त
