तीसरा प्यार (कहानी )
तीसरा प्यार (कहानी )


हमे इटारसी से भोपाल आये अभी कुछ ही दिन हुए थे पिताजी ने यहाँ आकर एक बिल्डिंग मे एक फ्लैट किराया से लिया था। पहले वहाँ खुद का एक मकान था। ऐसा मैंने याने दर्श ने घरवालों से सुना था। शायद देखा भी हो पर मुझे कुछ याद नही है। छोटे से पाँच सात साल के बच्चे को अपने बचपन की तब की बाते बड़े होने पर कहाँ याद रहती है। इतनी उम्र मे तो ठीक से होश ही नही संभाला रहता। हाँ, उसके बाद इटारसी शहर से थोड़ा बाहर जो मकान किराए से लिए था वो थोड़ा कुछ याद है। वो मकान पहली मंज़िल पर था। ऐसा उन्होंने क्यो किया तब बिलकुल नही समझता था लेकिन अब समझ चुका हूँ कि जब व्यापार मे घाटा पड़ता है तो शहर मे अपनी खुद की संपत्ति बेचकर ऋण चुका कर शहर से बाहर किसी सस्ती जगह मे जाना पड़ता है। जब शहर से बाहर मकान लेने से भी काम न चला तो मेरे पिताजी भी बहुत से लोगों को कानों कान ख़बर नही दी और बड़े शहर भोपाल मे पूरे परिवार को लेकर किस्मत आजमाने आ गये यही तौर तरीका है जिंदगी को जीने का यदि आप की जिंदगी मे आर्थिक समस्या हो तो जिंदगी गुजारने के लिए ऐसा ही करना पड़ता है ।
अब जब भोपाल आये तो मै पाँचवी कक्षा मे पढ़ता था हमारे उस फ्लैट मे आने के करीब बीस दिन बाद बाजू के फलैट मे भी एक गुजराती परिवार मुंबई से रहने आ गया। उनकी एक ही लड़की थी। वह लगभग मेरी ही उम्र की थी। उसके पिताजी बैंक मे मैनेजर थे। एक ही पुत्री होने से उसके माँ बाप उसे बहुत प्यार करते थे। उस लड़की का नाम पीयू था। हमारा उनके घर आना जाना नही था। सिर्फ कभी कभी मेरी माता जी की उसकी मम्मी से बातचीत हो जाती थी। उसी फ्लोर मे एक ओर गुजराती परिवार भी रहता था जिनके यहाँ हमारा आना जाना था। पीयू और मैं इतने छोटे नही थे जो बिना हिचक एक दूसरे के साथ खेलते ओर न ही इतने बड़े थे कि शर्माए बिना एक दूसरे से बातें कर सके। बस यूँ ही पियू अपनी बालकानी मे खड़ी हो जाती और मुझे भी अपनी बालकानी मे उस वक्त खड़ा रहना अच्छा लगता। उसकी मम्मी जब पीयू का नाम लेकर गुजराती मे उसे अंदर बुलाती तो वो भी जवाब मे આ શુ છે बोलती। उसका शु छे छह बोलना मुझे बहुत अच्छा लगता। एक दिन यह આ શુ છે ही मेरी जिंदगी का पहला प्यार बन गया। जो दुनिया की बातों से अनजान था। न जिन्होंने आपस मे बात की , न संग संग कभी खेला। लगभग एक साल बाद ही उसके पापा ने अपना तबादला वापिस मुंबई करा लिया और मेरे पहले प्यार का अंत बिना किसी आवाज़ के ही हो गया। फिर भी मुझे अपना पहला प्यार आज भी दिलों दिमाग पर ताजा है।
फिर मैंने दसवीं की परीक्षा अच्छे नम्बरों से पास करके जूनियर कॉलेज मे प्रवेश किया। कॉलेज मे ग्यारहवीं मे कोई बोर्ड की परीक्षा का टेंशन नही था। स्कूल के नियमों की कैद से छूटे थे। ऐसा लग रहा था कि हर सहपाठी हमारी पंसद से चुन चुनकर रखी गयी हो। कच्ची उम्र की वज़ह से हमे भी प्यार के चक्कर मे पड़ जाने की कुछ ज्यादा ही जल्दी थी। डाक्टर बनने का मेरा सपना था इसलिए विज्ञान की पढ़ाई मे दाखिला लिया था लेकिन इसका अर्थ यह तो नही था कि अपनी उम्र का असर न हो और लड़कियों मे हम बिलकुल रूचि न ले। असली दिक्कत तो यह थी कि अलग-अलग समय मे कभी कोई कभी कोई हर लड़की पसंद आ रही थी। हमे अपना दूसरा प्यार पाने की जल्दी थी। कई बार कई लड़कियों को प्रस्ताव भी रख दिया लेकिन फिर जल्दी ही अपना खुद ही का इरादा बदल गया। इस तरह मालूम नही कब एक साल गुजर गया। अब बारहवी कक्षा मे पहुंच गये। इस साल बोर्ड की परीक्षा थी और उसी अधार पर मेडिकल मे प्रवेश होना था। सभी विधार्थी थोड़े पढ़ाई की तरफ ईमानदार हुए। मै भी पढ़ाई के साथ साथ प्यार मे भी परिपक्व हुआ। मेडिकल मे प्रवेश पाने को ध्यान मे रखकर कॉलेज के अलावा टयूशन भी ले लिए। इसी दौरान हमारा ध्यान अपने कॉलेज की एक लड़की की तरफ गया। उसके पिताजी एक डाक्टर थे। उस लड़की की खासियत हमे यह लगी कि वो उँचाई मे बहुत छोटी थी उसके पिताजी जब भी उसे टयूशन से लेने या छोड़ने आते तो वो स्कूटर के पीछे सीट पर बैठ नही सकती थी उसके लिये उसे छलांग लगाकर चढ़ना पड़ता। मुझे यह देखना अच्छा लगने लगा। मै अपनी तरफ से उसके नजदीक आने की कोशिश करने लगा। मैने देखा वो पढ़ाई मे बहुत होशियार है। मैं अपनी जिंदगी के दूसरे प्यार के सपने देखने लगा। एक दिन जीव शस्त्र की प्रयोग शाला मे मेरा ध्यान कही दूसरी जगह था। मै अपना हाथ गलती से बैठी हुई साधना के कंधे पर रख कर खड़ा हो गया। मुझे इस बात का कतई एहसास न था कि मैंने अपना हाथ किसी लड़की के ऊपर रखा है मै यह समझते रहा कि मेरा हाथ मेरे दोस्त राहुल पर है जो थोड़ी देर पहले उस जगह पर बैठा था। साधना भी पूरी तरह घबरा गई। उसके मुँह से एक भी शब्द न निकला और बस आँखों से आँसू छलकने लगे। जब मुझे अपनी गलती का पता लगा तो मैं बहुत शर्मिदा हुआ। मैंने बहुत माफ़ी मांगी और हमारे दोस्तों ने हकीक़त समझाने मे मेरी बहुत मदद की। मुझे मेरा दूसरा प्यार मिल चुका था। इस जमाने मे ऐसी शरीफ लड़की कहा मिल सकती है जो ऐसे समय मे एक भी शब्द मुँह से न बोल सके और उसके आँसू ही उसका परिचय दे चुके थे। धीरे-धीरे मै अपने दूसरे प्यार को अच्छी तरह जान चुका था। लेकिन इस बार साधना को परीपोज करने की हिम्मत मुझ मे नही थी। परीक्षा शुरू हुई संयोग से मेरी सीट उसके पीछे थी। हर बार हर पेपर के पहले मुझे शुभकामनाएँ देने की जिम्मेदारी जैसे साधना ने ले ली थी। परीक्षा के बाद नतीजा आया। साधना को मेडिकल मे डाक्टर बनने के लिए दाखिला हो गया। बदकिस्मती से मेरे कुछ नम्बर कम आये और मैं डाक्टर बनने से भी रह गया। मेरा दूसरा प्यार खुद की मौत मर गया जिसे मुझे यूँ ही दफनाना पड़ा ।
अब मैंने विज्ञान की पढ़ाई छोड़ कर चार्टर्ड एकाउंटेंट बनने की तैयारी करनी शुरू कर दी। जब डाक्टर नही बनना तो विज्ञान पढ़कर क्या करेंगे। अपने आप पर कुछ गुस्सा था पर उम्मीद अभी भी न छोड़ी थी कि जिंदगी मे कुछ न कुछ बन कर दिखाएँगे अब मैने लड़कियों से थोड़ी दूरी बनाकर चलना शुरू कर दिया। सिर्फ पढ़ाई या काम की ही बात उनसे करने लगा। आने वाली जिंदगी की जिम्मेदारियों का एहसास हो गया था। कठोर परिश्रम और लगन का नतीजा अच्छा निकला। मै सी ए की सभी कठिन परीक्षा मे उतीर्ण होते चला गया। किस्मत ने भी मेरा साथ दिया और जल्दी ही मै चार्टर्ड एकाउंटेंट बन गया। अच्छी डिग्री होने की वजह से जल्दी ही मेरी अच्छी नौकरी लग गयी। अब मेरे सामने कोई समस्या नही थी यदि समस्या थी तो बस एक मिस सोपिया जो मुझे एक कोल्हू का बैल समझ कर काम देती थी। वो उम्र मे भी और पद मे दोनों मे मुझसे वरिष्ठ थी। शुरू मे मुझे लगा कि सोपिया मुझसे कुछ चिढ़ती है इसलिए इतना काम देती है कि मै यह नौकरी छोड़ कर चले जाऊं। मुझे वो अपनी दुश्मन समझती है। लेकिन दो साल मे ही मेरी ग़लतफहमी दूर हो गयी। सोपिया मुझे जल्दी से जल्दी अपने कार्य मे निपुण करना चाहती थी। हमने एक दूसरे को देखा और छह महीने तक समझा। मुझे मेरा तीसरा प्यार मिल चुका था। वो उम्र मे मुझसे छह महीने बढ़ी थी लेकिन हम दोनों एक दूसरे के पूर्ण योग्य थे। ये तीसरा प्यार परवान चढ़ा और हम दोनो विवाह सूत्र में बंध गये ।
इंसान को प्रेम अपनी जिंदगी की उम्र मे कई बार होता है। पहला प्रेम बाल अवस्था मे स्कूल का, दूसरा प्रेम किशोर अवस्था मे कॉलेज का, और तीसरा प्रेम बालिक अवस्था मे जब वो अपनी नौकरी या व्यवसाय मे लग जाता है और अपनी जिम्मेदारियों को समझने लगता है। इनमें तीसरा प्रेम ही जीवन मे श्रेष्ठ है और शादी के लिए उपयुक्त है ।