अनजाने रिश्ते ( कहानी )
अनजाने रिश्ते ( कहानी )


सुबह के करीब साढ़े सात होने को थे। सुखदेव अभी भी बिस्तर पर था। अभी उसे दुकान जाने मे करीब डेढ़ घंटा बाकि था। एकाएक मोबाइल की घंटी बजने लगी। सुखदेव ने उसको विशेष महत्व नही दिया।
देता भी क्यो इस समय फोन किसी काम से कोई खास व्यक्ति तो नहीं करेगा फिर भी उसकी बीबी फोन उठाकर उसके पास चली आई क्योंकि वो तो भोर होते ही उठ गयी थी। रसोई के काम निपटाने के बाद उसने अपने बड़े लड़के मोहित को कॉलेज जो भेजना था। कॉलेज में यह उसका प्रथम वर्ष था और कॉलेज शुरू हुये अभी गिनती के दिन हुए थे। सुखदेव ने भी चैन की साँस ली थी लड़का कॉलेज मे पहुंच गया मानो उसे इस बात का सदियों से इंतज़ार हो क्योंकि काम धन्धे में तो आजकल दो व्यक्तियों की आवश्यकता तो होती है और ऊपर से धन्धे में उतार-चढ़ाव भी चल रहा था। सुखदेव ने न चाहते हुए भी पत्नी के कहने पर फोन सुनने के लिये ले लिया।
फोन सुनते ही सुखदेव सिर्फ धीरे धीरे हाँ हाँ बोल रहा था और उसके चेहरे पर डर के भाव ऐसे आने जाने लगे जैसे आसमान पर अचानक घटाएँ आ जा रही हो। सुबह ही सुबह पुलिस स्टेशन से फोन वो भी ऐसी बुरी खबर। उसका दिल बहुत जोर से रोने और चिल्लाने को किया लेकिन वो ऐसा कैसे कर सकता था क्यो कि शायद आदमी की कुंडली बनाते वक्त उसमें रोने का प्रावधान नहीं रखा जाता।
फोन पर इंस्पेक्टर राजेश ने बताया था कि उसके बड़े लड़के का ट्रक से एक्सीडेंट हो गया। उसने कुछ देर सोचा और अपने आप को यकीन दिलाने लगा कि सचमुच उसी को यह दुर्घटना की खबर मिली है। फिर अपने ऊपर संयम रखा और डरते हुए ये बात धीरे आवाज़ में अपनी पत्नी को बताई। उसका संयम बरतने और धीरे आवाज़ में आराम से बात करना जरूरी था क्योंकि उसकी पत्नी स्त्री होने के साथ-साथ एक्सीडेंट होने वाले बच्चे की माँ भी थी। उसने थोड़ी देर बाद मन ही मन अपने को कोसा कि उसने अपने लिए कुछ समय पहले एक छोटी कार खरीदी थी और लड़का अपने कॉलेज जाने के लिये एक नयी मोटरसाइकिल मांग रहा था। दोनों चीजें एक साथ लेना तो संभव न था। वैसे भी नयी मोटरसाइकिल लेकर लड़के तेज भागाते हुए जाते है और इस वज़ह से उनके एक्सीडेंट ज़्यादा होते है यह उसकी निजी राय थी इसलिए उसने अपनी पुरानी मोटरसाइकिल लड़के को दे दी और एक कार खरीदी जो पूरे परिवार के काम आ सकती थी। वो सोचने लगा कभी -कभी उसकी पुरानी मोटरसाइकिल के ब्रेक पूरे नहीं लगते थे कहीं एक्सीडेंट की यही वजह तो नहीं। अब तैयार होने का न कोई समय था न ही उनकी इच्छा इसलिए वह तुरंत घर से पत्नी और छोटे बेटे को लेकर बताये हुए हस्पताल के लिए निकल पड़े।
हस्पताल पहुंच कर उन्हें बताया गया कि लड़के के सिर पर गहरी चोट लगी है और उसका ब्रेन हेमरेज हो गया है और तुरंत आपरेशन करना है। मैंने मन ही मन अपने से सवाल किया कि ब्रेन हेमरेज वाला कोई बचता है क्या ? जल्द आनन फानन मे आपरेशन हुआ क्योंकि हालत इतनी गम्भीर थी कि मरीज की जान बचाने के लिए वक़्त बहुत कम था। ऑपरेशन को सफल करार दिया गया और मरीज को आई सी यू मे भेज दिया गया।
आई सी यू मे जिनके मरीज होते है उनके घर के किसी व्यक्ति को अटेंडेंट के रूप मे नीचे रहने के लिए व्यवस्था थी और सुबह एक बार और शाम को एक बार मरीज को देखने दिया जाता था। रात सोने का समय आया बहुत से मरीजों के अटेंडेंट ने अपने अपने लिये बेंच पर कब्जा कर लिया बाकी कुछ कुर्सी पर या ज़मीन में फर्श पर लेट गये। मैने भी एक बेंच पर कब्जा कर लिया। पूरी रात जो बितानी थी थोड़ा समय बीत गया कि अचानक मेरी नजर एक युवती पर पड़ी जो सुंदर और किसी अच्छे परिवार की लग रही थी उसका पहनावा मारवाड़ी था। क्योंकि उसके पास सोने के लिए बेंच न था। मैंने जाने क्यो उठा फिर अपना बेंच उसे दे दिया। पूरी रात बैठे बैठे मैं यह सोचने लगा कि क्या ये कोई आकर्षण था या सहानुभूति। अगले दिन जब मैं आई सी यू में गया तो मेरे लड़के को कोई होश न था। जब मैने उसके बगल में देखा तो एक मरीज को पूरी तरह से एक पिंजरे जैसे चीज में बंद रखा था। ऐसा मालूम हुआ कि वो कोई जला हुआ व्यक्ति है।
लिफ्ट से जब मैं नीचे उतरने लगा तो वो मारवाड़ी युवती भी उतर रही थी। उसने बताया कि वो जला हुआ आदमी उसका पति है और उसका ये हाल जलने से नहीं बल्कि कोई दर्द निवारक गोली खाने के कारण पूरी चमड़ी जल जाने से हुआ है वो बीस दिन हुए किसी नज़दीक के शहर से आयी थी और अलग-अलग हस्पताल में पति को लेकर गयी थी। एक दर्द निवारक गोली का ऐसा अंजाम न मैने पहले सुना था या देखा था। पता नहीं क्यो हम दोनों मे हस्पताल में एक दूसरे की मदद करने का एक अनजान रिश्ता बन गया। तीन चार दिन बाद मेरा लड़का कोमा में चला गया। उस मारवाड़ी युवती का नाम मैं अभी भी जानता नहीं था लेकिन उसने मुझे हस्पताल में ही बने मंदिर मे हनुमान चालीसा पढ़ने की सलाह दी जिसको मैंने मान लिया।
आज दस रोज बीत गये। आज मोहित का जन्मदिन था। मुझे मारवाड़ी युवती ने बताया कि उसके पति बेहतर है उन्हे जल्द कमरे में स्थान्तरित कर दिया जायेगा और एक हफ्ते मे छुट्टी मिल जायेगी। खबर सुनकर मुझे भी अच्छा लगा। अचानक मुझे बुलाया गया और बताया कि मोहित को दिल का दौरा पड़ा है। कुछ ही घंटों मे वो बिना एक बार भी होश आये या हम से एक बार भी कुछ बोले बिना ही दुनिया से दूर चला गया।
आज करीब एक महीना होने को आया मोहित के जाने की उदासी हमारे मन से और घर से अभी भी दूर न हुई थी। अचानक मैने जैसे ही अपनी पेंट की जेब मे हाथ डाला तो एक छोटे से कागज़ के टुकड़े पर एक मोबाइल नंबर लिखा दिखा। ये उस मारवाड़ी युवती का था जो उसने हस्पताल मे एक दूसरे की मदद के लिये दिया था। अपने आप से करीब एक घंटा लड़ने के बाद भी मैं अपने को फोन करने से रोक न सका। मैंने उससे उसके पति का हाल जानना चाहा। मैं यह सुनकर सुन्न रह गया कि उसके पति की मृत्यु हो गयी और उसी दिन उनकी पूजा थी।
मुझे एक बार फिर बहुत दुख पहुंचा और समझ में नहीं आया कि इलाज के दौरान मरीज या उनके परिवार वालों का दूसरे मरीज या उनके संबंधियों के बीच सहानुभूति बन कर हस्पताल में जो अनजान रिश्ता बनता है उसे क्या नाम दिया जाये।