Gurminder Chawla

Tragedy drama inspirational

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Gurminder Chawla

Tragedy drama inspirational

पिंजरा

पिंजरा

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दुल्हन ने एक कदम आगे बढाया और अपने ससुराल मे प्रवेश किया । यह घर उसके सपनों के राजकुमार का था या फिल्मी दुनिया की भाषा मे उसके हीरो का था । लेकिन यह घर किसी फिल्मी दुनिया जैसा नही था । और न ही किसी बड़े साहूकार के बड़े घर जैसा था । यह तो एक मध्यम वर्गीय परिवार का छोटा सा घर था लेकिन उस शहर की एक गगनचुम्बी इमारत मे था । श्रुति की खुशियाँ अपार्टमेंट मे शादी होने से कम न हुई थी जिसकी एक वजह शयद ये थी कि वह एक छोटे से गाँव से ब्याह कर आयी थी । हर लड़की की तरह श्रुति ने भी शादी के सपने संजोये थे । सिर्फ पुरुष को ही नही स्त्रियों को भी भगवान ने यह अधिकार दिया है कि वह शादी के या मीठी सुहागरात के खवाबों को देख सकती है । न जाने सुहागरात को ही क्यो उसे ऐसा लगा कि उसका पति जैसे बोलता कम और भाषण ज्यादा देता है लेकिन उसके भाषण क्या श्रुति कि खुशियों को कम कर सकते थे । इसका उतर बिलकुल नही मे था ।

श्रुति मारवाड़ी परिवार से थी और उनमें ज्यादातर सयुक्त परिवार का चलन होता है । इसमे बड़े परिवार मे भी लोग प्रेमपूर्वक रहते हैं । श्रुति का विवाह भी ऐसे परिवार मे हुआ था जहाँ परिवार के सदस्यों की संख्या बहुत अधिक थी । उसकी तीन ननद थी । और चार देवर थे । उसका पति अपने भाईयों मे सबसे बड़ा था। श्रुति के लंबे केश उसकी कमर तक आते थे जो साधारण कठ काठी वाली श्रुति की सुन्दरता को बहुत बड़ा देते थे । वैसे वो स्वभाव से बहुत चंचल और बहुत गुणवन्ती थी । उसका पति राकेश दिखने मे साधरण था । कुल मिलाकर दोनों पति पत्नी की जोडी अच्छी दिखतीं थी । राकेश के दूसरो को अनुशासन में रखना की आदत थी । आप सुबह आराम से उठना । फिर आधा घंटा दाँतो को घिसते रहना । उसे ऐसे नित्य क्रम को निपटाने में एक डेढ़ घंटा लग जाता । फिर लंबा समय उसे स्नान मे और उसके बाद पूजा मे लग जाता खाना खाने मे भी वह बहुत समय लेता और इस दौरान उसकी पत्नी को गरम गरम खाना परोस कर पति के पास उपस्थित रहना पड़ता । सबेरे जल्दी उठकर उसे पूरे परिवार के लिए खाना बनाना पड़ता और सास ससुर की सेवा भी वो हँसी खुशी करती । बाद मे वो पति के काम मे जाने के बाद भी शाम को सभी के लिए भिन्न भिन्न नाशता तैयार करती । यह सब काम वह हँसी खुशी करा करती ।

श्रुति के घर एक तोता था । थक हार कर श्रुति जब खाली होती तो वो उस पिंजरे के पास चली जाती । दो तीन साल मे ही उसके सपने चूर होने लगे । उसे अपनी जिंदगी उस पिंजरे के बंद पक्षी की तरह लगने लगी। उसे ॠंगार बहुत पसंद था वो नई नवेली दुल्हन बनी रहना चाहती थी । इसके लिए उसे वक्त कहाँ मिलता था और कभी वक्त मिल भी जाए तो पति को उसका सजना सँवारना बिलकुल पसंद न था ।

ऋंगार करने पर उसे लंबा चौड़ा भाषण सुनना पड़ता जो यह दर्शाता कि वो एक दकियानूसी पुरुष था ।

एक दिन बगल मे रहने वाले लड़के प्रेम की शादी हुई  प्रेम का श्रुति के घर कभी आना जाना न था बस पडोसी होने के नाते श्रुति के पति से थोड़ी जान पहचान थी । धीरे-धीरे प्रेम की पत्नी और श्रुति एक दूसरे को पहचानने लगी और बाद मे इस जान पहचान ने पक्की सहेलियों का रूप ले लिया । अब वक्त निकाल कर वो प्रेम के घर आने जाने लगी। श्रुति का पति राकेश अकसर देर रात को शराब पीकर घर लौटता । इन सब बातों की प्रेम को जानकारी थी । श्रुति ने कभी भी अपने परिवार की परेशानियों का जिक्र प्रेम से या उसकी बीबी से नही किया । वो तो हंसने ओर खुश रहने के लिए ही भगवान ने बनायी थी श्रुति की गजब की सहनशक्ति को देखकर प्रेम के दिल मे उसके प्रति सहानुभूति बढ़ने लगी । एक समय यह आया कि इस सहानूभूति की जगह एक खिंचाव ने ले ली । और बाद मे यह खिंचाव आकर्षण बन बैठा । प्रेम बहुत खुलें विचारों वाला नही था । वह सामान्य विचारों वाला था और अपनी पत्नी से बहुत प्यार करता था । स्त्रियों का ॠंगार करना उसे बहुत पंसद था । श्रुति अब वक़्त चुराकर प्रेम के घर आने जाने लगी बाद मे दोनो को ऐसा लगा कि उनके विचार आपस मे बहुत मेल खाते है । प्रेम श्रुति के घर अभी भी आता जाता न था । वो दोनों अलग-अलग धर्म के थे शायद इसलिए या श्रुति के पति के स्वभाव ने उन्हे मेल जोल बढाने से रोक रखा था । अब प्रेम को श्रुति के अपने घर आने का इंतजार रहता । श्रुति भी उसके घर जाने का ऐसा समय ढूँढती जिस समय प्रेम घर पर हो । इन सब बातों का प्रेम का पत्नी के साथ संबंधो मे कोई फर्क न था । शायद श्रुति और प्रेम दोनो ही नही जानते थे कि उनके बीच कोई रिश्ता पनप रहा है न ही दोनों ने आपस मे किसी प्यार के रिश्ते का कभी इजहार भी किया । एक दिन बैक की नौकरी मे प्रेम का तबादला हो गया और वो लोग वहाँ से कही दूसरी जगह रहने के लिए चले गये ।

वक्त गुजरता गया और उनकी जवानी की उम्र अब अधेड़ अवस्था में बदल चुकी थी लेकिन दोनों के पास एक दूसरे की यादें अभी भी जिंदा थी । अचानक एक दिन श्रुति की जिंदगी मे बुरे वक्त ने दस्तक दे दी । उसके पति की मृत्यु ब्रेन स्टोक से हो गयी । अब श्रुति वो पाप कर चुकी थी जिस पाप से भारतीय संस्कृति मे नारी को नीरस जिंदगी भोगने की जिम्मेदारी सौंप दी जाती है । यह पाप था उसके विधवा हो जाने का । वो वहाँ खड़ी रो रही थी कि उसने देखा कि किसी ने तोते के पिंजरे को गलती से खुला छोड़ दिया है । वो पक्षी निकल कर पिंजरे से बाहर तो आया लेकिन उड़ा नही बल्कि पास मे बैठा पिंजरे को देखता रहा । आज श्रुति की भी हालत कुछ ऐसी थी आज वो भी मानों पति रुपी पिंजरे से निकल चुकी थी । अब उसको अपनी पंखों वाली जिंदगी जीने का अधिकार मिल गया था । पति के सारे रोक टोक खत्म हो चुके थे । लेकिन उसे अब अपना पिंजरा ही पसंद था । वो अपने मरने तक उसी पिंजरे में रहना चाहती थी । रोक टोक वाली जिंदगी की उसे आदत पड़ चुकी थी ।

कुछ दिन बाद श्रुति अपने घर के बरमादे पर खड़ी थी प्रेम उसके घर के सामने से गुज़रा उसने श्रुति को देखा वो बहुत कुछ कहना चाहती थी पर कुछ कह न सकी प्रेम भी कुछ कहना चाहता था लेकिन सिर्फ़ उसे देखकर धीरे-धीरे आगे बढ़ गया । खुलकर हमदर्दी से यदि वह उससे बात करता तो समाज दोनों को बिना कोई गलती किये दोषी करार कर देता । श्रुति को अब बस लंबे समय पूजा मे लीन रहकर ही अपनी जिंदगी बितानी है । पराये पुरुष की और देख लेना भी अब शयद उसके लिए अपराध है और किसी पुरुष का एक विधवा की तरफ देखना भी खुलेआम गुंडा गर्दी है । आज समाज ने विधवा को सफेद साड़ी के बंधनों से तो मुक्त कर दिया पर बहुत कुछ करना बाकि है ।


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