Gurminder Chawla

Tragedy

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Gurminder Chawla

Tragedy

आखिर कब तक (कहानी )

आखिर कब तक (कहानी )

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  "ओम जय जगदीश हरे " पूजा के गीत भरे शब्दों मे बाहर के दरवाज़े की घंटी बज उठी। घनश्याम रसोई घर में अकेला खड़ा था। वह इस उधेड़बुन में था कि आज अभी तक घर मे काम करने वाली नौकरानी आयी न थी। छोटा भाई ऊपर की मंज़िल पर बेडरूम मे था। दोनो भाइयों के शयनकक्ष ऊपर की मंज़िल में थे। मकान के नीचे सिर्फ रसोई और रसोई से जुड़ा खाने का कमरा और एक ड्रॉइंग रूम। यह छोटा सा मकान एक अच्छे रिहायशी इलाके मे था। दुकान जाने का समय भी नज़दीक आ चुका था। घनश्याम अभी रसोई में हाथ में एक अंडा लेकर खड़ा ये ही सोच रहा था कि लगता है आज तो कामवाली ने छुट्टी कर ली। आज तो वो काम पर आयेगी नहीं। बाहर की घंटी बजी तो उसने राहत की साँस ली ज़रूर ईला ही होगी। घर का काम करने आयी होगी।

ईला एक केरला की स्त्री थी। औरंगाबाद जैसे शहर में अपने परिवार के साथ पेट की खातिर ही आयी थी। घनश्याम और उसका छोटा भाई मोहन दोनों की बीबियाँ गर्मी की छुट्टियों मे मायके गयी थी। दोनों एक साथ ही मायके रवाना हुई वो भी पूरे पंद्रह दिनों के लिए। चाहती तो एक एक कर के भी जा सकती थी। वैसे भी दोनों को एक साथ मायके भेजने के लिए राजी करने पर दोनों भाइयों को काफी मशक्कत करनी पड़ी थी और आखिर में घनश्याम को कामयाबी मिल ही गयी। मोहन के विवाह को दस महीने ही हुए थे। अभी उनका कोई बच्चा न था। घनश्याम के विवाह को छह साल हो चले थे और करीब साढ़े चार साल का एक लड़का था जो अब स्कूल जाता था।

ईला देखने मे साधरण, रंग साँवला, कद ठीक-ठाक पर महत्वपूर्ण ये था कि थी तो वो एक स्त्री थी , वो भी साऊथ इंडियन। उनके घर में किसी केरल की नौकरानी रखने का पहला अवसर था। जब वो उनके घर चार महीने पहले काम माँगने आयी तो घनश्याम ने बीच में आकर बीबी को खूब समझाया और दो सौ रूपये महीने अधिक देकर उसे काम पर रखा।

ईला के जीवन की कहानी भी अजीब थी। पति सरकारी नौकरी में था इसलिए वो नौकरी ऐसे करता था मानो सरकार का दामाद हो। दारू पीने का पक्का शौकीन। मर्द था दारू पीने का हक तो इसलिए बनता ही था। पत्नी को मारना यह उसकी कोई ग़लती न थी वो तो शायद उसने अपने बड़े बूढ़ों से सुन रखा था कि औरत को पैर की चप्पल की तरह समझो। दो लड़के थे उनकी ग़लती इतनी ही थी कि वे माँ को बचाने के चक्कर में बीच में आकर पीट जाते वैसे तो वह बाप के नाम से भी डरते थे। बाप को दारू के साथ मटन खाने का भी बहुत शौक था। बस वो इतना ही कमीना था कि पहले अपने भोजन की थाली खुद भर लेता। अपना खाना संतुष्ट होकर खाने के बाद ही बचा हुआ खाने के लिए परिवार को देता। सरकारी नौकरी में होने के कारण अच्छी तनख़्वाह लगभग बारह हजार रूपये महीना थी। वो चाहता तो उसकी बीबी को काम करने की कोई आवश्यकता नहीं थी। हर महीने दारू पीकर बीमार होने की वजह से उसकी तनख़्वाह का काफी हिस्सा कट जाता बचा हुआ जो मिलता वो उसके इलाज और दारू के खर्च को कम पड़ता। ईला को अपने घर का खर्च चलाने और दोनों बच्चों की शिक्षा के लिए दूसरे घरों के बर्तन मांजने सफाई करने का काम करना पड़ता।

घनश्याम खुशी खुशी बाहर के दरवाज़े की तरफ दौड़ा और सामने ईला को खड़े देखकर उसने चैन की साँस ली। दोनों रसोई में चले गए और ईला ने पूछा क्या खायेंगे साहब ! क्या बनाऊँ आपके लिए। घनश्याम तो बस ईला को ही निहार रहा था। नाश्ते की भूख तो खत्म हो चुकी थी। पेट की ज्वाला शरीर की ज्वाला मे परिवर्तित हो चुकी थी। घनश्याम ने कहा एक अंडे का आमलेट बना दो। यह कहकर वो ईला के थोड़ा करीब आ गया। ईला बोली साहब मैं आमलेट से तो अंडा फ्राई ज्यादा अच्छा बनाती हूँ। अच्छा, अच्छा जो तुम चाहो वो बना दो घनश्याम बात निपटाते हुये बोला। नाश्ता खाने में अब उसकी ज्यादा दिलचस्पी नहीं थी। अंडा फ्राई होने लगा साथ में घनश्याम भी। अंडा पकने के बाद ईला उसे मेज पर रखने के लिए जाने लगी तो घनश्याम ईला के हाथ से लेने के लिए ईला की तरफ लपका। अंडा लेने के बहाने उसने जानबूझ कर ईला को छू लिया। ईला भी कोई बच्ची न थी वो भी दो बच्चों की माँ थी। घनश्याम के इरादे समझने में उसे देर न लगी। बस फिर क्या था उसने घनश्याम की शराफत का इम्तिहान लेना शुरू कर दिया। अन्य औरतों की तरह ईला का भी यह हक बनता था कि चाहे वो कुछ गलत करे न करे और पूर्ण पतिव्रता हो पर वह ये जानना चाहती है कि सामने वाला पुरुष कितना शरीफ है और वो किस सीमा तक जा सकता है।

इतने में घनश्याम का छोटा भाई मोहन भी घंटी की आवाज़ सुनकर नीचे रसोई में आ गया। आप भी तो कुछ ले लो बाबू ऐसा ईला ने मोहन से पूछा। जवाब में मोहन बोला हाँ हाँ मैं भी लूँगा। मुझे भी दे दो। यह बात उसने इस तरह हँसकर कही और घनश्याम की ओर देखकर आँख से इशारा किया। ईला ने भी उसकी आँख के इशारे को देख लिया। रिश्ते में तो वो दोनों भाई थे। एक बड़ा और एक उससे काफी छोटा लेकिन ऐसे वक्त में वो भाई कम और बनकर रह जाते थे एक दूसरे के दोस्त या उससे भी ज्यादा। शराफत से दोनों कोसों दूर थे। दोनों मेज पर बैठ कर नाश्ता कर रहे थे मगर उनका दिल नाश्ते में नहीं था और ध्यान बाजू में ईला जो बड़े हाल की सफाई कर रही थी उसकी तरफ था। घनश्याम नाश्ता जल्दी खत्म करके ईला के पास पहुंचा और उसे हँसाने के प्रयत्न करने लगा। ईला को भी साहब को थोड़ा खुश करना था इसलिए सफाई करते वक्त उसका साड़ी का पल्लू नीचे खिसक गया। उसने थोड़ा कुछ दिखा कर बहुत कुछ छुपाने में सफलता हासिल कर ली।

दोनों भाई अब आक्रमक मूड में थे। ईला सफाई करने ऊपर की तरफ सीढ़ी चलने लगी दोनों भाई उसके पीछे पीछे सीढ़ी चढ़ने लगे। ईला अब घबरा चुकी थी। ऐसा मजाक कभी इस सीमा तक न पहुंचा था। ईला घबरा कर सीधा छत की ओर चल दी। उसने छत की सफाई पहले करने का निर्णय ले लिया था। मोहन ने उसे समझाने की खूब कोशिश करी लेकिन वो कुछ मानने को तैयार न थी। घनश्याम ने भी कभी अपनी हार न मानी थी। मोहन कितने सालों से बड़े भाई का साथ देता था और अंत में सब ठीक हो जाता था। घनश्याम पीछे न हटा और उसने ईला को अपनी हवस का शिकार बना लिया। इतना सब हो जाने के बाद मोहन भी पीछे कैसे रहता उसने भी बहती नदी मे हाथ धो लिया।

ईला इस सदमे को बर्दाश्त नहीं कर पा रही थी। उसने छत पर ही चीखना चिललाना शुरू किया। पड़ोस के मकानों मे लोगों को शोर सुनाई देने लगा। दोनो भाइयों को बलात्कार के दस वर्ष की सजा का डर सताने लगा। बात हाथ से निकल चुकी थी। ऐसी आवाज़ हमेशा के लिए खामोश होकर ही उन्हे बलात्कार के आरोप से छुटकारा दिला सकती थी।

जज साहब सब समझ चुके थे लेकिन फैसला सबूतों के आधार पर ही सुनाना था। पुलिस की छानबीन में अनेक खामियों का जिक्र था। गवाहों के बयान बदल चुके थे। पोस्टमार्टम रिपोर्ट मे बलात्कार न होने की बात कही गयी थी। ऐसे चमत्कार तो घनश्याम जैसे जुल्म की दुनिया के ठेकेदार आसानी से करते ही है। ईला की मौत का कारण बिजली का करंट लगना बताया गया था। करंट बरसात में कूलर की तार को छूने से लगा था। यह अकस्मात स्वाभाविक दुर्घटना का मामला बनता था। फैसले के बाद दोनों भाई बलात्कार और हत्या के आरोप से बरी हो चुके थे।

 ईला का पति फैसले के बाद अदालत से अपने दोनो लड़कों का हाथ पकड़कर बाहर निकल रहा था। अब वो शराब छोड़ चुका था। दोनों लड़कों की जिम्मेदारी ने मानो उसे अब बाप बना दिया हो। ऊपरी अदालत का दरवाज़ा खटखटाने की न उसमें इच्छा थी न ताकत। आज समाज में कितनी ही मजबूर ईला है जिनका शोषण, यौन उत्पीड़न हो रहा है यहाँ तक कि उनको अपनी जान भी गँवानी पड़ रही है। हमे साथ ये भी सोचना है कि घनश्याम जैसे पुरुष ऐसा विकृत रूप धारण न कर ले इसलिए स्त्रीयों को भी अपने ऊपर कुछ अंकुश लगाकर सजग रहना जरूरी है। यह सिलसिला आखिर कब तक चलेगा इसका जवाब किसी के पास नही है।


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