थोड़ा-सा मान
थोड़ा-सा मान
थोड़ा-सा मान
"बहू, हमारे गृह-प्रवेश के कार्यक्रम में आमंत्रित करने के लिए तुमने अपने भैया की बजाय भाभी को फोन करके क्यों आमंत्रित किया ?" सास ने पूछा।
"माँ जी, भैया तो मेरे अपने हैं। वे तो आएंगे ही। भाभी को फोन करके मैंने उन्हें थोड़ा-सा सम्मान देने की कोशिश की है, ताकि उन्हें ये न लगे कि उनको तो पूछा ही नहीं।''
"हूँ।"
"माँ जी, जब लोग अपने घर के किसी भी कार्यक्रम में अपनी बेटी की बजाय दामाद जी या समधी जी को फोन करके बुला सकते हैं, तो क्या हम घर की बहू को इतना भी सम्मान नहीं दे सकते ?"
"बिल्कुल दे सकते हैं बेटा। मुझे गर्व है कि मेरी बहू इतनी समझदार है।" सास ने बहू को गले से लगा लिया।
- डॉ. प्रदीप कुमार शर्मा
रायपुर, छतीसगढ़
