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Dr. Pradeep Kumar Sharma

Action Inspirational

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Dr. Pradeep Kumar Sharma

Action Inspirational

माँ

माँ

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20

लघुकथा 


माँ


एक दस साल का बच्ची मंदिर के बाहर बैठी आते-जाते लोगों के सामने हाथ फैलाए भीख मांग रही थी। मैं अक्सर मंदिर आता हूँ। उसे आज पहली बार देख रहा था।‌ जब मैं उसके नजदीक पहुंचा, तो बोली- 'बाबूजी बहुत भूख लगी है। दो दिन से मुझको कुछ खाने के लिये दे दीजिए। भगवान आपका भला करेगा।' 

उसकी याचिका भरी निगाहें मेरे चेहरे पर टिकी हुई थीं। मैं मना नहीं कर सका और अपने हाथों में रखे प्रसाद और फल उसको देकर बाहर आ गया। मैंने देखा कि वह लड़की तुरंत वहाँ से उठकर जाने लगी। महज जिज्ञासावश में उसके पीछे - पीछे चलने लगा। 

थोड़ी ही दूर चलने के बाद मैंने देखा वह अपनी झोपड़ी नुमा घर में घुस गई। मैं बाहर ही खड़ा रहा।

"माँ, ये देखो, मैं आपके लिए मंदिर से प्रसाद लाई हूँ।‌ खा लीजिए फिर दवाई खानी है आपको। डॉक्टर साहब ने आपको कुछ खाने के बाद ही दवाई खिलाने के लिए कहा था।"

"पर दवाई कहाँ है ?"

"माँ, वह मैंने दवाई दुकान से खरीद ली है। आप बस ये प्रसाद खा लीजिए।"

"दवाई के पैसे कहाँ से आए तुम्हारे पास ?"

"मैंने अपनी मैडल बेच दी, जो मुझे पिछले साल क्लास में फर्स्ट आने पर मिली थी।"

"क्या...?"

"हाँ माँ, मैडल तो मुझे फिर भी कई मिल जाएँगे, पर माँ..."

माँ ने बेटी को सीने से लगा लिया। तभी मैं दरवाजा खटखटाया और बोला, "क्या मैं अंदर आ सकता हूँ ?"

"हाँ आ जाइए। दरवाजा खुला है।" माँ ने कहा।

"मैं सी.एम. हाउस से आया हूँ। आपकी बेटी ने क्लास में टॉप किया है। इसलिए मुख्यमंत्री जी ने पुरस्कार स्वरूप ये पाँच हजार रुपए भिजवाए हैं। ये रखिए और इस कागज पर पावती दे दीजिए।" मैं एक साधारण कागज पर पावती बना कर उससे पावती ले लिया। 

मैं पहली बार किसी को वपसी की उम्मीद के बिना ही इतना अधिक पैसा देकर बहुत खुश था।



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