# थैंक्यू टीचर
# थैंक्यू टीचर
मृत्यु शय्या पर लेटे हुए मुस्कुराने और गुनगुनाने का हुनर सिखाने वाली मेरी बेहद प्यारी टीचर ताशी श्रीवास्तव उर्फ "लख्ते जिगर" , "तूफान मेल" , "लड़ाकू विमान" , छोटी , इशिता , "इशू" और प्रत्यूष की "ईशी मां " पापा की "लक्ष्मी जी" , दीदी की "जान" और भैया की "ब्रो " इतने सारे नामों से जाने जानी वाली "मिस इशिता श्रीवास्तव" जिनकी उम्र महज 22 वर्ष है लेकिन अक्ल आइंस्टीन से भी ज्यादा है और ये मेरी बहुत अच्छी टीचर हैं। इन्होंने मुझे उस वक्त मुस्कुराने की वजह दी , गुनगुनाने के लिए मधुर गीत और जीने का हौसला दिया जब चिकित्सकों के मुताबिक मेरी उलटी गिनती शुरू हो चुकी थी और मैं आखिरी सांसें ले रही थी।
कहते हैं लोग कि ज़ख्म बड़े गहरे थे।
घाव ताज़ा था फफोले उभरे थे। बदहवास मैं बिस्तर पर लेटी थी।
बिजली के बिस्तर पर बिजली के
अत्याधुनिक उपकरणों से अलंकृत
अपने वर्तमान से बेखबर सुकून की नींद सो रही थी। मॉनिटर स्क्रीन पर मेरी आंतरिक गतिविधियों की सूचना मिल रही थी। खतरे की 48 घंटे में से 22/24 घंटे बीत चुके थे। वहां पर एकत्रित तमाम लोगों के शक्ल पर बारह बजे थे। धड़कने अनियंत्रित और चेहरा हरा, पीला और सफ़ेद पड़ चुका था। कहने को तो बीमार मैं थी लेकिन वहां मुझे छोड़कर बाकी सभी लोग गंभीर रूप से बीमार लग रहे थे। घाव जो सिर्फ मेरे भीतर लगा था उसके निशान वहां मौजूद हर शख्स के शक्ल पर दिखाई दे रहा था। अस्पताल के प्रांगण में ही कोई गायत्री मंत्र का जाप कर रहा था कोई महामृत्युंजय मंत्र का। कोई हनुमान मंदिर में एक पांव पर खड़े होकर हनुमान चालीसा पढ़ रहा था तो कोई गिरजाघर में मोमबत्ती जलाने गया था। कोई जामा मस्जिद में चादर चढ़ाने का मन्नत मांग रहा था तो कोई गुरूद्वारा में लंगड़ करने का संकल्प ले रहा था। इन तमाम अपनों के अलावा डॉ , नर्स , कम्पाउन्डर और अस्पताल के अन्य सहायक कर्मचारी भी परेशान और बेचैन दिखाई दे रहे थें। यह सब देखकर भी एक बच्ची थी जो बहुत शांत और स्थिर थी। माहौल की गंभीरता को नजरंदाज करते हुए वो उठकर मेरे पास आई और कहा कि क्या नाटक फैला रखा है ? इन सभी को बेवकूफ बना सकती हो लेकिन मुझे नहीं देखो मेरी आंखों में और बोलों कि क्यों सबको परेशान कर रही हो ? चलो उठो चाय वाय बनाओं , कुछ पकौड़े तलों और साथ में सुनाओ कोई कविता, कहानी , शेरो शायरी या फिर वो गाना ही सुना दो। इतना सुनने के बाद न जाने कैसा चमत्कार हुआ कि मैं बोल पड़ी कौन सा गाना ? उसने भी झट से कहा वही पुराना ये दुनिया पीतल दी और तुम .... और तुम बोलो ? मैंने भी बोल दिया मैं डॉल सोने दी ... और हम दोनों हंस पड़े ...। पीन पटक सन्नाटे में हमारी हंसी गूंज उठी और सभी लोग असहज होकर घूरने लगें मगर हमने परवाह नहीं की और मैंने उसे गले से लगा लिया। गले लगते ही मानो उसने अपनी तमाम ऊर्जा मुझमें स्थानांतरित कर दी और मैं बेहद हल्का फुल्का और तरोताजा ऊर्जावान महसूस करने लगी। यह घटना 10 अगस्त 2018 , फरीदाबाद के एक बड़े अस्पताल की है जहां रीढ़ की हड्डी की सर्जरी करने के दौरान गलती से मेरी आटरी वेन कट गई थी और बेतहाशा खून बहने लगा था। अस्पताल में अफरातफरी मच गई थी। सभी रिश्तेदारों और दोस्तों को सूचना भेज दी गई थी। लगभग सभी लोग पहुंच भी गए और धीरे धीरे सभी ने वस्तुस्थिति देख समझकर यह मान भी लिया था कि मेरा अंतिम दर्शन कर रहें हैं। मगर बचपन से बेहद जिद्दी और जुनूनी मिस इशिता श्रीवास्तव ने नहीं माना और उनकी जिद्द थी कि वो "अपने लॉ आफ अट्रैक्शन" के सिद्धांत को अपना कर मुझे ठीक कर सकती हैं। उन्होंने उसी पल से अपने मिशन पर कार्य करना शुरू किया। सबसे पहले उन्होंने मुझसे कहा कि "मैं जो कहूं उसे एक बार दोहराओ " और फिर उन्होंने कुछ मोबाइल नंबर निकालें उसे सेव किया उन नंबरों पर मैसेज किया और जब जवाब आने शुरू हुए तो उन्होंने मुझे पढ़ाया .....। और उनका यह अद्भुत अप्रतिम प्रयोग कारगर सिद्ध हुआ।
उन्होंने मुझे मृत्यु शय्या पर भी हंसाया और मुझमें प्राणवायु भर दिया। अस्पताल में डॉक्टर , कम्पाउन्डर और बाकी सहयोगी कर्मचारी हैरान हो गए। सभी लोग उन्हें एक डॉक्टर समझने लगें और विशेष सम्मान देने लगें फिर मेरे इलाज से संबंधित हर बात पहले उन्हें बताने लगे उनके साथ सलाह मशविरा करने लगे। 18 दिन बाद जब मैं घर लौटी तब एक जश्न का आयोजन हुआ और मेरे जिंदा रहने के लिए हौसला और आत्मविश्वास भरने के लिए मिस इशिता श्रीवास्तव को श्रेय दिया गया। उस घटना के चार वर्ष गुजर चुके हैं। आज मैं जीवित हूं और पहले से बहुत बेहतर हूं। बिना किसी चिकित्सिकीय इलाज के।
मिस इशिता श्रीवास्तव उर्फ लख्ते जीगर का "लॉ आफ अट्रैक्शन" काम कर गया और मैं जी उठी यह और बात है कि कुछ दिनों के लिए मैं अपने अतीत कॉलेज लाइफ में लौट गई थी। वर्तमान को भूल कर अपने उम्र के बीस से पच्चीस साल में पहुंच कर फिर से एक अल्हड़, चंचल बिंदास किशोरी बन कर जीने लगी थी। काफी वक्त लगा मुझे अपने पचपन छप्पन वर्ष के सही उम्र में लौटने में।
अपनी इस विशिष्ट शिक्षक को इस विशाल मंच पर थैंक्यू कहना चाहती हूं।