Sidhartha Mishra

Abstract

4.5  

Sidhartha Mishra

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तेरा मुझसे

तेरा मुझसे

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तेरा मुझसे है पहले का नाता कोई,

यूँ ही नहीं दिल लुभाता कोई,

जाने तू या जाने ना, माने तू या माने ना '

ये गीत मुझे बेहद पसंद है ओर मैं हमेसा सोचता था की क्या हमारे जीवन साथी का चयन पहले से ही हो चूका है; क्या जन्मो का नाता सही मैं हो सकता है!

जब मेरी शादी के लिए लड़की देखने मुझे बुलाया गया, तो मैं असमंजस मैं था की क्या 'अरेंज मैरिज' आज के युग मैं भी सही है? क्या हमें अपने जीवन साथी चुनने का भी कोई अधिकार नहीं? क्या आज भी शादी जाती ओर धर्म को देखकर करना जरुरी है?

इन सब प्रश्नों को दिमाग़ मैं लेकर मैं पहुंचा लड़की वालों के घर। उन्होंने हमारा जोरसोर से स्वागत किया। फिर हमको लेकर सोफे पर बैठाया ओर बहुत खातिरदारी की।

फिर कुछ देर बाद जब मैं अपनी होने वाली दुल्हन से मिला, तो पता नहीं क्यों अंदर से एक आवाज़ आयी की तुम सही जगह आये हो। मैंने उनसे कुछ देर बातें की ओर मैंने पाया की हमारे बिचार भी बहुत हद तक मिलते हैँ।

मैंने शादी के लिए हाँ कर दी। ओर मुझे मेरे प्रश्नों के उत्तर भी मिल गए। भगवान ने हम सब के लिए किसी ना किसीको बनाया है ओर वक्त आने पर हमें उनसे मिलवा ही देते हैँ।


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