मालिक कौन
मालिक कौन
एक आदमी एक गाय को घर की ओर ले जा रहा था । गाय जाना नहीं चाहती थी । वह आदमी लाख प्रयास कर रहा था, पर गाय टस से मस नहीं हो रही थी । ऐसे ही बहुत समय बीत गया ।एक सन्त यह सारा माजरा देख रहे थे । अब सन्त तो सन्त हैं, उनकी दृष्टि अलग ही होती है, तभी तो दुनिया वाले उनकी बातें सुन कर अपना सिर ही खुजलाते रह जाते हैं ।
सन्त अचानक ही ठहाका लगाकर हंस पड़े । वह आदमी पहले से हि परेशान था, सन्त की हंसी उसे तीर की तरह लगी । वह बोला- "तुम्हें बड़ी हंसी आ रही है ?"
सन्त ने कहा- "भाई ! मैं तुम पर नहीं हंस रहा । अपने ऊपर हंस रहा हूँ ।" अपना झोला हाथ में उठा कर सन्त ने कहा- "मैं यह सोच रहा हूँ कि मैं इस झोले का मालिक हूँ, या यह झोला मेरा मालिक है ?"
वह आदमी बोला- "इसमें सोचने की क्या बात है ? झोला तुम्हारा है, तो तुम इसके मालिक हो । जैसे ये गाय मेरी है, मैं इसका मालिक हूँ ।"
सन्त ने कहा- "नहीं भाई ! ये झोला मेरा मालिक है, मैं तो इसका गुलाम हूँ । इसे मेरी जरूरत नहीं है, मुझे इसकी जरूरत है । तुम गाय की रस्सी छोड़ दो । तब मालूम पड़ेगा कि कौन किसका मालिक है ? जो जिसके पीछे गया, वो उसका गुलाम ।" इतना कहकर सन्त ने अपना झोला नीचे गिरा दिया और जोर जोर से हंसते हुए चलते बने ।
सन्त कहते हैं कि हम भी अपने को बहुत सी वस्तुओं और व्यक्तियों का मालिक समझते हैं, पर वास्तव में हम उनके मालिक नहीं, गुलाम हैं। मालिक वे हैं, क्योंकि उनकी आवश्यकता हमें है!
जो जितनी रस्सियाँ पकड़े हैं, वो उतना ही गुलाम है । जिसने सभी रस्सियाँ छोड़ दी हैं, जिसे किसी से कुछ भी अपेक्षा न रही, वही असली मालिक है ।