तारें अनगिनत
तारें अनगिनत
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आजकल कुछ दिनों से तन्हाई का आलम ये है कि रोज़ रात को तारें गिनने की कोशिश करता हूँ।जैसे ही सैकड़ा पार होने लगता है, नींद मुझे आगोश में ले लेती है।हाँ, नींद आने से पहले मैं अपनी तारों की गिनती को जरूर याद रखता हुँ।
लेकिन दिन भर की आपाधापी खत्म होने के बाद फिर से रात में तारों की गिनती का सिलसिला चल पड़ता है।बीती रात की गिनती याद करने की कोशिश करता हुँ और नाकामी के बाद मैं फिर से तारों की गिनती शुरू करता हूँ और नींद के आने तक इसी तरह ये गिनती जारी रहती है।
जिंदगी भर ये सिलसिला चलता रहता है।जिंदगी की आपाधापी का और तारों की गिनती का भी......
तारों का गिनती करते करते जिंदगी खत्म हो जाती है.....और यह गिनती फिर भी मुकम्मल नहीं हो पाती....