Sadhana Mishra samishra

Tragedy

4.3  

Sadhana Mishra samishra

Tragedy

ताकत

ताकत

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अनिल यादव, शहर में कौन ऐसा होगा जो अनिल को नहीं जानता होगा।

पिता की शहर में तीन इंडस्ट्री थी। पैसों की रेलमपेल थी। चंदा देने के मोटे आसामी थे, सो राजनैतिक गलियारों में ऊंचा दखल था। पार्टी कोई भी हो, मोटे चंदे के एवज में उनका कोई काम रूकने नहीं देती थी।

सब कुछ जमा जमाया था। बैठे ठाढ़े को काम क्या, सो अनिल की रुचि साहित्य में हो गयी।

नाम कमाने की धुन जो चढ़ी तो मजलिसों में शिरकत करने लगे, बड़ी-बड़ी मजलिसों का आयोजन करने लगे। गुमनामी के अंधेरे में डूबे कवियों को मंच देने लगे।

और एहसान में लेखनी के धनी पर जेब के कड़के रचनाकार उम्दा साहित्य लिखने में अनिल की मदद करने लगे।


उनका घर चलने लगा, अनिल की साहित्य की दुकान। एक डूबती हुई पब्लिकेशन को अनिल ने आर्थिक सहयोग दिया। बदले में पब्लिकेशन ने अनिल कुमार की किताब छापी, जमकर प्रचार हुआ। हर उस संस्था और व्यक्ति ने पाँच-पाँच सौ किताबें खरीदी, जिन्हें उनके पिता से अपने काम साधने का वास्ता था।

आज अनिल की किताब पर साहित्य के सबसे बड़े पुरस्कार "ज्ञान पीठ पुरस्कार "देने की घोषणा की गई है।


शाम को बहुत बड़े फंक्शन में यह पुरस्कार प्रदान किया जाना है जिसमें देश के नामचीन लोगों की उपस्थिति में यह पुरस्कार देश के होनहार साहित्य कार को मिलना तय हुआ है ।

आज अनिल यादव के पिता रह रह कर अपने आँसू पोंछ रहे थे।

 उन्होंने सिर्फ पैसा कमाया, पर उनके होनहार पुत्र ने साहित्य सेवा करके सात पीढ़ियों को तार दिया था। आखिर पैसों का इससे बड़ा सदुपयोग और क्या हो सकता था।

और तालियों की गड़गड़ाहट के बीच मंच के एक कोने में खड़ा एक लेखक आँखों में आँसू भरकर जेब में पड़े चंद रूपयों को सहला रहा था कि कागज में लिखे कुछ शब्दों में वह ताकत कहाँ जो पेट की आग को बुझा सके....?



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