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मधुलिका साहू सनातनी

Tragedy Thriller

4.5  

मधुलिका साहू सनातनी

Tragedy Thriller

ताजमहल

ताजमहल

8 mins
17


विनी अब एकदम अकेली थी । वह और उसका अकेला सुनसान पड़ा घर जिसे वह अपना ताजमहल कहा करती थी । घर को ताजमहल संज्ञा तब दिया था जब उसके पति ने उस लगभग सौ वर्ष पुराने घर का जीर्णोद्धार करवाया था और फर्श पर संगमरमर  बिछवा दिया था । शुरू शुरू में झक सफेद पत्थर ताजमहल के जैसा ही खूबसूरत लगता था । पुराने घर की तुलना इस सफेदी से करती विनी का मन में इस घर के लिये अपने आप ही  ताजमहल निकलने लगता  और पति के बुलाने पर उसके मुँह से निकलता, "अरे मैं यहाँ हूँ अपने ताजमहल में ।अभी आती हूँ । " ताजमहल की बात सुनकर पति भी मुस्कुराये बिना रह नहीं पाते थे ।

अब घर सूना हो गया है । पति के जाने के बाद वह अकेली है क्योकि हम दो हमारे दो के नारों से पति बहुत ज्यादा प्रभावित थे । उन्होंने भी दो ही बच्चे किये । तब से अब तक एक लंबा समय बीत गया है गृहस्थी निपटाते निपटाते । दोनों बच्चे परेश और विनेश अपने-अपने नौकरियों पर अलग-अलग स्थान पर स्थापित अपनी जिंदगी जी रहे हैं अपनी नौकरियों के चलते माँ के साथ कौन रहे यह मजबूरी परेश और विनेश की थी और माँ अपना ताजमहल छोड़कर साथ जाने को तैयार नहीं थी ।

एक लंबी आयु बीतने से अब बाल पक गये हैं । सफेद होते बालों को कभी रंगा नहीं इससे और स्त्रियों की अपेक्षा वह शीघ्र ही आयुदराज लगने लगी थी । पिचहत्तर वर्ष की आयु में अब विनी के पैर लड़खड़ाने लगे थे ।  अभी भी जब वह चाय बनाने के लिये पलंग से उठने लगी  तब उसके पैर लड़खड़ा गये ।  जल्दी से खुद को सम्हाला । पलंग के सिरहाना पकड़ ना लिया होता तो गिर ही गयी होती । मुँह से एक छोटी सी दर्द भरी 'आह....' निकली और घुटनों को पकड़ कर फिर से पलंग पर बैठ गयी ।

मुँह सुख रहा था प्यास भी जोरों की लग आयी थी इसी से चाय बनाने के लिये उठाना चाहती थी पर अब लगभग उठने में असमर्थ होने से आँखों से आँसू ढलक गये । दोनों बच्चों की याद आ गयी । वे होते तो क्या उसे एक गिलास पानी और और एक कप चाय ना मिल जाती ? इसमें गलती बच्चों की नहीं थी । वे तो हमेशा उसे साथ रखने को तैयार थे पर वह स्वयम ही अपना ताजमहल छोड़ कर नहीं जाना चाहती थी ।

पर अभी पैरों की लड़खड़ाहट से घुटनों की कोई नस चमक उठी थी । 'कट'  की आवाज के साथ दर्द बढ़ गया । लाचार सी विनी पलंग पर बैठी बैठी सोचने लगी, कब तक वह इस तरह अकेले जी पाएगी ? अभी तो फिर भी हाथ पैर चल रहे हैं । किसी ना किसी तरह अपने आपको घसीट ले जा पा रही है, पर कितने साल ? जहाँ एक-दो साल और गुजरे तब क्या होगा ? तब तो उसे बच्चों की शरण में जाना ही पड़ेगा । बच्चे थोड़ी ही यहाँ आकर रह पाएंगे, उसी को अपना ताजमहल छोड़ना पड़ेगा ।

दर्द के एहसास में प्यास और चाय की भूख को खत्म कर दिया था अब दर्द से छुटकारा पाने के लिए उसने घुटनों पर तेल मालिश करने की सोची पर तेल भी तो चार कदम दूर अलमारी में रखा था । तेल लगाने के लिए भी तो उसे पलंग से उठना ही पड़ता जब उठ ही जाएगी तब चाय ना बना कर पी लेगी ? चाय की याद आते दर्द का एहसास तारी हो उठा । अब पहले तेल मालिश करके घुटनो को आराम पहुँचाये या फिर चाय बना कर सूखती जिह्वा को तर करे ? दोनों संवेग एक के बाद एक हावी होने लगे .....चाय या तेल ....तेल या चाय ? पहले क्या ?

थोड़ी देर दर्द सहने के बाद समझ मे आया कि तेल वाली अलमारी चार कदम की दूरी पर है और रसोई के लिये कम से कम पन्द्रह बीस कदम चलना पड़ेगा । अगर दर्द कुछ शांत हो जाये तो रसोई तक जाकर चाय बनने तक खड़े होना सरल हो जाएगा ।

नम आँखों को आँचल से पोंछ कर अलमारी तक खुद को घसीटा और तेल की बोतल उठा लिया । वापस पलंग पर बैठ कर साड़ी घुटनो तक उठा कर तेल मालिश करने लगी । कम से कम दस मिनट तेल मालिश करने में जाया हो गए पर कुछ आराम मिल गया । अब रसोई जा के चाय बना सकती थी । सूखती जीभ अचानक से और ऐंठने लगी । चाय की तलब सख्त जरूरत में तब्दील हो गयी ।

अब फिर से पलंग से उठना पड़ा । दर्द से घुटना चिलकने लगा पर चाय बनाने तो जाना ही था । अभी चाय बनाकर पी लिया तो भूख काफी देर के लिये शांत हो जाएगी वर्ना फिर खटो रसोईं में खाना बनाने के लिये ..... उसमें तो कम से कम एक घंटा लग जाएगा इससे अच्छा है कि अभी चाय बनाकर थोड़ी देर के लिए भूख शांत कर ली जाये ।

चाय बनाने तक कि देरी में रसोई में विनी खड़ी रही उसके मुँह से -'हाय राम .....हाय राम ...पता किस जन्म के कर्मो का फल भोग रही हूँ '  ऐसा निकलता ही रहा ।

चाय पी कर भूखे पेट को थोड़ी देर के लिये राहत मिल गयी । अभी तक प्यास से सूखते गले को भी आराम मिल गया था । अब उसकी कोशिश रहेगी कि उसे खाना ना बनाना पड़े चाहे उसके लिये उसे भूखा ही क्यों ना रहना पड़े । वह अपने मन को समझा लेगी कि उसका व्रत है । आखिर व्रत में भी तो थोड़ी भूख बर्दाश्त करनी पड़ती है । चल के रसोई में जाकर खाना बनाने से अच्छा है कि व्रत समझ कर दिल को बहला लिया जाये ।

कभी कभी इस तरफ लड़खड़ाने के बाद वह सोचती है कि अगर भगवान ना करे कि वह गिर जाये तब क्या होगा ? उसकी आवाज भी सुनने वाला यहाँ कोई नहीं । क्या वह अकेली पड़ी रहेगी ?  और भगवान ना करे कहीं ज्यादा चोट लग गयी तो ...तो क्या होगा ?  घर मे अकेली पड़ी पड़ी सड़ जायेगी .... जब बदबू उठने लगेगी तब जाकर पड़ोसियों का ध्यान उसपर जाएगा ।

गनीमत है कि अभी तक तो भगवान ने उसे बचाये रखा है और वह अपने ताजमहल को शान से जी रही है । फिर मन को समझाती है कि ऐसा कभी नहीं होगा । उसने इतने बुरे कर्म किये ही नहीं जो भगवान जी उसे ऐसा दण्ड देंगे । मृत्यु का सोचकर उसे इतना झटका लगा कि भगवान से प्रार्थना करने लगी, 'भगवान जी ऐसी मृत्यु कभी मत देना जिससे आपके दिये इस शरीर की ऐसी बुरी हालत हो ।' पर मन का एक कोना सहम गया था ।

पूरा दिन पलंग पर बिता दिया । व्रत भी कहने को रखने की कोशिश किया पर भूख लगने लगी । उसने याद किया कि आज इतनी भूख क्यो लग रही है ? आखिर उसने कम तो नहीं खाया था - सुबह नाश्ते में दो स्लाइस ब्रेड और चाय लिया था फिर दोपहर दो रोटी खायी थी । शाम के समय वह लड़खड़ा गयी थी जिस कारण सिर्फ चाय बना कर पिया था और  अब फिर खाने का समय हो गया । क्या करूँ व्रत भी नहीं रखा जा रहा है ।

मजबूरन रसोई जाने के लिए धीरे से उठी । भोजन बनाना जरूरी है पर वही डर साकार हो गया । दो चार कदम चली होगी कि घुटना फिर एक बार 'कट' बोला और वही पलंग के पास गिर पड़ी । मुँह से 'हाय - हाय' निकला । हाथ लगा कर उठने की कोशिश किया पर जर्जर हो चुकी हड्डियों ने शरीर का बोझ सम्हालने से इनकार कर दिया । पलंग के पास गिरी किसी सहायता की तलाश में चिल्लाना शुरू किया पर उसकी आवाज वहीं गूँजने लगी । उसकी आवाज घर से बाहर गयी ही नहीं । उसके डर ने अब और डराना शुरू कर दिया । कहीं वह यहीं पड़ी पड़ी मर ना जाये और यह सोच कर पूरी शक्ति लगा कर पलंग पर रखा मोबाइल उठाने की कोशिश करती रही ।

इस कोशिश में कितना समय बीत गया होगा उसने अंदाज लगाया । शायद दो घंटे बीत चुके होंगे ।  आखिरकार अपने आपको किसी तरह पलंग तक घसीट लिया । अब बारी थी मोबाइल उठाने की । कमर के नीचे का भाग दर्द से छटपटा रहा था । उसे इस दर्द से परे जाकर मोबाइल उठाना ही था वर्ना ......

मोबाइल पलंग के किनारे ही रखा था । आँसुओं से चेहरा भीग चुका था । चार कदम की दूरी घिसट कर पार करने में उसे दो घंटे लग चुके थे । शक्ति जवाब दे रही थी । बेहोशी छाने लगी । अब पलंग से मोबाइल उठाने के लिये कितनी मेहनत और करनी पड़ेगी?  विनी का जर्जर हो चुका शरीर इस मेहनत को झेल नहीं पाया और जैसे ही उसने अपना हाथ पलंग पर मोबाइल को उठाने के लिये बढ़ाया उसकी हिचकी बंधी और साँसे  उसी ताजमहल में दफन हो गयी ।

इस कहानी का एक दूसरा चेहरा ऐसे भी हो सकता था । विनी ने होश में आने के बाद किसी तरह एक बार और हिम्मत जोड़ी और मोबाइल उठा लिया । चेहरे पर कुछ शांति के भाव या गये क्योकि अब कोई न कोई बेटा आ ही जायेगा ।

दूसरी सुबह विनेश और परेश दोनों अपने दस काम छोड़ कर आ गये । बाहर का दरवाजा तोड़ा गया और विनी को बाहर निकाल कर अस्पताल ले जाया गया । अब विनी को अकेले उस ताजमहल में छोड़ने को कोई बेटा तैयार नहीं था ।



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