मधुलिका साहू सनातनी

Tragedy Inspirational

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मधुलिका साहू सनातनी

Tragedy Inspirational

टीकाकरण

टीकाकरण

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   कॅरोना जब फैला ही था और कॅरोना की वैक्सीन बन कर तैयार नहीं हुई थी पर चर्चा थी कि ट्रायल चल रहा है। कॅरोना से बचाव के लिए बहुत से उपायों पर चर्चा चल रही थी। इन चर्चाओं में से जीवन जरूरी तो मास्क भी जरूरी पर सभी एक मत से सहमत थे। मास्क जरूरी है पर लोग लगाते नहीं थे।

     जब भी पुलिस वाले शहर का राउंड लेते तो मोहल्ले में लोग दाएँ बाएँ हो लेते और पुलिसवालों के जाते ही मास्क भी हट जाता और लोगों का गुच्छा भी बन जाता। इन्हीं गुच्छे वाले लोगों में गुड्डू राजू बब्बन छोटू रहीम और फहीम भी थे जो टीका पर अपनी अपनी राय जाहिर कर रहे थे।

      कुछ का मानना था कि भारतीय वैक्सीन इतनी काबिल नहीं हो सकती कि कॅरोना से सुरक्षा दे सके। कुछ लोगो का भरोसा था कि - ऐसा नहीं है , भारतीय वैक्सीन सही है। हम इस पर भरोसा कर सकते हैं। जब इतनी बात निकली तो तुरंत इन लोगों के दो गुट बन गये। जिन लोगों को अमेरिकन वैक्सीन पर भरोसा था वे दूसरे पक्ष पर आरोप लगाने लगे कि वे भाजपाई हैं और भाजपा का प्रचार कर रहे हैं।

     कॅरोना की वैक्सीन को लेकर जब बात राजनीति पर पहुँच गयी तो सबका मिजाज थोड़ा गर्म होने लगा। चीन को लेकर सभी सहमत थे कि यह काम चीन ने जैविक युद्ध के कारण छेड़ा है क्योंकि भारत ने न केवल चीन के कितने ऐप्प प्रतिबंधित कर दिये थे बल्कि चीन का सामान भी लेना बंद कर दिया था। इससे चीन की आर्थिक स्थिति में ग्रहण लग गया था। चीन उसी का बदला ले रहा है जब कि भारत से लगे नेपाल भूटान म्यांमार श्री लंका में कॅरोना ने ऐसी तबाही नहीं मचाई पर भारत की वैक्सीन से रहीम फहीम सहमत नहीं थे।

      इनका कहना था कि भारत इतना समृद्ध नहीं कि अपनी वैक्सीन विकसित कर सके। रहीम की हाँ में हाँ मिलाते हुए राजू ने भी अपनी राय बता दिया वह तो भारतीय वैक्सीन नहीं लगवायेगा उसे मरना थोड़े ही है। वह ऐसे ही ठीक है।

रहीम ने उससे पूछा , ' क्यो बे, तू काहे भारत की वैक्सीन के बारे में ऐसा बोल रहा। '

राजू , ' वैक्सीन बनाने में कम से कम 7 साल का समय लगता है। पहले रिसर्च होती है फिर ट्रायल शुरू होता है पहले जानवरों पर फिर इंसानो पर। यहाँ भारत मे इतनी जल्दी वैक्सीन बन कर तैयार हो गयी कोई ट्रायल नहीं हुआ। कोई रिसर्च नहीं हुयी बस भाजपा ने अपना नाम करने के कारण वैक्सीन बना दिया - लोगों को मारने के लिये। '

    राजू की बात से रहीम फहीम और गुड्डू सहमत थे। इसी बात को लेकर दोनों गुटों में खूब बहसा बहसी हुयी। काफी देर तक चर्चा अपनी बुद्धि के हिसाब से करते रहे और फिर अपने अपने रास्तों पर हो लिये।

     कुछ दिन बीते सबके सब अपनी पुरानी आदत के अनुसार बाहर निकलते रहे। इसी बीच कॅरोना की पहली लहर आयी और चली गयी। फिर दूसरी लहर भी आ गयी। इस बार कॅरोना ने तबाही मचानी शुरू कर दिया। लोग जो पहली बार की कॅरोना की लहर से झूमते हुए बाहर निकल आये थे वे सोच रहे थे कि इस बार भी उसी तरह से बाहर निकल लेंगे और कॅरोना की ऐसी की तैसी हो जाएगी।

     इसी बीच टीकाकरण भी शुरू हो गया। राजू रहीम फहीम और गुड्डू जो पहले ही भारतीय वैक्सीन को अपनी तरफ से नकार चुके थे अब भी अपनी राय पर डटे हुए थे। पर छोटू और बब्बन जा कर टीका लगवा आये थे। किसी तरह से उन्होंने बाकी के चारो को भी समझाना चाहा पर गुड्डू के अलावा किसी के भी समझ मे नहीं आया। गुड्डू भी जा कर चुपचाप टीका लगवा आया। अब बचे तीन रहीम फहीम और राजू।  ये तीनों अपनी जिद पर अड़े हुए थे।

     कुछ दिन वैसे ही बिना मास्क लगते हुए बीते। या फिर मास्क लगाते भी तो मास्क नाक मुँह पर न होकर दाढ़ी पर चिपका रहता। इन छह दोस्तों का ग्रुप भी अपनी शान में मशगूल था। चुरा कर घूमना , बहाने बना कर बाहर निकलना।  बहाने से बाजार जाना। ऐसे ही समय में रहीम को जुकाम हुआ। इस जुकाम को उसने मौसमी जुकाम है सोच कर हल्के में लिया और दोस्तों संग घूमता रहा। तीसरे दिन ही बीमार पड़ गया फिर भी कॅरोना की न तो टेस्टिंग करवाई न दवा लिया।

     रहीम बुखार से पीड़ित हो कर बिस्तर पकड़ लिया पर फहीम राजू छोटू बब्बन और गुड्डू सब एक साथ घूमते रहे। चौथे दिन बाकी सब में भी कॅरोना के लक्षण दिख गये। किसी में कम किसी में ज्यादा। राजू की हालत खराब हो गयी उसे अस्पताल भर्ती करवाना पड़ा। रहीम सातवें दिन चल बसा। बाकी छोटू बब्बन और गुड्डू में हल्के लक्षण दिखे उन्होंने लक्षण दिखते ही दवा लेनी शुरू कर दिया। फहीम के फेफड़े भी काफी खराब हो चुके थे पर अपनी इच्छा शक्ति के बल पर उसने कॅरोना से अपनी लड़ाई जीत लिया पर उसके भी 30 प्रतिशत फेफड़े खराब हो चुके थे अब उसे भयंकर कमजोरी का सामना करना पड़ रहा था। राजू ने दस दिन तक बहुत हिम्मत किया पर दसवाँ दिन उसका पूरा नहीं हो पाया और चल बसा।

   समझ नहीं आता कि क्यों लोग अपनी सेहत से खिलवाड़ करके अपने परिवार को यूँ अधर में अकेला रोने को छोड़ जाते हैं। कम से कम राष्ट्रीय आपदा के समय तो राजनीति के पचड़े में न पड़ें। आगर अपनी बुद्धि न लगते तो आज रहीम और राजू दोनो जिंदा होते।

( टिप्पणी :-- रचना में किसी की भावनाएं आहत न हों इसलिये पात्रों के नाम बदल दिये गए हैं। )



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