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मधुलिका साहू सनातनी

Children Stories Inspirational

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मधुलिका साहू सनातनी

Children Stories Inspirational

व्यापार में बेवकूफी, भाग 1

व्यापार में बेवकूफी, भाग 1

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यह कहानी आठ से दस वर्ष के बच्चों के लिए लिखी गयी है जिसमे कोशिश रही है कि वे अपनी जिंदगी के सूत्र सरलता से सीख-समझ सकें आशा है आपको पसंद आएगी और बच्चों को जरूर इस सीरीज को सुनाएंगे ।

गर्मी की छुट्टियाँ आ गयी थीं तो सब बच्चे नानी के पास जाने को मचलने लगे । अक्षिता अपूर्व को नानी की कहानियाँ सबसे अच्छी लगती थीं तो प्रथम अग्रज और अनुज को अपनी दादी से कहानी सुनने में मजा आता था । अब चाहे दादी कह लो या फिर नानी बात एक ही थी । ललिता जी के पास बच्चों की कहानियों का खजाना रहता था । अक्षिता से लेकर अनुज तक अपनी फरमाइश की कहानी सुनाने को ललित जी से कहते । आज भी प्रथम ने अपनी पसंद की कहानी अपनी दादी से सुनाने को कहा ।

          प्रथम की बात मान लेने पर अक्षिता और अपूर्व ठुनक गये और नानी पर इल्जाम लगाने लगे कि वे सिर्फ प्रथम की फरमाइश की कहानी सुनाती हैं उन लोगों के पसंद की नहीं । ललित जी पाँचों बच्चों की बात सुनकर मुस्कुरा पड़ी और बोली : "अच्छा चलो यह बताओ कि सबको किसकी की कहानी सुननी है ? एक एक करके मैं सबके पसंद की कहानी सुनाऊँगी ।"

         इससे सबको अपनी अपनी पसंद की कहानी बताने का मौका मिल गया । किसी को राजा रानी की कहानी सुननी थी किसी को परी की किसी को जानवरों की कहानी पसन्द थी । नानी ने बोला, "इतनी सारी कहानी एक साथ नहीं सुनाई जा सकती, पर एक एक करके जरूर सबकी पसंद की कहानी सुना सकती हूँ । जैसे तुम लोग आपस मे लड़ते रहते हो ना उसी तरह चिक्की और टिंकू भी आपस मे लड़ते रहते थे । आज सुनाती हूँ चिक्की और टिंकू की बेफकूफ़ी की कहानी वो दोनो भी आपस मे लड़ते झगड़ते रहते थे ।"

 "ये चिक्की और टिंकू कौन थे ?" प्रथम ने पूछा ।

" चिक्की और टिंकू दोनों कॉर्बेट नेशनल पार्क में रहने वाले बन्दर राजा और लंगूर मुखिया के बच्चे थे । चिक्की बंदर राजा और रानी का बड़ा बेटा था ।"

"और टिंकू कौन था ?"अपूर्व ने पूछा ।

" टिंकू लंगूरों के मुखिया सुंदर का बेटा था । दोनों की कभी पटती नहीं थी क्योंकि लंगूर बहुत ताकतवर होते हैं और बन्दर लंगूरों से डरते हैं । चिक्की सोचता था कि किसी भी तरह टिंकू को हर चीज में पीछे छोड़ दे पर टिंकू ना केवल ताकतवर था बल्कि वह हर काम विचार करके करता और अपनी पढ़ाई भी मन लगा कर करता था इस कारण टिंकू उसे ना तो खेल में ना ही पढ़ाई में पछाड़ पाता था । इससे वह टिंकू से मन ही मन जलने लगा था ।

          कुछ दिनों में स्कूल का वार्षिकोत्सव आया । उसमे सभी बच्चों की वर्ष भर की बनाई हुयी कलाकृतियाँ की प्रदर्शनी लगनी थी साथ ही कुछ कक्षाओं के बच्चों को खाने पीने की चीजों की दुकान लगानी थी । इन दुकानों से स्कूल के बच्चों उनके मातापिता जो कुछ भी सामान खरीद कर खाते उससे जो भी आय होती वह स्कूल प्रबंधन को जानी तय हुयी थी । फिर इस पैसों से सभी विद्यार्थियों को दूसरे जंगल मे घुमाने के लिये ले जाया जाता ।

         स्कूल प्रबंधन ने इस विषय मे सभी विद्यार्थियों के बीच एक प्रतियोगिता रख दिया कि जिसकी दुकान से सबसे अच्छी आय होगी उसे पुरस्कार भी दिया जायेगा और उसे दूसरे जंगल मे बिना किसी शुल्क या पैसों के तीन दिन दो रात के लिये पिकनिक मनाने का मौका मुफ्त में मिलेगा । सभी बच्चों में ना सिर्फ पुरस्कार का बल्कि दूसरे जंगल मे पिकनिक मनाने का भी लालच आ गया । इससे लगभग सभी कक्षा के विद्यार्थियों ने इस तरह की खाने पीने से सम्बंधित दुकान लगाने की योजना बना लिया ।

          चिक्की बन्दर ने पहले सोचा कि वह इन सब पचड़ों में नहीं पड़ेगा पर जब उसने सुना कि टिंकू लंगूर इस तरह की एक दुकान लगा रहा है तो उसने ईर्ष्या वश स्वयम भी अपना नाम इस दुकान लगाने के लिये लिखवा लिया । उधर कुछ बच्चों ने टिंकू लंगूर को भी चिक्की की दुकान लगाने के बारे में बता दिया । टिंकू ने सोचा कि वह स्कूल प्रबंधन को सहयोग देने के लिये किसी ऐसी चीज की दुकान लगाएगा जिससे स्कूल को लाभ मिले और बच्चों, उनके मातापिता को खाने से नुकसान भी ना पहुँचे । सभी बच्चों का स्वास्थ्य भी अच्छा बने और सभी बच्चे पिकनिक पर जा सकें ।

          वहीं दूसरी तरफ चिक्की सोच रहा था कि वह ऐसे खाने की दुकान लगाएगा जिसमे जल्दी से जल्दी बिक्री हो जाये और खाने का सारा सामान बिक जाये तो वह जल्दी से स्कूल प्रदर्शनी में घूम सके । इसलिये उसने अपने दोस्तों से भी इस विषय पर बात कर लिया कि वे सभी दोस्त एक दूसरे की दुकानों के आसपास अपनी अपनी दुकानें लगाएंगे और जल्दी जल्दी एक दूसरे की दुकानों से सामान बिकवाने में मदद करेंगे जिससे सारा सामान जल्दी से जल्दी बिक जाए और वह लोग फ्री होकर प्रदर्शनी में घूम सकें ।

         इस तरह स्कूल के काफी बच्चों ने स्कूल प्रबंधन को सहयोग देने के लिये सभी बच्चे अलग अलग खाद्य वस्तुओं की दुकान लगाने की योजना बनाने लगे ।

          धीरे धीरे स्कूल प्रदर्शनी का दिन भी आ गया । टिंकू ने फलों की चाट की दुकान लगा लिया और चिक्की ने भुनी मूँगफली के दानों का ठेला लगा लिया । जब प्रदर्शनी शुरू हुयी तो सभी मातापिता और मेहमान अपने अपने बच्चों की बनायी हुयी कलाकृति देखने के लिये पहले सभी कक्षाओं में जाने लगे । उन्होंने देखा कि बच्चों ने बहुत मेहनत से सभी कलाकृति बनायी थीं । वे सब देख कर बहुत खुश हुये ।

         धीरे धीरे पूरे स्कूल में घूम लेने के बाद उनको भूख भी लगने लगी । अब सभी बच्चों के बनाये हुये खाने का स्वाद लेने का नम्बर आ गया । सबने पहले अपने बच्चों की दुकानों से खाने की सामग्री खरीद कर खायी फिर दूसरे बच्चों की दुकानों से खाने का सामान खरीदा और खाया ।

          इस तरह से टिंकू की दुकान पर उसके मातापिता और दोस्त फलों की चाट खाने गये । टिंकू ने उनसे पैसे ले कर अच्छे स्वस्थ फलों की चाट बना कर दिया । सबने बहुत खुश होकर स्वाद ले कर खाया । 

          उधर चिक्की के ठेले पर भुनी मूँगफली थी । मूँगफली की सोंधी सोंधी महक आते जाते सब लोगों को भा रही थी । महक से ललचा कर उसकी दुकान के अगल बगल वाले दोस्त आ कर मूँगफली की तारीफ करने लगे । उन सबकी तारीफ सुनकर चिक्की ने उन लोगों को थोड़ी थोड़ी सी मूँगफली चखने के लिये दी । मूंगफली सचमुच बहुत अच्छी थी । इसके बाद उसके दोस्त खा पी कर अपनी अपनी दुकान पर निकल गये ।

          इसके बाद चिक्कू भी अपने दोस्त की दुकान पर जा कर बोला, "तुम भी अपना व्यंजन चखाओ । देखूँ जरा तुम्हारा व्यंजन कैसा बना है ।"

            चिक्की भी अपने उन्हीं दोस्तों की दुकान से चखने के लिये उनका खाने का सामान ले लिया । इस तरह सबने एक दूसरे के खाने का सामान बिना पैसे दिये चखा । सभी बच्चों ने मेहनत करके अपना अपना स्वादिष्ट व्यंजन तैयार किया था ।

          उसके दोस्त ने उसे अपना व्यंजन चखाया । फिर चिक्कू तीसरे दोस्त की दुकान पर गया उसकी दुकान से भी चखने के लिये खाने का सामान मुफ्त में लिया और इस तरह मुफ्त में अच्छा अच्छा व्यंजन खाने का सिलसिला शुरू होगया । धोरे धीरे सभी दोस्तों ने एक दूसरे की दुकान से सिर्फ चखने चखने के लिये मुफ्त में सबका व्यंजन लिया और स्वाद ले लेकर खाया और खूब तारीफ भी किया ।

             जल्दी ही चिक्की और सारे दोस्तों के बनाये सारे व्यंजन सिर्फ और सिर्फ इसलिये जल्दी ही खत्म हो गये क्योकि सभी दोस्तों ने एक दूसरे का व्यंजन यह सोच कर खाया कि - इन्होंने मेरा व्यंजन मुफ्त में खाया था तो मैं भी उनका व्यंजन मुफ्त में खाऊँगा - और मुफ्त में चखते चखते सारा व्यंजन सबके पेट मे मुफ्त में चला गया और सामान बनाने में लगाया हुआ आधा पैसा भी उनके पास नहीं बचा ।

         उधर टिंकू ने अपनी दुकान से किसी को भी खाने का सामान मुफ्त में नहीं दिया फिर वह चाहे उसके मातापिता जी और दूसरे दोस्त ही क्यों न हों । उसके पास रात होते होते काफी सारे पैसे आ गये थे । टिंकू बहुत खुश हुआ ।

       दूसरे दिन सुबह स्कूल में प्रधानाध्यापक गैंडाराम ने सभी बच्चों से दुकान की आय की जानकारी लिया । सबने अपने अपने कमाये हुये पैसों को विद्यालय में जमा करवा दिये । अन्य अध्यापकों ने सबके पैसों का हिसाब लगा कर टिंकू और कुछ बच्चों को पुरस्कार और पिकनिक के लिये विजेता घोषित किया जबकि चिक्कू की दुकान घाटे में चली गयी थी । उसने जितना पैसा मूंगफली खरीदने में लगाया था उतना पैसा भी उसके पास नहीं बच पाया था ।

         इस बार फिर टिंकू लंगूर जीत गया और चिक्की बंदर अपनी बेवकूफी के कारण न केवल हारा बल्कि वह पिकनिक पर भी नहीं जा पाया उल्टे उसका मजाक भी बना ।

           जब कहानी खत्म हुयी तब ललित नानी ने बच्चों से कहा कि इसलिये कभी लड़ना नहीं चाहिये और जो बुद्धिमान होता गया उसका हर काम ध्यान से देखकर कुछ न कुछ सीख जरूर लेते रहना चाहिये और जब आप व्यापार करते हैं तो व्यापार करने के नियमो का ध्यान रखना चाहिये - यही नीति कहती है ।"

         


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